राधा अष्टमी कैसे मनाये || राधा अष्टमी का महत्व || राधा अष्टमी क्यू मनायी जाती है ||

 Tittle-राधा अष्टमी कब और कैसे मनाऐ-राधा रानी कौन हैं आइए जानते हैं विस्तार से, इसके बारे में हमारे धर्म ग्रंथों मे यह वर्णन मिलता है की श्री कृष्ण की पूजा राधा के बिना अधूरी मानी जाती है।
राधा रानी का महत्व-
हमारे धर्म ग्रंथ श्रीमद्भागवत में राधा का उल्लेख नहीं मिलता, पर हर मंदिर मैं राधा कृष्ण को इकट्ठा दिखाया जाता है और ऐसा भी माना जाता है कि अगर आप श्री कृष्ण का आशीर्वाद चाहते हो तो उसके साथ मां राधा रानी की पूजा अनिवार्य है, क्योंकि भारतीय धर्म और संस्कृति में  राधा सर्वाधिक आराध्य, रस स्वरूपा, अनुपम, मोहक और प्रेम प्रीति का प्रतीक मानी जाती है। 
 राधा की मेहता, श्रेष्ठता और शक्ति का अनुमान केवल इसी बात से लगाया जा सकता है कि कोटि-कोटि भक्त जन श्री कृष्ण की आराधना करते हैं और श्री कष्ण स्वयं श्री राधा की आराधना करते हैं।

राधा और श्रीकृष्ण एक है। ऋग्वेद के एक राधिकोपनिषद्  में कहा गया है कि श्री कृष्ण की गोपी रूप अनेकानेक शक्तियां  हैं और उनमें अंतरगभूता और श्रेष्ठ अलृदिनी शक्ति  राधा है, जिनकी श्रीकृष्ण आराधना करते हैं, वह खुद भी श्री कृष्ण की आराधना करती है ।  राधा और कृष्ण वस्तुतः एक ही हैं,  किंतु लीला करने के लिए उन्हें दो रूप धारण किए हैं ।

* बृज भूमि का यह सौभाग्य रहा है कि यहां श्री कृष्ण और राधा दोनों ने ही जन्म लिया है।  राधा का जन्म भाद्रपद शुक्ला अष्टमी को और उसके 11 माह के पश्चात भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को श्री कृष्ण का जन्म हुआ था।  राधा का जन्म मथुरा से 12 किलोमीटर दूर यमुना के पार उनकी ननिहाल रावल नामक गांव में 
कीर्ति किशोरी की कोख से हुआ था, और बाद में पिता वृषभानु गोप के यहां बरसाना में उनका लालन-पालन हुआ था।
 राधा का जन्म स्थल के संबंध में कोई विवाद नहीं है, किंतु भ्रांति बस उनका जन्म स्थान बरसाना इसलिए कह दिया गया है कि ननिहाल में जन्म के कुछ समय पश्चात ही वह बरसाना आ गई थी। इसलिए राधा को बरसाने वाली राधा कहा जाता है।

 * रटे जा राधे राधे राधे,  मेरी जीवन प्राण राधे, राधे राधे रटने से श्याम मिले,
 राधा जी और भगवान की श्री कृष्ण जी के संयुक्त व्यस्क, चित्र मूर्तियां जितने भी देखने  को मिलते हैं यह सभी
एक ही है क्योंकि यह चित्रों में दो दिखाए जाते हैं।
 वास्तव में है दोनों धर्म के अनुसार यह दोनों केवल 11 वर्ष तक इकट्ठे रहे उसके बाद यह दोनों अलग हो गए थे, फिर कभी आपस में नहीं मिले, पर ऐसा भी माना जाता है क्योंकि यह शरीर से अलग हुए थे रूह से नहीं, इसलिए अगर आप भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद पाना चाहते हो तो मां राधा रानी की पूजा उससे भी पहले की जाती है तभी आपकी पूजा सफल मानी जाती है।

राधा अष्टमी कब है -
 हिंदू मान्यता के अनुसार कृष्ण के जन्मदिन कृष्ण जन्माष्टमी के बाद 15 दिन बाद 
राधा रानी का जन्मदिन मनाया जाता है। राधा रानी भले ही उनकी पत्नी नहीं बनी   पर उनकी पूजा हमेशा उनके साथ होती हैं, क्योंकि बिना राधा के कृष्ण की पूजा अधूरी मानी जाती है। 
 राधा रानी को हम सब कृष्ण  की प्रेमिका के रूप में याद किया जाता है।  हिंदू धर्म के अनुसार ऐसी मानते हैं श्री राधा के बिना कृष्ण की पूजा अधूरी है। यदि आप कृष्ण के जन्मदिन पर भगवान कृष्ण की पूजा कर रहे हैं तो राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की भी पूजा अवश्य करें ,क्योंकि राधा जी के पूजा करने से भगवान कृष्ण खुश होते हैं, और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं।
 आइए जानते हैं कब है राधा अष्टमी और उसका क्या महत्व है- 

