शिवजी की पूजा में कुटज, मालती चंपा ,चमेली ,जूही ,रक्तजवा मल्लिका, केतकी नहीं चढाने चाहिए।दो शंख, दो चक्रशिला, दो शिवलिंग दो गणेश मूर्ति ,दो सूर्य प्रतिमा और तीन दुर्गा जी की प्रतिमा का पूजन एक बार में नहीं करना चाहिए।
इससे हमें दुख की प्राप्ति होती है ऐसा हमारे शास्त्रों में माना गया है।
शिवजी को भांग का भोग अवश्य लगाना चाहिए लोगों की यह धारणा है शिव जी को लगाया भोग भक्षण नहीं करना चाहिए यह गलत है। शिवलिंग को स्पर्श कराया गया भोग नहीं लेना चाहिए।
शिव पूजा में बिल्वपत्र फूलों का महत्व
शिव पूजा में बिल्वपत्र तथा अन्य फूलों का विशेष महत्व है। शिवजी को आशुतोष के नाम से भी जाना जाता है। वह अपने भक्तों पर बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। बेलपत्र शिव जी की बहुत पिर्य है उनहे बेल पत्र और फूल अर्पित करने वाला भक्त पर बहुत जल्दी ही उनकी कृपा का पात्र बन जाता है। बिल्व पत्र को निषेध काल में नहीं तोड़ना चाहिए चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्थी ,अमावस्या तिथियों को सक्रांति के समय और सोमवार को बेलपत्र नहीं तोड़ना चाहिए।
नीषिद समय में पहले दिन का रखा हुआ बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए शास्त्रों ने तो यहां तक कहा कि यदि नया बेलपत्र ना मिल सके तो पहले से चढे हुए बेलपत्र को ही धो कर बार-बार चढ़ाना चाहिए। बेलपत्र को चढाते समय विशेष बात का ध्यान रखने वाली यह बात है कि बेलपत्र में छेद ना हो और देखने में सुंदर लगता हो। बेलपत्र को धोकर उस पर चंदन का लेप करके उसे नीचे मुख करके चढाना चाहिए। सावन मास में बेलपत्र चढ़ाने से शिव भगवान बहुत जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं। धतूरा, भांग,मदार और अहिफेन शिव के पिर्य् आहार है।
शिव भगवान त्यागी और उदार शिरोमणि को इसलिए विश्व में सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है। शिवजी को शास्त्रों ने कुछ फूलों को चढाने से मिलने वाले फल को बतलाया हैं। जैसे 10 स्वर्ण माह के बराबर स्वर्ण दान का फल एक आक के फूल को चढाने से मिल जाता है, हजारा के फूलों के अपेक्षा एक कनेर का फूल, और हजार कनेर के फूलों को चुढाने की अपेक्षा एक बेलपत्र चढ़ाने से फल मिल जाता है, हजारों बेलपत्र की अपेक्षा गुमा फूल, हजार गुमा फूल के अपेक्षा एक अपामार्ग हजार अपामार्ग से बढ़कर एक उसका फूल, हजार को उसके फूलों से बढ़कर एक समय का पत्ता हजार समय के पत्तों से बढ़कर एक नीलकमल ,हजार नील कमलों से बढ़कर एक धतूरा हजार से बढ़कर एक समी का फूल होता है अंत में शास्त्र में समस्त फूलों की जातियों में से नीलकमल को सबसे बढ़कर महत्व बताया है।
इसके अलावा मोलसीरी के फूल को भी बहुत महत्वपूर्ण बताया है।
नागचंपा ,चंपा नागकेसर , बेला बेलपत्र और कुसुम फुल भी शिव को बहुत पसन्द है।
फूलों को चढाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखने वाली बात यह है कि चढ़ाए गए फूल की तरह ही रहना चाहिए दाहिने हाथ के करतल को उतान कर मधयमा और अंगूठे की सहायता के फूल चढ़ाना चाहिए।
शिव के मन्तर जाप:------
ओम त्र्यंबकम याजमाहे सुगंधिम पुष्ठी वर्धनम
उर्वारुकैमिवा बंधनाथ श्रीमती सुब्रमण्यम
शिवपुराण में सावन के महीने में महामृत्युंजय मंत्र का जप करने का विशेष महत्व बताया गया है। इस मंत्र के जप से संसार के सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही इसका जप करने से मृत्यु के भय और जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
करारचंद्रम वैका कायाजम कर्मगम वी श्रवणनजम वा मनामम वैद परामहम
विहितम विहिताम वीए सर मेट मेटाट क्षासव जे जे करुणाबधे श्री महादेव शंभो
सावन में इस मंत्र का जप करना विशेष फलदायी माना गया है। सावन में हर रोज इस मंत्र का जप करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं। सावन में हर रोज इस मंत्र के जप से आत्मा की शुद्धि होती है और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती है।
ओम नमः शिवाय
यह बहुत प्रचलित शिव मंत्र है। इस मंत्र का मतलब है, ‘मैं भगवान शिव को नमन करता हूं’। सावन में हर रोज इस मंत्र का 108 बार जप करने से आत्मा पवित्र होती है और भगवान शिव की कृपा मिलती है। साथ ही धन की प्राप्ति होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
ओम तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात।
