जवान बेटी को कैसे समझायें और सँभाले | बेटियों को कैसे संस्कार दे | How to take care of a young daughter |

 

Tittle-अपनी जवान बेटी को कैसे कैसे समझे और उसे कैसे समझाये।
 हर माँ के लिए जब बेटी बडी हो रही होती है तो वो समय बहुत ही नाजुक होता है । जिस पर पहुंचते ही  हमारी बेटियाँ  को काल्पनिक भावनाओं को पर लगने लग जाते हैं और इस समय हर किसी के वो  कई बार वो प्रेम जाल में फंस जाती हैं । उन्हें सही क्या है गलत क्या है इसका जरा भी ज्ञान नहीं रहता। 
अगर आप भी किसी बेटी  की मां हैं तो अब आपको पहले से अधिक सजग रहने की जरूरत है। आप ऐसे समय पर जितना हो सके अपनी बेटी की सबसे अच्छी दोस्त बने । उसके साथ समय व्यतीत करे और अपने दिल की बात और दिल की  बात जरूर सुने कयाअगर आप नही सुनगी तो वह बाहर दोस्तों की तलाश करेगी। इसलिए सबसे बेहतर यही है कि आप अपनी बेटी की मां होने के साथ-साथ दोस्त भी बन जाए।
 ऐसे समय में अपने बेटी को अच्छी और बुरी दोनों बातों का ज्ञान जरूर कराएं क्योंकि यह समय बहुत ही नाजुक और नासमझ होता है। इस बात पर  का भी धयान रखे पढ़ाई और काम न करने के ताने न सुनाये।  अपनी बेटी को दुनियादारी  की समझने  परखना सिखाएं क्योंकि एक मा ही सबसे पहली शिक्षक होती है अपने बच्चों के लिए

बेटी के  दोस्तों पर कैसे  रखे निगरानी---

लड़कों से दोस्ती, उनके प्रति आकर्षण, स्नैपचैट,  फोन पर जयादा देर तक टाईम पास करना आदि आदतें 
अगर जरूरत से ज्यादा बढ़ रही हैं तो , ऐसे में आपको खासतौर पर सतर्क रहने की जरूरत है, लेकिन सतर्क रहने का ये बिल्कुल भी मतलब नहीं है कि आप उस पर पाबंदी लगाना शुरु कर दें क्योंकि दूर से ज्यादा रस्सी खींचने से अक्सर टूट ही जाती है।

ऐसे में उसे हर बार उन बातों को लेकर टोकना सही नहीं है. उसे  समझने का पूरा वक्त देना ही सही विकल्प है। जब वो अपने भीतर और अपने आस-पास के बारे अच्छी तरह जान लेगी तो वह खुद ही समझदार हो जाएगी क्योंकि जब उसको अच्छे और बुरे का दोनों का ज्ञान नहीं होगा तो वह समझ नहीं पाएगी। और अगर हो सके तो अपने जीवन के अनुभव भी अच्छे हो या बुरे दोनों अपनी बेटी के साथ जरूर शेयर करें।

 बेटी को कैसे समझायें  ....

बेटी को कभी भी पराया होने का एहसास ना होने दें, कुछ लोगों की आदत होती है की बेटी को वह हमेशा एक ताना देते रहते हैं कि तु तो पराया धन है, ऐसे  करने से उसके अन्दर बगावत  की भावना पैदा हो जाती है।
,क्योंकि उसको उस घर में अपनापन नहीं लगता। कभी भी भूल कर बेटी के सामने उसको पराया होने का एहसास ना होने दें।

वैज्ञानिक कारण .....

इस बारे में  वैज्ञानिक धारणा तो यही कहता है कि 14 से 24 वर्ष की उम्र से गुजरती युवतियां अपने कच्ची आयु में ही प्यार कर बैठती हैं  क्योंकि इस समय हारमोंस का बदलाव सबसे ज्यादा होता है और वह लड़कों की तरफ आकर्षित होती हैं । ऐसे में उनके हार्मोन सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते हैं।
 ऐसे मे प्रेम जाल में फंस जाने के कारण होते हैं लेकिन विशेष रूप से यही कहा जाता कि इस आयु में युवक-युवतियों का शारीरिक विकास होता है।

 इस समय  विशेष हार्मोन की वृद्धि होती है जिससे दिमाग तो प्रभावित होता है ,लेकिन  शरीर में भी संवेदनशील अंगों का शरीर के बदलाव के साथ साथ लडकियों  में कई तरह के बदलाव उजागर होते हैं।  
साथ ही साथ हार्मोन के विकास में मस्तिष्क पर भी अनेक प्रभाव पड़ते हैं।

