प्राणायाम कैसे करें || प्राणायाम कब करे | प्राणायाम करने से पहले सावधानीया || benefit of doing pranayam |

 Tittle- प्राणायाम कैसे और कब करे और सबसे पहले कौन सा प्राणायाम करें।आइये जानते इसके बारे में विस्तार से।  
हम अपने जीवन में योग और प्राणायाम को अपनाकर कुछ समस्याओं और बीमारियों को जड़ से खत्म कर सकते हैं। योग और प्राणायाम में वह ताकत है जो शायद किसी नीम हकीम और डॉक्टर के बस में नहीं है ।
योग एक तरह से भगवान का दूसरा रूप है ।आज मैं आपके साथ योग के कुछ नियम और विधियां बता रही हूं ,अगर आपको अच्छी लगे तो आप इस लेख को अपने चाहने वाले और दोस्तों में जरूर शेयर करें।


प्राणायम और धयान करने की विधि 

 प्राणायाम की महिमा तो बहुत प्रसिद्ध है। हठयोग का मूल स्थान प्राणायाम ही है ।प्राण अर्थात शरीर के अंदर रहने वाली क्रिया शक्ति आयाम अर्थात उसका नियंत्रण प्राणायाम का सही तरीका तो ध्यान भी आसानी से लग सकता है।
श्री गीता में प्राणायाम का श्री कृष्ण भगवान ने बहुत अच्छा महत्व बताया है ,यह शरीर मन ,मस्तिष्क एवं नाड़ी तंत्र को सुनियजित कर तेज और बल प्रदान करता है। वर्तमान युग में पाश्चात्य वैज्ञानिक भी इस  परिस्थितियों को स्वीकार कर चुके हैं कि जीवन शक्ति को असाधारण रूप से विकसित करने में प्राणायाम जैसी उत्तम विधि अन्य कोई नहीं है। 
प्राणायाम के स्वसन क्रिया के फेफडों  को शक्तिशाली बना कर ललिचलेपन को बढाती है। प्रणाम से रक्त परिभ्रमण की गति में तेजी आती है। अतः रक्त सुक्ष्म नाड़ियों तक सहज पहुंच जाता है, प्राणायाम में अनेक रोगों को दूर करने की शक्ति निहित है ।इसके प्रयोग से इंद्रियां अंतर्मुखी हो जाती हैं और मन स्थिर हो जाता है।फिर इसके लाभ बहुत ही आश्चर्यजनक होते है।




प्राणायाम के लिए  कुछ नियम - 

1.प्राणायाम से पहले उस स्थान को घी  दीपक या गूगल जलाकर प्रदूषण रहित कर लें।

2.प्राणायाम के लिए सिद्धासन ,वज्रासन ,पद्मासन में आसन में बैठना उपयुक्त है ।आसन विद्युत  का कुचालक होना चाहिए। 

3.प्राणायम करने से पहले भोजन के कम से कम 4 या 5 घंटे बाद या प्रातः काल शौच आदि से निवृत्त होकर प्राणायाम करें।
 तब वह बहुत सर्वोत्तम लाभ देता है। शुरू में 5 या 10 मिनट का ही अभ्यास करें धीरे-धीरे इस अभ्यास को बढ़ाते हुए आधे घंटे से 1 घंटे तक करना चाहिए। यदि प्रात उठकर पेट साफ नहीं होता है तो सायाकाल सोने से पहले हरड या त्रिफला चूर्ण गर्म पानी से ले ले कुछ दिन कपालभाति प्राणायाम करने से कबज भी स्वत: ही दूर हो जाती है।

4. प्राणायाम करते समय मन शांत एवं प्रसन्न होना चाहिए वैसे प्राणायाम से भी मन, शांत, व एकाग्र होता है।

5. प्राणायाम यथासंभव स्नानादि से निवृत्त होकर ध्यान उपासना से पहले करना चाहिए प्रणाम के पश्चात यदि स्नान करना हो तो 15 या 20 मिनट बाद करना चाहिए । प्राणायाम  करते हुए थकान अनुभव हो तो दूसरा प्रणाम करने से पहले कुछ देर विश्राम कर लेना चाहिए।