यह बहुत शिव गायत्री मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र बताया जाता है। सावन में हर रोज इस मंत्र का जप करने से सभी समस्याएं दूर होती हैं। यह मंत्र भगवान शिव के सभी रूपों की पूजा के लिए इस्तेमाल किया जाता है। सावन में हर रोज जप से भोलेनाथ की कृपा बनी रहती है और सभी तरह के रोग भी दूर रहते हैं।
भगवान् शिव सर्वश्रेष्ठ सनातन देवता:-
समस्त देवो में भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं, जो देवाधिदेव महादेव कहलाते हैं ।उन्हें अभुषण, राज मुकट राज सिंहासन नहीं चाहिए। कीमती मुर्ति या भव्य मंदिर नहीं चाहिए। वो भोले भंडारी हैं सभी जानते हैं कि मानसिक पूजा से ही वह प्रसन्न हो जाया करते हैं । वे वरदायक हैं, संपूर्ण विश्व के स्वामी, विश्वरूप, सनातन ब्रह्म स्वरूप सभी देवताओं के पलक और सर्वश्रेष्ठ हैं। भगवान शंकर विभिन्न प्रकृति के जीवो में एकता स्थापित करने वाले आदर्श परिवार के प्रमुख उन्हें भाईचारा प्रेम और पवित्र सूत्र में बांधकर रखने वाले सदा शांत शीतल मस्तिक वाले अपनी उग्रता में प्रलय कर लेकर किंतु क्षण में सोम्य होने वाले कामजयी, सर्वहारा एवं उपेक्षितओ के प्रति सद्भाव रखने वाले भगवान शिव सर्वश्रेष्ठ है। विशव ऐसा कोई नहीं है जो भगवान शिव की बराबरी कर सकें। उनकी हमेशा जय हो वह अविनाशी सर्वज्ञ सर्वगुण मंगलमय भगवान शिव अनादि, अनंत निर्विकार, नित्य ,अज, अमर सनातन सर्वोपरि देवता हैं
सृष्टि की रचना करने वाले ब्रह्मा विष्णु की उनकी आराधना करते हैं। सभी प्रकार के सुख समृद्धि और सप्रन्ता उन्हीं की देन है। भगवान राम ने लंका पर विजय पाने के लिए शिव की ही पूजा की थी ।भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए अनेक उपाय और स्तुति हैं, जिनमें एक शिव स्तुति रुद्राष्टक भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए उनके दर्शन पाने के लिए एकदम सरल और आसान होती है।
शिव की मनपसंद वस्तुऐ
भगवान शिव को यह 8 वस्तुएं अत्यंत पसंद है जिनको वो हमेशा नित्य संग रखते हैं, वह कभी नहीं छोड़ते। भस्म, भुजंग ,सर्प, नीलकंठ, हलाहल जहर ,गंगा , रून्डमाला, त्रिशूल और रामनाम का जाप।
सोमवार के व्रत की विधि विधान
प्रत्येक सोमवार को व्रत उपवास पूर्वक पुुरी श्रद्धा सहित शिव पार्वती जी का पूजन करने से स्त्री की सौभाग्य की रक्षा भाग्य सुख मिलता है। शिव पूजन के लिए जानकारियां शिव का वाहन नंदी है, नंदी शिव का वाहन है उसका शिव परिवार में महत्वपूर्ण स्थान है। शिव के दर्शन करने से पहले नंदी के दर्शन अवश्य करने चाहिए ।भक्तों को पूजा करते समय जमीन पर लेटकर पेट के बल लेटकर उनकी पूजा करनी चाहिए।
शिव लिंग की जानकारी
क्या आप जानते हैं शालिग्राम और शिवलिंग के हाथ पांव क्यों नहीं होते हैं?
उत्तर:- यह ईश्वर के प्रतीक चिन्ह है, चार प्रकार से प्रकट होते हैं स्वयंभू विग्रह अपने आप प्रकट होने वाले है। ईश्वर कृत विग्रह पदार्थ कहलाते हैं। जैसे सूर्य,चंद्रमा, अग्नि, पृथ्वी, दिव्य ,नदियां इत्यादि निर्गुण निराकार विग्रह प्रकृति प्रदत निर्गुण निराकार विग्रह भगवान के निराकार निर्लज्ज और निरंजन रोग के प्रतिनिधि माने जाते हैं। समस्त ब्रह्मांड भूत नारायण का प्रतीक है।
शिव पूजन की जानकारी
भगवान शंकर की पूजा के समय सुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमान पवित्री धारण शरीर शुद्धि और आसन शुद्धि कर लेनी चाहिए। उसके पश्चात पूजन सामग्री को यथा स्थान रखकर दीप प्रज्वलित कर ले। और सवासति पाठ करें ।इसके बाद पुजन कर संकल्प कर भगवान गणेश एवं भगवती गौरी का सम्मान पूर्वक पूजन करना चाहिए। रुद्राभिषेक लघु रूद्र आदि का भी पूजन करना चाहिए। यदि ब्राह्मणों द्वारा अभिषेक कर्म संपन्न हो तो और भी ज्यादा अच्छा है। यदि भगवान की पूजा में किसी प्रकार की कोई कमी रह गई हो तो वह कोई पूजा साधन ना जुटा पाए और अनावश्यक ना हो तो उसको मन से तैयार कर चढा देना चाहिए।
उसको हम मानस पूजा के नाम से जानते हैं इस प्रकार भगवान शिव हमारे भाव के भूखे हैं ना कि धन दौलत के भगवान के अगर मन से पूजा कर लें शिव की तो उसे हम मांनस पूजा कहते हैं। मानस पूजा शास्त्रों में सबसे उत्तम पूजा मानी गई है।
आज के लेख आपको शिवपूजन की जानकारी उनके प्रिय, फूल
, फल विधि विधान का पूरा वर्णन दिया है। अगर आपको यह अच्छा लगे तो आप इस लेख को जरूर अपने चाहने वाले और दोस्तों में शेयर करें।
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