फलों का सेवन करने का लाभ | Fruits benefits in Hindi | फलो का स्वास्थ्य सम्बन्ध |


  Tittle फल खाने के फायदे और नुकसान -
आज हम इस लेख के माध्यम से यह जानने की कोशिश करेंगे कि कौन सा फल कब खाना चाहिए कब नहीं खाना चाहिए और क्या क्या फायदे होते हैं फल खाने के।
 कई बार फलों का रस ज्यादा पीना भी नुकसानदेह साबित हो सकता है।  अगर हम बच्चों को फलों का जूस जरुरत से ज्यादा देते हैं तो उन्हें डायरिया, पेट दर्द,  पेट में गैस, व पेट फूलने की शिकायत हो सकती है। फलों के जूस में प्रोटीन ,वसा, खनिज लवण और विटामिन सी के अलावा अन्य विटामिनों के उपयुक्त मात्रा नहीं होती। फलों के जूस में  कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है, जिसे अगर अधिक मात्रा में लिया जाए तो इससे पेट दर्द, डायरिया जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसलिए 1 से 6 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिदिन 4 से 6 औस तक और 7 से 18 वर्ष तक के बच्चों को 8 से 12 औंस तक ही जूस  देना चाहिए। ज्यादा छोटे बच्चों को जूस नहीं पिलाना चाहिए और बोतलबंद जुस बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से उनको दांतों के रोग हो सकते हैं ।आइए जानते हैं विस्तार से कौन सा फल खाने से हमारे स्वास्थ्य को क्या लाभ मिल सकता है ।आज हम अपने घर में पाए जाने वाले आम तौर पर उन फलों के बारे में बताएंगे जो आमतौर पर हमें बाज़ार  में आसानी से मिल जाते हैं। 

सेब खाने के स्वास्थय लाभ - 
 डॉक्टरों के अनुसार सेब को सबसे ज्यादा गुणकारी फल माना गया है। सेब में कुछ ऐसे गुण पाये जाते हैं जो  कैंसर जैसी भयंकर बीमारी को भी को दूर भगाता है।  सेब के बारे में  नवीन शोधों से पता चलता है कि जो लोग प्रतिदिन एक सेब खाते हैं , उन्हें गुर्दे का कैंसर होने की  सम्भावना  60% कम होती है। अधिक फलों का सेवन करना  भी कैंसर होने की संभावना को कम करता है इसलिए अपने भोजन में संतरा , केला , गाजर आदि फलों व सब्जियों को शामिल करें । अंग्रेजी में कहावत है- एक सेब रोज खाओं , डाक्टर को दूर भगाओं।
 सेब में कई तरह के विटामिन और खनिज है । 
सेब खाने के स्वास्थय लाभ-
यह सिर दर्द , पेट दर्द और दिल की बीमारियों , जोड़ों के दर्द , अनिद्रा और उच्च रक्तचाप में फायदा पहुंचाता है । दिल की बीमारी में सेब खाना चाहिये । इसमें पोटाशियम और खनिज  काफी मात्रा में  होता है । 
  इसमें पाए जाने वाला खनिज  खनिज हृदय के लिए बहुत लाभदायक है । 
गठिया और जोड़ों के दर्द में 250 ग्राम  सेब का रस हर रोज पीना चाहिये पेचिश  अगर हो तो दो सेब को भूनकर या उबालकर हर रोज खाना  चाहिए।  जिन लोगों की पाचन क्रिया ठीक न हो , वो दो कच्चे सेब  खाएं । बच्चे को दस्त लगे हों , तो सेब को छीलकरगूदा बनाकर चार बड़े चम्मच खिलाएं । दिन में कई बार दें । पेट की बीमारियों में सेब छीलकर गूदा बनाकर पिसी दालचीनी के साथ लें । 
भोजन के बीच तीन बार लें । सेब दांतों के लिए भी बहुत मुफीद है । यह लौह तत्व  का भंडार है । भोजन के बाद इसे चबा - चबाकर खाएं यह दांतों की सफाई करता है।  
सेब का फल वात - पित्तनाशक , पौष्टिक , गुरु , पाक तथा रसमें मुधर , शीतल , रुचिकारक एवं वीर्यवर्द्धक होता है । यह मूत्राशय तथा वृक्कों की शुद्धि करता है । सेब के सेवन से नाड़ियों एवं मस्तिष्क को शक्ति मिलने के कारण यह स्मरणशक्ति की दुर्बलता , उन्माद , बेहोशी तथा चिड़चिड़ापन को ठीक करता  है । सेब को कच्चा खाने से जीर्ण तथा असाध्य रोगों में विशेष लाभ होता है । 
सेब का छिलका रेचक होता है , अतः ग्रहणी , अतिसार , प्रवाहिका प्रभृति उदर - व्याधियों में छिलके सहित इस  फल के सेवन से लाभ होता है । वायु के अनुलोमन एवं कब्ज में छिलका न उतारे , दस्त आदि में सेब का मुरब्बा गुणकारी है । सेब में विटामिन सी अधिक मात्रा में होता है  जो 
हमारी त्वचा के लिए बहुत ही लाभदायक है ।
सेब में  सभी प्रकार के संक्रमण को दूर करने व आंतों के रोगाणुओं को निकालने वाला , स्नायुओं को शक्ति देता है, मगर रह हमारे शरीर का भी वजन कम करता है । सधिबात गठिया, टी ० बी ० , गुर्दे , पथरी की उत्तम औषधि है । सेब का रस पूर्व उचित आहार है । रक्त की सफाई एवं श्रेष्ठ बैरन तथा नर्व टानिक है । सेब एंटीकैंसर है- न्यूयार्क स्थित कॉरनल यूनीवर्सिटी के विशेषज्ञों के अनुसार सेब में एन्टीकैंसर तत्व भरपूर मात्रा  में पाया जाता है जिससे कैंसर होने की संभावना कम होती है । सेंब में फ्लेवेनोइड्स व पोलीफिनोलस नामक तत्व पाए जाते हैं जो एंटी ऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करते हैं व कैंसर की संभावना को कम करते हैं । विशेषज्ञों के अनुसार 100 ग्राम सेब में 1500 मिलीग्राम विटामिन सी पाया । जाता है ।
सेब में इतने गुण हैं कि वह किसी भी प्रकार से हमें नुकसान नहीं पहुंचाता। वह हर तरह से फायदा ही फायदा देता है इसलिए प्रतिदिन एक सेब अवश्य खाये। 