भगवान श्री कृष्ण की प्रेमिका राधे राधे रानी का जन्म भादो माह के शुक्ल पक्ष अष्टमी के दिन मनाया जाता है। इसलिए राधा अष्टमी के नाम से जाने जाते हैं। इस बार भाद्र मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 4 सितंबर को  मनाई जा रही हैं। राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त 10 बजकर 40 मिनट से शुरू होगा। 

राधा अष्टमी की पूजा विधि -
राधा अष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें और फिर पूजा घर में तांबे के पात्र में राधा जी की मूर्ति स्थापित करें। राधा रानी की पूजा के लिए तांबे के कलश में जल रखें अब आपको उनके श्रृंगार के लिए  कुमकुम ,चावल, फल ,फूल, धूप दीप और रोली अर्पित करें ।
इस दिन राधा रानी के साथ बांके बिहारी की पूजा करना भी अत्यंत शुभ और लाभकारी माना जाता है।

पुजा का महत्व-
राधा अष्टमी की पुजा का महत्व हिंदू धर्म के अनुसार भगवान कृष्ण की पूजा बिना राधा रानी के अधूरी मानी गई है।
 इस दिन शुक्ल पक्ष के दिन भगवान कृष्ण की प्रिय राधिका जी का जन्म हुआ था। ऐसे में जो लोग राधा अष्टमी का व्रत रख इस दिन राधा रानी के साथ द्वारकाधीश भगवान श्री कृष्ण की पूजा करते हैं और उन पर भगवान श्री कृष्ण अपने विशेष कृपा बरसाते हैं।
 ऐसी धारणा है कि विवाहित दंपत्ति को राधा अष्टमी का व्रत रखकर पूरे विधि विधान के साथ पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से पति पत्नी के बीच में प्यार बना रहता है और घर में लड़ाई झगड़े नहीं रहते और बरकत रहती हैं।

अगर  आपके लिए संभव हो तो इस दिन अपने घर में राधा रानी और भगवान कृष्ण की चौकी सजा कर कीर्तन भी आप घर में करवा सकते हैं। ऐसा करने से पूरा साल घर में बरकत और सुख शांति और समृद्धि रहती है , पर यह तभी संभव है अगर इसके लिए परिवार और आपका हमसफर राजी हो। किसी भी तरह की पाठ के लिए घर में कलेश नहीं होना चाहिए अगर पूरे परिवार की सहमति हो तभी घर में कीर्तन और पाठ करना चाहिए।

 राधा अष्टमी पर कीर्तन करने का महत्व-

 कीर्तन करने का एक विशेष महत्व है क्योंकि ऐसा करने से घर में भजन और म्यूजिक instrument बजाए जाते हैं जिससे घर की नैगटीव  ऊर्जा खत्म हो जाती है और हमारे घर में पौजटिव तरंगे  उतपन्न  होती है।  इसलिए ऐसे त्योहारों पर कीर्तन करने का विशेष महत्व बताया गया है और और किर्तन  में  तालियां बजाने से हमें स्वास्थ्य लाभ पहुंचता है क्योंकि हाथों की तालियां बजाने से हाथों में  कुछ ऐसे पॉइंट होते हैं जिनसे हम कुछ बीमारियों को खुद पर बैठे ठीक कर सकते हैं। 

* घर में सुख शांति और बरकत के लिए कुछ उपाय राधा अष्टमी के दिन करें- 

* पति पत्नी अगर अपने जीवन में खुशियां और सुख समृद्धि चाहते हैं तो घर में राधा कृष्ण का चित्र अपने कमरे में  लगाएं। 


* घर में बरकत और आशीर्वाद पाने के लिए राधा और कृष्ण की पूजा साथ-साथ करें और इन दोनों के चित्र बाल रूप में रखें।

* अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए कृष्ण से पहले राधा माता की पूजा करें।


* धन की मनोकामना पूरी करने के लिए राधे राधे मंत्र का जाप प्रतिदिन करें ऐसा करने से आप के कारोबार में तरक्की होगी और धन में वृद्धि होगी।

* संतान प्राप्ति के लिए लड्डू गोपाल के साथ मां राधा रानी की बाल रूप की प्रतिमा रखें।

* बच्चों का पढ़ाई में मन लगे इसके लिए भगवान श्री कृष्ण के मुकट से कुछ मोर पंख उनके स्टडी टेबल  के पास रखें।

Disclaimer-
इस लेख में दी गई जानकारी हिंदू धर्म के अनुसार दी गई है हमारी तरफ से कोई खुद की कोई जानकारी नहीं है इसलिए हम इसकी पुष्टि नहीं करते यह सब धर्म ग्रंथों के अनुसार लिखा गया है।

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