लड़कियाँ इस समय  कल्पना के सागर में डूब जाती हैं तथा उन परिवर्तनों के कारण आत्ममुग्ध सी होती रहती हैं। 
 विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण युविक्तियों में प्रेम भावना को जागृत करता है। जिससे वे आकर्षित होकर नकली प्रेम जाल में फस जाती हैं। कुछ लड़कियां ही ऐसी होती हैं जो इस मार्ग को चुनती हैं ।

ऐसे समय में माँ बाप कया करे-----

ऐसी बुरी परिस्थितियों में मां-बाप को सचेत रहते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि उनका बच्चा इस आयु में करता क्या है ,कहां उठता बैठता है, कब घर आता है, कब जाता है।

इस आयु में युवतियों को उचित प्यार एवं उचित शिक्षा की आवश्यकता है। स्कूल,  पवित्र मंदिर जैसे  जुड़े कुछ लोग भी इन युवतियों के साथ गलत आंचरण करते हैं ।
कुछ तो भोलेपन से लाभ उठाने की ताक में रहते हैं तो कुछ जोर जबरदस्ती करने से नहीं चूकते। इसलिए कुछ बच्चियाँ डर व सहम जाती है।
इसी कारण वो कई बार शिकायत नहीं कर पाती ऐसे में मां बाप को अपने बच्चों की बात जरूर सुननी चाहिए कि वह कहना क्या चाहती हैं।

 इस प्रकार के अनेक बातों पर ध्यान रखना मां-बाप का पहला कर्तव्य ही नहीं बल्कि जिम्मेवारी भी होती है। कच्ची उम्र में डर और भावता दोनों ही बड़े खतरनाक होती हैं। 
कभी-कभी ऐसा समय भी आता है, जब इस भ्रम जाल में सहेलियों का भारी हाथ होता है। यह नासमझ सेहलिया ही उन युवतियों को अपने रंग में रंगने की भरपूर कोशिश करती हैं।
 लड़कियों के इस तरह के बर्ताव में भड़काने में परिवारिक व सामाजिक  सिथ्तियो  के साथ-साथ हमारा जन संपर्क सूत्र भी बहुत ज्यादा सक्रिय है। हमारे मनोरंजन के साधन जैसे टीवी, फोन ,और शिक्षा की बजाय मनोरंजन की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
 यह भी कई बार किशोर लड़कियों को अनैतिक कामों को करने का कारण बनता है।

बच्चो को मोबाइल से सावधान कैसे रखे ....

 सबसे ज्यादा आजकल फोन इसके लिए जिम्मेवार है क्योंकि फोन में ऐसा कोई काम नहीं है जो नहीं दिखाया जाता है। कन्या जब जवान अवस्था में प्रवेश कर रही है तो उसके माता-पिता का पवित्र कर्तव्य होता है उसके अति संवेदनशील नाजुक काल में उसके चित्त का सरक्षण होता रहे ऐसे में घर वातावरण शांत  बना कर रखे।
जिस घर में ज्यादा लड़ाई झगड़े होते हैं, मेरे कहने  का भाव है कि जहां  मां-बाप ज्यादा लड़ते हो तो उस घर में भी लड़कियों को प्यार ना मिलने पर, वह कहीं और प्यार की तलाश करने लग जाती हैं। इसलिए अपने घर का माहौल शांत और सात्विक रखे। 

 11 साल के बाद बच्ची का जीवन  सात्विक सरल होना चाहिए। उसे जीवन की उन महिलाओं की  कथाओं के बारे में जरूर ज्ञान करवाना चाहिए जिससे वह प्रभावित हो सके।

बेटी को लड़को  से सर्तक रहना कैसे सिखायें----
 इस समय अपनी बेटियों को लड़कों के बारे में सतर्क रहना के बारे में जरूर समझाएं और सिखाएं कि किस प्रकार लड़कों से दूरी बनाकर रखनी चाहिए क्योंकि ज्यादातर लड़कों के साथ ज्यादा संपर्क में आने से  लड़कियाँ  इस काल से ही पुरुषों की और आकर्षित होने लगती है।
 किसी  की और आकर्षित होने से शक्ति बिखर जाती है।
 आध् शक्ति के रूप में होते हुए भी जब शक्ति क्षय कर बैठती है तो अबला होकर ठोकरे खाती है ।

ऋषि मुनियों ने जगदंबा के रूप में बालाजी की पूजा की है। पुरुषों के लिए स्त्री का चित्त जितना -जितना बिखरता है, उतना बल नष्ट हो जाता है। 

इसलिए  माता-पिता का प्रथम कर्तव्य है कि अपने निर्दोष बच्चियों को भ्रष्ट पद की ओर जाने ले वाले सिनेमा, नाटक आदि के वातावरण से दूर रखें। अनजान लड़को व व्यक्तियों से सुरक्षित रखे।
 ऐसी सहेलियों से भी बचा कर रखें जो पुरुषों के  साथ जयादा मित्रता रखती हो । इस तरह की सुरक्षा और शिक्षा शुरू से मिलने से लड़कियों में सतीत्व 
पनपता है। वह चरित्रवान सुशील बनकर परिवार ,समाज ,देश एव  पूरी पृथ्वी को पावन कर सकती हैं।