अंगूर
अंगूर के  फल में प्रबल कीटाणुनाशक तत्व होते हैं यह हिमोग्लोबिन की शीघ्रता से वृद्धि करता है । यह पूर्व उचित आहार है । बूढ़ों , बच्चों , मानसिक दृष्टि से अस्वस्थ रोगियों के लिए अत्यन्त हितकारी है । किड़नी हाई बी पी , हॉर्ट रोगी में लाभ करता है । कैंसर को ठीक करता है ।  अंगूर खाने से मूत्र खुलकर आता है ।

 अंजीर-----
 यह फल छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से खाने चाहिये । इससे उनहें शक्ति प्राप्त होती है । ताजे अंजीर अधिक पौष्टिक होते है । ये कब्ज को दूर करते हैं । ताजे अंजीर के रस में स्थित लौह तत्त्व सुपाच्य होने के कारण शरीर में पूर्णतः आत्मसात् हो जाता है । अंजीर ठंडे , मधुर और गरिष्ठ होते हैं तथा पित्तविकार , रक्तविकार और वायु का नाश करनेवाले होते हैं । इन्हें दूध के साथ लेने से कब्ज में लाभ होता है । ताजे अंजीर का रस मूलत है  इसलिए  इससे मूत्रसम्बन्धी शिकायतें दूर हो जाती है । यह यकृत् , जठर और आंतों को कार्यक्षम रखता है । यह कब्ज , थकान और कमजोरी को दूर करता  है।