6. प्राणायाम करते समय के लिए श्वास अंदर लेना और श्वास को अंदर रोककर रखना कुंभक श्वास को बाहर फेंकना रेचक और श्वास को बाहर ही रोक कर रखने को ब्रह्मा कुंभक कहते हैं।

7. प्राणायाम से पहले कई बार ओम का लंबा नादपुरण उच्चारण करें।

8. प्राणायाम करते समय  मुख,आंख, नाक आदि अंगों पर किसी प्रकार का तनाव ना लेकर सहज अवस्था में रखना चाहिए। 

9 प्रणायाम के अभ्यास काल में ग्रीवा ,मेरुदंड,वक्ष, कटि को सदा सिधा रखकर बैठा करें, तभी अभ्यास यथा विधि तथा फलप्रद होगा।

10. प्राणायाम के शरीर के  स्मस्त विकार, विजातीय तत्व, टॉक्सिस नष्ट हो जाते हैं, नाकरातम्क  विचार समाप्त होते हैं। तथा प्राणायाम का अभ्यास करने वाला व्यक्ति सदा सकारात्मक विचारो और चिंतन व उत्साह से भरा हुआ होता है।

योग व प्राणायाम  की विधी.....

1.प्रथम प्रकिया...भस्त्रिका प्राणायाम -
किसी ध्यानात्मक आसन में सुविधानुसार बैठकर दोनों नासिका से श्वास को पूरा अंदर डायाफार्म तक भरना व् बाहर भी पूरी शक्ति के साथ छोड़ना भस्त्रिका प्राणायाम कहलाता है। इस प्राणायाम को अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुसार तीन प्रकार से किया जा सकता है ,मंद गति ,से मध्य गति से ,तीव्र गति से इस प्राणायाम को 2 से 5 मिनट तक ही करना चाहिए। भस्त्रिका के समय शिव संकल्प अवश्य लें। संकल्प लेते समय मन में विचार करना चाहिए कि मैं ब्रह्मांड में विद्यमान दिव्य शक्ति उर्जा पवित्रता व शांति का आनंद जो भी शुभ है, वह मेरे प्राणों के साथ मेरे दिल में प्रविष्ट हो रहा है ।
मैं दिव्य शक्तियों से ओतप्रोत हो रहा हूं और अपने अंदर से दूषित तत्व बाहर निकाल रहा हूं ।और ओम का चिंतन मनन प्रत्यक्ष सांस के साथ करें जिनको उक्त रक्तचाप हृदयरोग हो वह मंद गति से करें। इस प्राणायाम को करते समय जब सांस को अंदर भरें तो पेट को नहीं फुलाना चाहिए ।सांस छाती में डायाफार्म तक भरे पसलियों तक छाती ही फूलेगी ।


 प्राणायाम  करने के लाभ - 

सर्दी ,जुखाम ,एलर्जी ,श्वास रोग दमा ,पुराना नजला, साइनस आदि समस्त कफ रोग दूर हो जाते हैं ।फेफड़े सफल बनते हैं तथा दिल और मस्तिष्क को शुद्ध प्राणवायु मिलने से आरोग्य लाभ होता है ।इस प्राणायाम को करने से कुंडली जागरण में भी सहायता मिलती है।

2 द्वितीय  प्रकिया -

 कपालभाति प्राणायाम --

कपालभाति प्राणायाम मैं मात्र रेचक अर्थात सांस को सख्ती से बाहर छोड़ने में पूरा ध्यान दिया जाता है । सांस को भरने के लिए प्रयत्न नहीं करते अपितु सहज रूप से श्वास अंदर जाने देते हैं, फिर पूरी एकाग्रता से सांस को बाहर छोड़ने में ही होती है ।ऐसा करते हुए स्वभाविक रूप से पेट में भी आकुचन प्रसारण की क्रिया होती है, तथा मूलाधार स्वाधिष्ठान व मणिपुर चक्र पर विशेष बल पड़ता है। इस प्राणायाम को न्यूनतम 5 या 10 मिनट तक अवश्य करना चाहिए।
 
 योग  करने के फायदे ..