इसलिए अपनी बेटियों को इस तरह की शिक्षा दें ।
 मैं तो आपको यह भी सलाह दूंगी कि अपनी बेटी  हमेशा दोस्त बन कर रहे। उसको हर तरह की अच्छी और बुरी दोनों बातों का ज्ञान बोध कराती रहें। ताकि वह अपने अच्छे बुरे के बारे में अच्छे से सोच सके। यह सोच कर कभी ना संकोच करें कि यह बेटी के साथ बात शेयर करने की नहीं है, क्योंकि बेटियां आजकल बहुत समझदार हो रही है ।

बेटी के दोस्त व सलाहाकार बने- 
अपनी बेटी से हर तरह की बात शेयर करना एक मां का पहला कर्तव्य है। अगर आपके घर में भी जवान बेटी है तो उसके साथ एक दोस्त की तरह रहे और उसकी सलाहकार भी बड़े ताकि वह आपसे हर बात शेयर कर सके ।
और  आप भी उसके साथ हर बात  शेयर करें ताकि वह अपना अच्छा बुरा जान सके।

बढ़ती उम्र के साथ बच्चे अपने आप ही खुद में कुछ बदलाव महसूस करने लगते है। ऐसे में उन्हें बात-बात पर टोकने के बजाएं अपने आप को समझने का मौका दें। अगर बेटी अपने भीतर और आस-पास हो रहे बदलाव को खुद से समझेगी तो अच्छे से निर्णय ले पाएंगी। और जब बेटी जवान हो रही हो तो घर का माहौल भी सात्विक रखना बहुत जरूरी है क्योंकि घर के माहौल का बहुत फर्क पड़ता है बच्चों पर , इसलिए अपने बच्चों से बड़ा कोई धन दौलत नहीं है अगर आपने अपने बच्चों की परवरिश अच्छे से कर ले तो इससे बड़ी कोई और कमाई नहीं है ।


अपनी बेटी को संस्कारों और पढ़ाई लिखाई का दहेज जरूर दें क्योंकि बेटी को ससुराल के घर जाना होता है इसलिए उसको घरेलू कामों में दक्ष करें ताकि ससुराल में किसी भी तरह का काम पर नहीं उसको कोई भी जितना हो क्योंकि संस्कारों का दहेज देना सबसे मूल्
दहेज है अपनी बेटी को ऐसी शिक्षा दें कि वह दूसरे घर में अर्जेस हो सके क्योंकि ससुराल ही उसका असली घर है तथा वहां के सभी सदस्य उसके अपने हैं यही बात बेटी को समझाएं क्योंकि आपकी बेटी के घर के मामलों में अनावश्यक दखल अंदाजी उसके साथ तो क्या आपके दिमाग में बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे
 ससुराल जाने से पहले दे ये संस्कार-
 हर बेटी की शादी का समय होता है इसलिए अपनी बेटी को इस समय ऐसे समझाएं कि आपकी सास  तेरे से ज्यादा अनुभव शील है, उसे दुनियादारी की तुझसे ज्यादा अधिक समझ है, और वह आपसे उम्र में बड़ी है। इसलिए उनकी इच्छाओं को मानना अब तेरा धर्म है । किसी के दिल को प्यार और विश्वास से जीता जा सकता है और उन्हें कभी ऐसा एहसास ना होने दें कि उनकी बहू है , बेटी की तरह तन मन धन से उनकी सेवा करना ही अब तेरा धर्म है। ऐसे संस्कार देकर अपनी बेटी को विदा करें । अपने रूप और प्रतिभा पर कभी भी मान ना करें।  एक सास एक माँ भी होती है। उन्हें आदर सम्मान और प्यार देकर अपना बनाया जा सकता है, ना की अपेक्षा और अनादर करके।
सास भी  बरसों से गृहस्थी  का बोझ ढोती  रही । सास की भी इच्छा होती है कि उसके घर में ऐसी बहू आए जो उसकी जिम्मेवारी को अच्छी तरह संभाल सके ।  एक लड़की के लिए सबसे ज्यादा अपने मायके के सिद्धांतों को छोड़कर अपने ससुराल के नियमों का पालन करना सबसे बड़ा धर्म है। 

 आशा करती हूं मेरा यह लेख उन लोगों के लिए बहुत ज्ञानवर्धक  होगा जो खासकर बेटियों के मां बाप है। अगर यह जानकारी आपको अच्छी लगे प्लीज इसे शेयर जरूर करें। 
posted by-kiran





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