अनार- ----

यह फल  डाक्टर एवं वैद्य स्वास्थ्य के लिए हितकर मानकर रोगी को पथ्य रूप से इसे खाने को देते हैं । मीठे अनार त्रिदोष नाशक , तृप्तिदायक , वीर्यवर्द्धक , उष्णता शमन , बलवर्धक और मानसिक निर्बलता के लिए अधिक लाभकारी होते हैं । खट्टे - मीठे अनार का उपयोग अग्निमाद्य , अपचन , अरुचि , उबाक , अतिसार आदि रोगों को दूर करके स्वास्थ्य की उन्नति के लिए  हितकारी है।
खट्टे अनारदानों का उपयोग भोजन ,शाक , चटनी आदि को रुचिकर बनाने, पचन कराने, आम और कफ की उत्पत्ति को रोकने के लिए होता है।   एवं यात शमनार्थ की गौण औषधि रूप से व्यवहृत होता है । गर्मी के  दिनों में धूप में घूमने से उत्पन्न बेचैन को दूर करने के लिए मीठे तथा खट्टे  अनार के रस के शर्बत से मस्तिष्क को व हृदय को पौष्टिक गुण अधिक मिलता है । ऐसे ही खट्टे - मीठे अनार के रस का शर्बत बेचनी दूर करने में अधिक हितकारी होता है । सगर्मा को वमन पर थोड़ा - थोड़ा खट्टे - मीठे अनार का रस या अनार शर्बत का सेवन कराते रहने से यमन शान्त हो जाती है और क्षीणता नहीं आती ।
 ज्वर पीड़ित रोगियों के लिए यह पथ्य है चक्कर आना ,आंखों में चकाचौंध होना , सिरदर्द , धूप सहन न होना , पेट भारी मालूम पड़ना . थोड़ा चलने पर थक जाना , इनमें मधुर अनार अत्यंत लाभदायक है । प्रवाहिका , अतिसार , उदर - कृमि , आमातिसार , क्षयरोग , स्वर - विकृति , निर्बलता , तृषा , कास , रक्तातिसार , सगर्मा की निर्बलता इन रोगों में मधुराल अनार पथ्य रूप से लाभ दर्शाता है एवं गर्मी के दिनों में व्याकुलता को दूर करने , तृषा को शान्त करने के लिए व्यवहृत होता है ।

अमरूद -  (या जामफल )
अमरूद  एक सस्ता और गुणकारी फल है  जो जब सारे भारत में पाया जाता है,  संस्कृत में हम इसे अमृत फल भी कहते हैं।
यह शक्ति दायक, सत्वगुणी एवं बुद्धि वर्धक  माना जाता है। भोजन के एक-दो घंटे के बाद इसे खाने  कब्ज , अफरा आदि की शिकायतें दूर होती है ।
 सुबह खाली पेट अमरुद को खाना बहुत लाभदायक माना जाता है जाता है । 

 विशेष-  अधिक अमरूद खाने से वायु , दस्त एवं ज्वर की उत्पत्ति होती है ,जिनकी पाचनशक्ति कमजोर हो , उन्हें अमरूद कम खाना चाहिये । अमरूद खाते समय इस बात का धयान रखना  चाहिये कि इसके बीज और  दूध  के बीच में  दो घन्टे का अंतराल अवश्य रखे ।
 सर्दी - जुकाम-  होने पर एक खाते समय इस बात का जामफल खाने के बीच दो - तीन जामफल का गुदा बिना बीज के खाकर एक गिलास पानी पी ले । दिन में ऐसा दो - तीन बार करे । पानी पीते समय नाक से सांस न ले और न छोड़े ।  एक नाक से ही सांस बाहर फेंके । इससे नाक बहने लगेगा नाक बहना शुरू होते ही जामफल खाना बंद कर दें ऐसे करते हुए दो-तीन दिन में जुखाम झड जायेगा  फिर  एक - दो दिन में जुकाम झडने के बाद  रात को सोते समय पचास ग्राम गुड़ खाकर बिना पानी पिये सिर्फ कुल्ला करके सो जाये । जुकाम ठीक हो जायेगा । 

खांसी : एक पूरा जामफल आग की गरम राख में दबाकर सेंक लें और दो - तीन दिनतक - प्रतिदिन इस प्रकार एक जामफल खाने से कफ ढीला होकर निकल जाता है और खांसी से आराम हो जाता है ।
  
सूखी खांसी - इसमें पके हुए जामफल को खूब चबा - चबाकर खाने से लाभ होता है । कब्ज  होने पर पर्याप्त मात्रा में जामफल खाने से कब्ज नहीं रहता । जामफल काटने के बाद उस पर सोंठ , काली मिर्च और सेंधा नमक भुरभुरा ले । फिर इसे खाने से स्वाद बढ़ता है और पेट का अफरा , गैस तथा अपच दूर होता है इसे सुबह निराहर ( खाली पेट ) खाना चाहिये या भोजन के साथ खाना चाहिये 

शिशु सम्बन्धी रोगो के लिए -
बच्चों को पतले दस्त  बार - बार लगते हो तो इसके कोमल तथा ताजे पत्तों एवं जड़ की छाल को उबाल कर काढ़ा बना ले और दो - दो चम्मच सुबह - शाम पिलाये इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलाने से उल्टी तथा दस्त होना बंद हो जाता है ।