मस्तिष्क, प्रमुख मंडल पर और तेज आभा ,ऐश्वर्य बढ़ता है। मोटापा ,मधुमेह, गैस ,कब्ज अम्लपित्त ,किडनी व प्रोस्टेट से संबंधित रोग सभी निश्चित रुप से हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं। कबज जैसा खतरनाक रोग इस प्राणायाम के नियमित रूप से प्रतिदिन करने से मिट जाता है ।डिप्रेशन जैसी भयंकर आदि रोगों से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाता है।इसके करने से एक दिव्य शक्ति का संचार होने लगता है। कपालभाति प्राणायाम मोटे लोगों के लिए और पेट कम करने के लिए सबसे उत्तम योग है।

3. तृतिय प्रकिया --बाह्रा प्राणायाम 

सिद्धासन यह पद्ममसान विधिपूर्वक बैठकर सांस को एक ही बार में इसे तो शक्ति बाहर निकाल दीजिए। सांस को बाहर निकालकर मूलबंध, उडीयनबंध व,जालंधर बंध लगाकर सांस को यथाशक्ति बाहर ही रोक कर रखें। जब सांस लेने की इच्छा हो तब बंधुओं को हटाते हुए धीरे-धीरे सांस लीजिए, सांस भीतर लेकर उसे बिना रुके ही पुणे स्वसन क्रिया द्वारा बाहर निकाल दीजिए इस प्रकार से 3 से लेकर 21 बार तक कर सकते हैं ।

लाभ .....

इससे मन की चंचलता दूर होती है और उदर रोगों में लाभ मिलता है बुद्धि, सुखसम ,समृद्ध होती है।तथा वीर्य की गति रुक कर स्वपन दोष शीघ्रपतन आदि धातु विकारों का निवृति करता है।

4. चतुर्थ प्रकिया -

अनुमोल  -विलोम प्राणायाम 

दोनों नासिकाओं को बंद करने की विधि दाएं हाथ को उठाकर दाएं हाथ के अंगूठे के द्वारा गाया स्वर तथा अनामिका व मध्य में उंगलियों के द्वारा गाया स्वर बंद करना चाहिए। हाथ की हथेली को नासिका के सामने रखकर थोड़ा ऊपर रखना चाहिए 

 करने की विधि-

इडा नाडी सोमचंद्र शक्ती या शांति का प्रतीक है, इसलिए नाड़ी शोधन हेतु अनुलोम-विलोम प्रणाम को बाईं नासिका से शुरू  करते हुए अंगूठे के माध्यम से दाहिनी नासिका को बंद करके बाय नाक से स्वास को धीरे-धीरे छाती में भरना चाहिए। 
 सांस पूरा अंदर भरने पर अनामिका व मध्यमा  से वाम स्वर को बंद कर के दाहिने  नाक से पूरा साँस  बाहर छोड़ देना चाहिए, और रोककर ना रखें ।अपनी शक्ति के अनुसार स्वाश, प्रवास के साथ गति मंद, मध्यम,व तीव्र करें। तीव्र गति से प्राण की तेज ध्वनि होते हैं इस प्रकार इस विधि को बार-बार करते रहना चाहिए इस प्राणायाम को 5 मिनट से लेकर 10 मिनट तक करना चाहिए ।
इससे अधिक ना  करें। 5 मिनट को यह प्राणायाम करने से मूलाधार चक्र में शक्ति का जागरण होने लगता है।  इसे वेदो मे की भाषा में कुंडलिनी जागरण  भी कहा जाता है। इसको करते समय ओम का मस्तिष्क रूप में चिंतन, मनन करते रहना चाहिए ।
 
करने के लाभ ---

इस प्राणायाम को नियमित करने से लगभग तीन-चार माह में 30% से लेकर 40%  हारट बलोक्ज खुल जाते हैं । नकारत्मक विचार  खत्म होकर सकारात्मक  चिंतन में प्रवेश करने लगते हैं।  उत्साह,आनंद की प्राप्ति होने लगती है ।इस प्राणायाम को 250 से 500 बार तक करने में मूलाधार चक्कर सहित कुंडलिनी शक्ति अपने आप जाग्रत होने लग जाती है, अर्थात इसको कुंडलिनी जागरण के नाम से भी जाना जाता है।

