महामृत्युंजय का जप कैसे करें || शिव को खुश करने के लिए महामृत्युंजय का जप करें || महामृत्युंजय करने के लाभ ||



Tittle- महामृत्युञ्जय मन्त्र की महिमा एवं जप विधि विधान कैसे और कब करें -
मनुष्य के जीवन में आधिदैविक , आधिभौतिक , आध्यात्मिक नाना प्रकार के कष्ट आते ही रहते हैं , जिनसे मुक्ति पाने के लिये अनेक प्रकार की और पारलौकिक उपायों का साहारा लेता है।   हमारे हिन्दू धर्म  शास्त्रों में रोग, ग्रहपीडा, भय अकाल मृत्यु  आदि से मुक्ति प्राप्ति के लिये इस मंतर की बहुत बड़ी महिमा बताई गई है।
इसके जल - अनुष्ठान के बलपर मनुष्य अकाल मृत्यु को भी जीत लेता है । इसी को मृतसंजीवनी विद्या भी कहा गया है ।
शुकराचार्य ने इसी मंतर का  दधीचि को उपदेश दिया है । संक्षेप में इसकी विधि निम्न है । किसी शुभ दिन और शुभ नक्षत्र में शिववास देखकर मन्त्र का अनुष्ठान करने के लिये पहले सन्ध्या - वन्दन से पवित्र होकर इच्छित कामना  की सिद्धि के लिये संकल्प , भूतशुद्धि आदि करके मन्त्रजप के लिये इस प्रकार विनियोग करना चाहिये-
' ॐ श्री महामृत्युञ्जयमन्त्रस्य वामदेवहोहलवसिष्ठाऋषय :  पंक्मिर्गायत्रयुष्णिमनुष्टुमश्छन्दांसि

सदाशिवमहामृत्युञ्जयरूद्रो देवता स्त्री शक्ति: बीज महामृत्युंजयप्रीतये ममामष्टसिद्धयर्थे जपे विनियोग:  यह कहकर जमीन पर जल छोड़  दें । इसके बाद न्यास और ध्यान करने के बाद निम्न मन्तर का
51,000 या सवा लाख जप करना चाहिये ।

मन्त्र इस प्रकार है- 
 विशेष जप के लिये अनुष्ठान - विधि देखना चाहिये तथा आचार्य का सहयोग लेना चाहिये

महामृत्युंजय मंत्र के विशेष लाभ-

अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय जप करने का विशेष उल्लेख मिलता है। महामृत्युंजय भगवान शिव को खुश करने का मंत्र है। इसके प्रभाव से इंसान मौत के मुंह में जाते-जाते बच जाता है, मरणासन्न रोगी भी महाकाल शिव की अद्भुत कृपा से जीवन पा लेता है। बीमारी, दुर्घटना, अनिष्ट ग्रहों के प्रभावों से दूर करने, मौत को टालने और आयु बढ़ाने के लिए सवा लाख महामृत्युंजय मंत्र जप करने का विधान है। महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां बरतना बहुत जरूरी है।  जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ आपको मिले और आपको कोई नुकसान न हो। अगर आप नही कर पा रहे इस मंत्र का जाप जो किसी पंडित से जाप कराए यह आपके लिए और अधिक लाभकारी होगा।

आइए जानते है महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते वक्त किन किन  बातों का ध्यान रखना चाहिए।

महारूद्र सदाशिव को प्रसन्न करने व अपनी सर्वकामना सिद्धि के लिए यहां पर पार्थिव पूजा का विधान है, जिसमें मिटटी के शिर्वाचन पुत्र प्राप्ति के लिए, श्याली चावल के शिर्वाचन व अखण्ड दीपदान की तपस्या होती है। शत्रुनाश व व्याधिनाश हेतु नमक के शिर्वाचन, रोग नाश हेतु गाय के गोबर के शिर्वाचन, दस विधि लक्ष्मी प्राप्ति हेतु मक्खन के शिर्वाचन अन्य कई प्रकार के शिवलिंग बनाकर उनमें प्राण-प्रतिष्ठा कर विधि-विधान द्वारा विशेष पुराणोक्त व वेदोक्त विधि से पूजा होती है।