पागलपन एवं मानसिक उत्तेजना -
मानसिक उत्तेजना , अतिक्रोध , पागलपन अथवा अति विषय - वासना के रोग में भिगोय हुए  तीन - चार पके हुए  जामफल सुबह खाली पेट खाना लाभदायक है । दोपहर के समय भी 3-4 पके हुए जाम पर खाये ऐसा करने से मस्तिष्क की उत्तेजना कम होते हैं और मानसिक शान्ति मिलती है।
 
अंगूर के फायदे-

 अंगूर में शर्करा 25 प्रतिशत होती होता है  और लौह  तत्व अधिक मात्रा में पाया जाता है। जो हमारे खून में हिमोग्लोबिन बढ़ा देता है और खून की कमी वाले रोगियों के लिए यह वरदान स्वरुप फल है।  यह प्रबल कीटाणुनाशक है।  इसका सेवन करने से  आंतें, किडनी ( गुर्द )  और लिवर अच्छी तरह काम करते हैं ,  कब्ज दूर होती है और मूत्र संबंधी बाधाएं दूर होती है । अंगूर में पर्याप्त विटामिन ए और दुर्बल लोगों के लिये बल देनेवाला है ।  यह अनुपम आहार है।
इसमें पोटेशियम बहुत अधिक मात्रा में होता है पर्याप्त मात्रा में होता है  जो किडनी के रोग, हाई ब्लड प्रेशर ,तथा चरम रोग में लाभकारी होता है। शरीर में शक्ति संचार के लिए अंगूर का रस अद्वितीय है । 

कैंसर , टी ० बी . तथा हृदय के रोगियों के लिये यह शक्तिदायक है । कई लाइलाज बीमार में अंगूर का रस - कल्प अमृत के समान काम करता है । लंबी बीमारी के बाद शरीर में आयी कमजोरी को दूर करने में यह रामबाण सिद्ध हुआ है । कई आंतों के कैंसर रोगी अंगूर - कल्प से स्वस्थ हुए हैं । पके हुए  अंगूर को सुखाने से  कि किशमिश भी बनता है.  जिसे हम संस्कृत में दाखे भी कहते हैं। संस्कृत में द्राक्षा कहते है ।  आयुर्वेद की बहुत सारी दवाइयां किशमिश  से बनाई जाती हैं आयुर्वेदिक दवाए- द्राक्षासव, द्राक्षारिष्ट ,द्राक्षावलेह आदि इसी से बनते हैं । 
अंगूर का रस छोटे बच्चों को 50 ml से अधिक नहीं देना चाहिए .


अनन्नासः-----
अनन्नास रस में स्थित क्लोरीन शरीर के भीतरी विषों को बाहर निकाल देता है । पका हुआ आनानास , रूचिकर , पाचक  मूत्रल , कृमिघ्न एवं पित्तशामक है  और यह रूचिकर और  वायुहार फल है।
अनन्नास को खाली पेट नहीं खाना चाहिए ।
अनन्नास का बाहरी छिलका और भीतरी गर्भ निकालकर , शेष भाग के टुकड़े करके , उसका रस निकालकर पीना चाहिये । गर्भवती महिलाओं को कच्चा अनन्नास नहीं खाना चाहिये एवं पके हुए अनन्नास का भी
अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए।

 अन्ननास का ताजा रस गले के रोगों से लड़ने में रक्षा करता है। डिप्थेरिया में  और गले तथा मुंह के जीवाणुजन्य  रोगों में बहुत ही प्रभावशाली सिद्ध होता है ।

केला-
  यह फल सस्ता और सर्वसुलभ होने के साथ - साथ अत्यंत पोष्टिक  है इसमें प्रोटीन के  अलावा , विटामिन ,खनिज प्रचुर मात्रा में विद्यमान होते है , विटामिन - बी भी अल्प मात्रा में मौजूद है ।
 एक सामान्य आकार के कले से  लगभग 100 कैलोरी ऊर्जा मिलती है । रक्तनिर्माण हेतु केले की नेन्द्रन व मलाई  नामक प्रजातियां सबसे उत्तम माने जाती हैं।

  बवासीर के लिए उपाय-
 यदि पका केला कुचलकर  दूध में उबालकर दिन में दो-तीन बार लिया जाए तो बवासीर में बहुत अच्छा कार्य करता है ।

आन्त्रिक ज्वरः 
एक पका हुआ केला चार चम्मच  शहद में  मिलाकर  सुबह और श्याम ले। 

टी. बी. की बीमारी होने पर आयुर्वेद चिकित्सा में अकेला अत्यंत प्रभावकारी माना गया है। एक पका हुआ केला, एक चम्मच शहद, एक कटोरी  नारियल की पानी एक कटोरी दही के साथ टी बी के रोगी को दिया जाना चाहिए।