5.पंचम प्रक्रिया -भ्रामरी प्राणायाम
 सांस पूरा छाती में भरकर मन को अज्ञात चक्कर में केंद्रित रखें ।अंगूलियों के द्वारा दोनों कानों को पूरा बंद कर लें आप भ्रमर की भांति गुंजन करते हुए नाद रूप में ओम का उच्चारण करते हुए सांस को नाक के  द्वारा बाहर छोड़ दें। इस  प्रकार करें प्राणायाम कम  से 3 से 5 बार अवश्य करें। अधिक से 11 से 21 तक किया जा सकता है। 
इस प्राणायाम के समय शिव शंकर मन में संकल्प वाले विचार होना चाहिए कि मुझ पर भगवान श्री कृष्णा शांति आनंद बरस रहा है। मेरा अगले चक्कर में भगवान दिव्य ज्योति के रूप में प्रकट होकर मेरे समस्त अज्ञान को दूर कर मुझे ऋतंभरा प्रज्ञा  समपन्न बना रहे हैं । 

 इसे करने के लाभ -

मन की चंचलता दूर होती हैं ,मानसिक उत्तेजना, उच्च रक्तचाप हृदयरोग में लाभ के लिए अति उपयोगी है योग विधी है।

छठ प्रक्रिया --ओमकार जाप 

 सभी प्राणायाम करने के बाद शवाश प्रशवास पर अपने मन को टिका कर प्राण के साथ उदगीत ओम का ध्यान करें ।यह पिंड  तथा समस्त ब्रह्मांड ओंकार है। ओंकार कोई व्यक्ति आकृति विशेष नहीं है। 
यह तो एक दिव्य शक्ति है। जो इस संपूर्ण ब्रह्मांड का संचालन कर रही है ।दृष्टा बंनकर दीर्घ व सूक्ष्म गति से श्वास को देखते हुए छोड़ते समय श्वास की गति इतनी सूक्ष्म होनी चाहिए कि स्वयं को सांस की ध्वनि की अनुभूति ना हो। 
तथा यदि नासिका के आगे रूई भी रख दें तो हिले नहीं ।धीरे-धीरे शवास के गहरे सपर्श् को अनुभव कर सकगे। यह साथ मे वेदों के सबसे महान मंत्र शास्त्रों के अनुसार इससे बड़ा कोई मंत्र नहीं है ।
अगर आप इस मंत्र जाप को करते हो वह भी योग के साथ  करे तो शायद आपको किसी और पूजा की जरूरत नहीं है।

यह औम एक तरह  से भगवान का रूप भी है और और पुरा सँसार भी  इसी मे समाया हुआ है। इसलिए  ओम का जाप योग विधि में सबसे उत्तम बताया गया है ।गायत्री का भी का जाप किया जा सकता है ।
इस प्रकार साधक करते-करते तदरूप होता हुआ दिवय समाधि प्राप्त कर सकता है। सोते समय औम ध्यान करते हुए सोना चाहिए, ऐसा करने से  नींद भी योगमयी हो जाती है और बुरे सपनों से छुटकारा मिलता है तथा  नींद शीघ्र आयेगी ।

आज के लेख में मैंने आपको पूरी तरह से योग विधि बताई है जो अपने आप में एक डॉक्टर का काम करता है ,अगर आप पूर्ण विधि के साथ योग विधि और प्राणायाम करते हो तो शायद ही आपको किसी डॉक्टर की जरूरत पड़े। 
योग में ऐसी ताकत है जो हर बीमारी को ठीक कर सकता है। बस शर्त इतनी है कि पूरी विधि से और नियम से करना चाहिए तभी कोई सफलता मिल सकती है। योग और प्राणायाम की
यूट्यूब पर बहुत सारी वीडियो आपको देखने को मिल जाएंगी। अगर यह आपको समझ में नहीं आता है किस प्रकार करना है तो आप उसकी वीडियो जरूर देखें।

Posted by-kiran

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