महामृत्युंजय मंत्र का जप करने के लाभ-

महामृत्युंजय मंत्र का जप करने से मांगलिक दोष, नाड़ी दोष, कालसर्प दोष, भूत-प्रेत दोष, रोग, दुःस्वप्न, गर्भनाश, संतान बाधा कई दोषों का नाश होता है।
 
1. लम्बी उम्र - जिस भी मनुष्य को लंबी उम्र पाने की इच्छा हो, उसे नियमित रूप से महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए। इस मंत्र के प्रभाव से मनुष्य का अकाल मृत्यु का भय खत्म हो जाता है। यह मंत्र भगवान शिव को बहुत प्रिय है, इसका का जप करने वाले को लंबी उम्र मिलती है।

2. आरोग्य प्राप्ति - इस  मंत्र का जप करने से  मनुष्य न सिर्फ निर्भय बनता है बल्कि उसकी बीमारियों का भी नाश करता है। भगवान शिव को मृत्यु का देवता भी कहा जाता है। इस मंत्र के जप से रोगों का नाश होता है और मनुष्य निरोगी बनता है।

  3. सम्पत्ति की प्राप्ति -

जिस भी व्यक्ति को धन-सम्पत्ति पाने की इच्छा हो, उसे महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करना चाहिए। इस मंत्र के पाठ से भगवान शिव हमेशा प्रसन्न रहते हैं और मनुष्य को कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

  4. यश (सम्मान) की प्राप्ति -
इस मंत्र का जप करने से मनुष्य को समाज में उच्च स्थान प्राप्त होता है। सम्मान की चाह रखने वाले मनुष्य को प्रतिदिन महामृत्युजंय मंत्र का जप करना चाहिए।

 5. संतान की प्राप्ति - महामृत्युजंय मंत्र का जप करने से भगवान शिव की कृपा हमेशा बनी रहती है और हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंत्र का रोज जाप करने पर संतान की प्राप्ति होती है। 
महामृत्युंजय मंत्र का जप करना परम फलदायी है, लेकिन इस मंत्र के जप में कुछ सावधानियां रखना चाहिए। जिससे कि इसका संपूर्ण लाभ प्राप्त हो सके और किसी भी प्रकार के अनिष्ट की संभावना न रहे। 

 
जप करते समय सावधानियां- 


 1. जो भी मंत्र जपना हो उसका जप उच्चारण की शुद्धता से करें।
 
2. एक निश्चित संख्या में जप करें। पूर्व दिवस में जपे गए मंत्रों से, आगामी दिनों में कम मंत्रों का जप न करें। यदि चाहें तो अधिक जप सकते हैं।
 
3. मंत्र का उच्चारण होठों से बाहर नहीं आना चाहिए। यदि अभ्यास न हो तो धीमे स्वर में जप करें।
 
4. जप करते समय  में धूप-दीप जलते रहना चाहिए।
 
5. रुद्राक्ष की माला पर ही जप करें।
 
6. माला को गौमुखी में रखें। जब तक जप की संख्या पूर्ण न हो, माला को गौमुखी से बाहर न निकालें।
 

7. जप काल में शिवजी की प्रतिमा, तस्वीर, शिवलिंग या महामृत्युंजय यंत्र पास में रखना अनिवार्य है।
 
8. महामृत्युंजय के सभी जप कुशा के आसन के ऊपर बैठकर करें।
  
9. जप काल में दुग्ध मिले जल से शिवजी का अभिषेक करते रहें या शिवलिंग पर चढ़ाते रहें।
 