घाव -  यदि घाव या जले हुए स्थान पर केले को बारीक पीस कर लगा दिया या फिर ऊपर से पट्टी बाधं दी जाए तो दाह में शांति मिलती है और धाव भी जल्दी भर जाता है ।
पथरी रोग के लिए -
केले के तने का रस गर्दे व पित्ताशय की पथरी निकालने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।

 मूत्र रोग- केले के तने का रोगों की चिकित्सा में अत्यंत प्रभावकारी है केले के तने का रस 4 चम्मच की मात्रा में प्रातः और सायं लें । प्रोस्टेट वृद्धि की चिकित्सा हेतु भी केले का रस इसी मात्रा में लिया जा सकता है । 

मोटापा बढ़ाने के लिए-
2 केले रोजाना खाने चाहिए 
 जो व्यक्ति बहुत कमजोर है , मोटा होना चाहते है  तो प्रतिदिन केले का सेवन करें । छः माह ही उन का शरीर भर जायेगा ।

 स्त्रियों को श्वेत प्रदर  रोग  में केला खा कर दूध में एक चम्मच शहद मिला कर पीना चाहिये ।
 दाद - खुजली-
पके केले को लेकर गुद्दा निकाल लें और उस में एक नींबू का रस मिलाकर दाद - खुजली वाले स्थान पर लेप की तरह से लगा लें । दाद - खुजली जाती रहेगी । 

 बच्चों के लिए -
बच्चों के लिए केला एक पौष्टिक आहार से कम नहीं है । चूंकि केले में रक्त वृद्धि वाले तत्व लौह , तांबा और मैग्नीज होते है । अतः यह रक्त को लाल व साफ रखने सहायक होता है । दूध के साथ केले का सेवन संपूर्ण आहार माना जाता है । पके केले को छाया में सुखा कर , कूटकर कपड़े से छान लें । इसे दूध में मिलाकर छोटे बच्चों को दें । इससे बच्चे की भूख तो शांत होगी है . साथ ही बच्चे का शारीरिक विकास भी तेजी से होता है । 

सावधानिया-
 पाचन शक्ति खराब हो तो केले का सेवन करना उचित नहीं । सर्दी - जुकाम में केला  न खाएं । केला खाकर तुरंत पानी पीना हानिकारक है । एक समय में 2-3 से 
अधिक केलों का सेवन नहीं करना चाहिये । रात को केला खाने से गैस बनती है । 

 पीलिया :-
 एक पका हुआ केला चार चम्मच शहद के साथ सुबह और लिया जाए तो पीलिया में बहुत जल्दी आराम  करता है ।

 मासिक धर्म सम्बन्धी दोषः -
मासिक धर्म के होने , मासिक के समय अधिक मात्रा में रक्त जाने इत्यादि दोषो में  केले के  फूल अत्यन्त प्रभावकारी हैं ।
 केले के फूलों के सेवन में शरीर से प्रेजेस्ट्रोजन हारमोन का स्तर बढ़ता है जिससे मासिक धर्म सम्बन्धी शिकायतों के अलावा अन्य स्त्री रोगों की चिकित्सा में भी सहायता मिलती है । इन रोगों की सहायता हेतु केले के फूल पका कर दही के साथ खाने चाहिये । केला खाने पर अजीर्ण हो जाए तो ऊपर से इलायची का सेवन करें ।
जामुन:- 
यकृत के रोगों में जामुन का रस बहुत लाभ करता है । आयुर्वेद में जामुन को दीपक ,  पितहर , दहा नाशक,  मूत्रल  बताया गया है । 
लाभ-
जामुन को तिल्ली और यकृत  के रोगों के  लिए आमोध औषधि  माना गया है।
जामुन का रस हृदय के लिए बहुत ही हितकारी है, यह पांडु रोग में भी लाभ करता है और मूत्र पिंड के दाह में आराम देता है। यह फल मधु रोगियों के लिए भी बहुत उत्तम औषधि है। जामुन एक तरह से बहुत ही सामान्य फल है, किंतु रोगों में अति लाभकारी हैं। जामुन कई प्रकार की होती हैं बड़ी व छोटी। जामुन का फल कै साथ साथ  इसके पत्ते और गुठली भी लाभदायक होती है । जामुन की गुठली का चूर्ण मधुमेह रोगियों के लिए वरदान स्वरुप है।


 पपीता -

  यह फल  गुण और स्वाद की दृष्टि से पपीता सब फलों से उच्च श्रेणी का माना जाता है ।  यह गरिष्ठ पदार्थों का सेवन करने पर उनको पचाने की शक्ति पैदा करके मंदाग्नि से बचाता है । पपीता शरीर की सात धातुओं पुष्ट करने में अपना योगदान देता है .।
 गुणों की दृष्टि से पपीता अरुचि दूर करने वाला , भूख बढ़ाने मे सहायक और मूत्रल है । यह कब्ज दूर करता है तथा वात एवं कफ में लाभकारी होता है । यह पाचन संस्थान के लिए बड़ा उपयोगी है । यकृत व वृक्फ की कार्यशीलता को बढ़ाता है तथा मूत्रवाहक संस्थान का शुद्धिकरण करने में सहायक होता है ।  विभिन्न रोगों में पपीता प्लेग , उदर , जिगर व तिल्ली के रोग , दर्दढ धर्मरोगों , गर्भपात , अर्श तथा स्त्री रोगों में पपीता बहुत लाभकारी है । 

प्लेग- 
 तीव्र वेग से ज्वर चढ़कर बगल  कांख  में गिल्टी निकलने वाली यह भयंकर बीमारी चूहे के पिसू के काटने से होती है । इस बीमारी का आक्रमण होते ही पपीते के बीजों का आधी रती चूर्ण पानी के साथ दो दो घंटे के बाद देने से 24 घंटे के अंदर ही बुखार और पीड़ा दूर हो जाती है तथा गिलटी भी नरम पड़ जाती है।

बवासीर- 
पपीता खूनी और सुखी बवासीर  दोनों तरह की बवासीर को ठीक करता है। बवासीर के रोगीयो को पपीता अपने भोजन में जरूर शामिल करना चाहिए।

  उच्च रक्तचाप वाले रोगी को सुबह खाली पेट पके हुए पपीता खाने चाहिए। 

  दाद , खाज , खुजली कच्चे पपीते का ताजा रस खुजली वाली जगह अथवा दाद पर कुछ दिन लगातार लगाने से दाद , खाज अथवा खुजली की बीमारी खत्म हो जाती है ।

 कच्चा पपीता कुछ दिनों तक दवा की तरह खाने से खूनी बवासीर तथा पाचन विकार दूर होते हैं । 

 3 ग्राम कच्चे पपीते के रस में 3 ग्राम शक्कर मिलाकर इसकी 3 मात्रा करके दिन में 3 बार पिलाने से कुछ ही दिनों में तिल्ली कम हो जाती है । 

 
मुंह के छाले , जीभ में दरारे पड़ने पर पपीते का चूर्ण , ग्लिसरीन मिलाकर जीभ पर लगाये । कच्चे पपीते को दाद पर मलने से कुछ ही दिनों में लाभ होगा । 

 
मौसमी------
इस फल का रस पीने से जीवन - शक्ति और रोगों के प्रकार की शक्ति बढ़ती है । यह स्वादिष्ट शीतल तर्पक,  तृषाहार , लाजगी देनेवाली गुरु ,वृष्य , पुष्टिकारक , धातुवर्धक है । यह वात , पित ,  कफ, वमन, रक्त  रोग और अरूचि  में गुणकारी है । मौसमी  में  क्षारतत्व है जो रक्त की अम्लता को कम करता है । जब ज्वर आदि में अन्य आहार न लिया जा सकता हो तब शक्ति बनाये रखने के लिये तथा शरीर को पोषण देने के लिये मौसीमी का रस बहुत गुणकारी है ।  इससे पेट की अम्लता कम होती है , भूख लगती है और पाचन संबंधी सभी तरह की तकलीफे दूर होती हैं।