10. महामृत्युंजय मंत्र के सभी प्रयोग पूर्व दिशा की तरफ मुख करके ही करें।
 
11. जिस स्थान पर जपादि का शुभारंभ हो, वहीं पर आगामी दिनों में भी जप करना चाहिए।
 

12. जपकाल में ध्यान पूरी तरह मंत्र में ही रहना चाहिए, मन को इधर-उधर न भटकाएं।
 
13. जपकाल में आलस्य व उबासी को न आने दें।
 
14. मिथ्या बातें न करें।
 
15. जपकाल में स्त्री सेवन न करें।
 

16. जपकाल में अन्डा, मास, लहसुन प्याज को त्याग दें। 

महमृत्युञ्जय मन्त्र की शास्त्रों के अनुसार जप महिमा-

सूत जी ने कहा- मुत्युञ्जय - मन्त्र ' ॐ जूं सः ' तीन अक्षरों वाला है।  पहले ॐकार का उच्चारण करके जु ( हुं ) का उच्चारण करें ।
तदनन्तर विसर्ग के साथ ' स ' ( सः ) का उच्चारण करना चाहिये।  यह मन्त्र मृत्यु और दरिद्रता का मर्दन करने वाला है तथा शिव , विष्णु , सूर्य , आदि सभी देवों का कारणभूत है ।
ॐ जु सः यह महामन्त्र अमृतेश के नाम से कहा जाता है । इस मन्त्र का जाप करने से प्राणी सम्पूर्ण पापों से छूट जाता है और मृत्युरहित हो जाता है अर्थात् मृत्यु के समान होने वाले उसके कष्ट दूर हो जाते हैं ।
इस मन्त्र का सौ बार जप करने से वेदाध्ययनजनित पुण्यफल तथा यज्ञकृत फल एवं तीर्थ - स्नान दान पुण्यादि का फल प्राप्त होता है ।

तीनों संध्याओं में एक सौ आठ बार इस मन्त्र का जप करने से मनुष्य मृत्यु को जीत लेता है कठिन से कठिन विघ्न - बाधाओं को पार कर जाता है , शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेता है ।
भगवान् मृत्युञ्जय श्वेत कमल के ऊपर बैठे हुए वरदहस्त तथा अभय मुद्रा धारण किये रहते हैं तात्पर्य यह कि उनके एक हाथ में अमय मुद्रा है और एक हाथ में वरदमुद्रा दो हाथों में अमृत कलश है । इस रूप में अमृतेश्वर भगवान् भी ध्यान करना चाहिये ।
 भगवान् के वामांग में रहने वाली अमृतभाषिणी अमृतादेवी का भी धयान करना चाहिए।
देवी के दायें हाथ में कलश और बायें हाथ में कमल सुशोभित रहता है , इस प्रकार माँ भगवती का भी धयान करें। 

 हे शिव ! यदि एक मास तक अमृतादेवी के साथ अमृतेश्वर भगवान् का ध्यान करते हुए मानव ' ॐ जु सः ' इस मन्त्र का तीनो सन्ध्याओं में आठ हजार करे तो वह जरा , मृत्यु तथा महाव्याधियों से मुक्त हो जाता है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लेता है । यह मन्त्र महान् शान्ति प्रदान करने वाला है ।

शिव की महाशिवरात्री का महत्व -
फाल्गुण त्रयोदशी को शिव भगवान जी का पार्वती जी के साथ ब्याह हुआ था- " महाशिवरात्री का व्रत निराहार था सिर्फ 1 समय केवल फलाहार का प्रसाद लेकर व्रत करके शिव लिंग की पूजा , जल , दूध , चंदन , चावल वेलपत्र या पूर्ण विधि और निष्ठा से पूजा करता है उस व्यक्ति का मोक्ष ( मुक्त ) हो जाता है , उसे 1 साल भर की पूजा करने का फल , इस एक समय की पूजा करने से प्राप्त हो सकता है।

Last alfaaz- 
  इस प्रकार शिव भगवान्  कोई भी पूजा करो वह हर तरह से फल देने वाली है क्योंकि शिव की पूजा मे सावन का महीना, शिवरात्रि,  ओम मन्त्र, महामृत्युंजय मंत्र, शिव स्तोत्र, शिव चालीसा आदि  मन्तरो की पूजा की जाती है। शिव भगवान्  कभी भी अपने भक्तों गणों को निराश नहीं करते। आज हमने आपको इस लेख में महामृत्युंजय मंत्र के बारे में बताया है जो हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार बताया गया है। महामृत्युंजय का जप करते समय सावधानियों का जरूर ध्यान रखें। अगर आप खुद ना कर सको तो किसी आचार्य की सहायता से करवाएं। 
 शिव भगवान सृष्टि के रचयिता माने जाते हैं और सभी देवी देवताओं का मंत्र उच्चारण करने से पहले ओम मंत्र का उच्चारण होता है। इसलिए शिव की पूजा करते समय किसी भी प्रकार का संकोच ना करें यह हर प्रकार से फल देने वाली होती है।



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