लीची -
यह फल एक तरह से ' प्राकृतिक रसगुल्ला ' और फलों की रानी के नाम से जाना जाता है  । यह सबकी लोकप्रिय है।
 लीची में भरपूर औषधीय गुण पाए जाते हैं । लीची के लगातार सेवन से दिल की कमजोरी , पायरिया , पाचन शक्ति की कमी में काफी लाभ होता है । बच्चों के दांतों के विकास में तथा दांत जल्दी निकलने में सहायता मिलती है । निमोनिया , काली खांसी , क्षय रोग एवं रक्त पित्त में यह परम लाभप्रद फल है । लीची के बीच में साइनीडिन डायग्लाई को साइड और पीला एंथोजेथिन मिलता है, जो स्नायु जनित व्याधियों को अचूक औषधि फायदा पचने में भारी । लीची उच्च रक्तचाप , हृदय रोग , मस्तिष्क दीर्बल्यता , यकृत की खराबी में है बहुत लाभदायक होता है ।
खरबूजा------
 जीर्ण खाज में खरबूजे का रस अत्यन्त लाभप्रद है । तेज धूप में इसकी शीतलता अतिशय शान्ति प्रदान करती है । इसमें विटामिन - सी पाया जाता है । अत्यन्त शीतल होने के कारण , इसके सेवन से पेट की जलन शान्त होती है । इसमें रहनेवाले क्षार शरीर की अम्लता को दूर करते हैं । इसमें कब्ज दूर करने , कैंसर , दिल की बीमारी , मोतियाबिन्द , हाई ब्लडप्रेशर आदि का गुण भी पाया जाता है । खजबूजे का रस शक्तिवर्धक के रोगों में लाभदायक है । जीर्ण रोगों को दूर करने और मूत्रल है फल के उपयोग और मूत्रपिण्ड से अच्छा लाभ होता है । इससे पेशाब भी साफ होता है और वीर्य बनता है । इसका असर चूंकि ठंडा होता है , इसलिए दिमाग में तरावट पैदा करता है और उसे ठंडक पहुंचाता है , किसी भी फलवाली सब्जी की तुलना में 
इससे अच्छी कोई सब्जी नहीं क्योंकि इसमें सबसे ज्यादा क्षारीय गुण होते हैं । जिन लोगों को अम्लीयता की शिकायत है , वे आराम से इसे ले सकते हैं । इससे पाचनक्रिया में सहायता मिलती है । अजीर्ण के मरीजों के लिए बहुत जयादा  फायदेमंद है । खरबूजा अपने आप में एक सुप्रसिद्ध जुलाब है । अगर पुरानी कब्ज ( खासतौर से बवासीर ) व मंद सूजन की वजह से या मलछिद्र सूजन की वजह से हो , तो उसमें यह काफी फायदेमंद साबित होता है । ढलती उम्र वालों के लिए उत्तम आहार है । तृप्ति कारक शीतल , वलवर्द्धक , पित , वायु कब्ज निवारक होता है । 

आंवला -------
 आंवले में जितने  रोग - प्रतिरोधक , रक्त - शोधक और बल - वीर्यवर्धक तत्त्व हैं , उतने संसार की किसी वस्तु या औषधि में नहीं है । इसलिये स्वास्थ्य - सुख चाहनेवालों को अपने आहार में आंवले को प्रमुख स्थान देना चाहिये ।
 लगभग बीस ग्राम च्यवनप्राश एक गिलास दूध के नियमित सेवन करने से आप इसके चमत्कारी आशुफलप्रद गुणों से परिचित हो जायेंगे । यह पुनर्योवन प्रदान करनेवाला सर्वश्रेष्ठ आहार है ।  आंवलों के मौसम में नित्य प्रातः व्यायाम या भ्रमण के बाद दो पके पुष्ट हरे आंवलों को चबाकर खायें और यदि इस प्रकार कच्चा आंवला न खा सके तो उसका रस ( दो चम्मच ) और शहद ( दो चम्मच ) मिलाकर पीयें ।  जब आंवलों का मौसम न रहे तब सूखे आंवलों को कूट - पीसकर कपड़े से छानकर बनाया गया आंवलों का चूर्ण तीन ग्राम ( एक चम्मच की मात्रा से ) सोते समय रात को अन्तिम वस्तु के रूप में शहद में मिलाकर या पानी के संग लें । इस तरह तीन - चार महीनों तक प्रतिदिन आंवलों का प्रयोग करने से मनुष्य अपनी कायापलट कर सकता है ।

 नारंगी :-
इसमें प्रचुर मात्रा में विटामिन सी है । पोटेशियम एवं उध्यमान का है । नारंगी सेवन से हृदय , स्नायु - सस्थान तथा मस्तिष्क में नयी शक्ति आ जाती है । बच्चे - बूढे , रोगी और दुबले - पतले लोग अपनी निर्बलता दूर करने के लिये सेवन से लाभ उठा सकते है । तेज बुखार में इसके सेवन से तापमान कम हो जाता है ।
 इसका साइट्रिक एसिड मूत्ररोगों और किडनी रोगों को दूर करता है । इससे मूत्र साफ आता है । किडनी रोग से बचने के लिए गरंगी का सेवन करना चाहिये छोटे बच्चों को स्वस्थ और सुपुष्ट बनाने के लिये दूध में चौथाई भाग मीठी नारंगी का रस मिलाकर पिलाना चाहिये । यह उनके लिये एक आदर्श टॉनिक है । शरीर से दुर्बल , गर्भवती महिलाओं , कब्ज , बवासीर , अपच , पेट में गैस , जोड़ों का दर्द , गठिया , ब्लडप्रेशर , धर्मरोग , यकृत् - रोग से ग्रस्त रोगियों के लिये नारंगी का रस परम लाभकारी है । जिन्हें दूध नहीं पचता या जो केवल दूधपर निर्भर हैं , उन्हें नारंगी का रस अवश्य सेवन करना चाहिये। दूध में विटामिन बी कम्पलेक्स नहीं के बराबर है । अतः इसकी पूर्ति नारंगी के सेवन से हो जाता है । मुंहासे , कील और झाई तथा चेहरे के सावंलेपन को दूर करने के लिये नारंगी के सुखाये छिलकों का महीन जल या कच्चे दूध में मिलाकर पीसकर आधा घंटातक लेप लगाये , मे

 चेहरा साफ , सुन्दर और कान्तिमान् हो जायेगा । नारंगी और शरीर के लिये परम हितकारी फल है । खट्टी नारंगी का सेवन बच्चों - बूढ़ों , गर्भवती महिलाओं , अम्लपित्त एवं पेट में अल्सरवालों के लिये निषिद्ध है । एनीमिया के रोगी को नित्य एक संतरे का सेवन कराने से खून की कमी दूर होती है । पुराने समय में संतरे का उपयोग श्वास और अस्थमा जैसे रोगों के इलाज तथा रक्त को शुद्ध करने के लिए किया जाता था । आधुनिक शोधों ने स्थापित कर दिया है कि संतरा कैंसर जैसे रोगों से बचाता है , कुछ खास किस्म के हानिकारक वायरसों का प्रतिरोधी है तथा धमनी रोगों से बचाता है । संतरे में विटामिन सी की भरपूर मात्रा होती है । इसलिए यह दांतों , मसूड़ों , हड्डियों और मांसपेशियों के लिए उत्तम है । एक संतरे में 65 कैलोरी ऊर्जा , 100 प्रतिशत विटामिन सी,  250 मिलीग्राम कार्बोहाइड्रेट होते हैं । संतरे की फांके चूसी  जाये या फिर रस निकालकर किया जाए विटामिन सी दोनों सिथती  में भरपूर मिलता है पर कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने तथा धमनियों की सुरक्षा के लिए यदि इसके गूदे समेत  खाया जाए तो बहुत ज्यादा बेहतर है संतरे को झिल्ली और गुर्दे में पेक्टिन पाया जाता है।

आम -  
 यह फल रक्तवर्धक फोरन ताकत देने वाला फल माना जाता है। यह बल , वीर्य  बढाने वाला और खाज खुजली और फोड़ा फुंसी से हमें दूर रखते हैं आम को चूस कर खाना सबसे ज्यादा श्रेष्ठ  माना जाता है। इस फल को हम सब फलों के राजा के नाम से भी जानते हैं।


स्ट्रौबरी-
 स्ट्रौबरी हमारे रक्त को बढ़ाती है उच्च रक्तचाप हृदय रोग गठिया संधिवात के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है।

 लोकाट - एक ऐसा फल है जिसके खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए। यह हमारी आंखों की रोशनी के लिए, कमजोर हृदय के लिए और स्मरण शक्ति को बढ़ाने के लिए तथा खूनी बवासीर में बहुत ही उपयोगी माना जाता है।

आलू बुखारा -
आलूबुखारा एक ऐसा फल है जो गर्मियों में पाया जाता है या खाने में थोड़ा सा कैसैला और खट्टा होता है। यह शरीर के लिए रक्तवर्धक माना जाता है और कमजोरी को दूर करता है। यह पीलिया व उच्च रक्तचाप रक्त वाहनों के समस्त बीमारियों को दूर करता है।

Last alfaaz- 
इस प्रकार हम कुछ हद तक अपनी कुछ बीमारियों को घर बैठे ठीक कर सकते हैं क्योंकि फलों के अंदर बहुत सारे गुण पाए जाते हैं ।जिनको हम समय और उम्र के हिसाब से खाकर अपने आप को ठीक रख सकते हैं। इसलिए जितना हो सके फास्ट फूड ना खा कर मौसम और उम्र के अनुसार फल जरूर खाएं। अगर आपको इस लेख के माध्यम से कुछ जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे अपने चाहने वाले और दोस्तों में जरूर शेयर करें।




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