हिन्दू धर्म के देवताओं की पूजा कैसे करें || पुजा करने के नियम || मानस पुजा कैसे करें ||

Tittle-सभी देवी - देवताओं की पूजन विधि (सम्पूर्ण - पूजा)कैसे करें। 
हमारे हिंदू धर्म में बहुत सारे देवी देवताओं की पूजा की जाती हैं और हम ज्यादातर अपने घर के मंदिर में भी सभी देवी देवताओं की मूर्तियां रखते हैं, पर इसके बारे में यह जानना जरूरी है कि किस प्रकार सभी देवी देवताओं की पूजा करनी चाहिए।
आज हम आपको इसके बारे में बताने  चाहेगे कि किस प्रकार सभी देवताओं की पूजन विधि करनी चाहिए।
पुजा विधि-
 पूजा करने वाला व्यक्ति  शरीर की शुद्धि करके  नहा धोकर  चमड़े की कोई भी वस्तु नहीं हो  या उत्तर दिशा कि तरफ मुख करके बैठें ।शुद्ध कर धुले हुए शुद्ध वस्त्र आसन पर पुर्वाभिमुख सबसे पहले धरती माता ( जमीन को  को प्रणाम करें । फिर जिस आसन पर आप बैठे हैं , उस आसन की शुद्धि करें , मन ही मन में पितरेश्वर , ईष्ट देव का स्मरण करें । प्रत्येक कार्य मन्त्रोचारण करते हुऐ करें ।
1.फिर आचमन 3 बार करें ।
2. हाथ को धोयें । 
3. कर्म पात्र ( जलपात्र ) की पूजा करें । (  फिर  उस जलसे , स्वयं की और पूजन 
सारी सामग्री की शुद्धि करें और जल के  कुछ छींटे कुश  या दुर्वा से  करें।

4. सभी दसों दिशाओं में पीली सरसों मंत्र बोलते हुए छिडके जिससे कि सभी प्रकार की विघ्न बाधाएं दूर दूर भाग जाएंगी।

5. स्वयं को तिलक करें ,घी का दीपक देव प्रतिमा के दाहिने तरफ और तेल का दीपक प्रतिमा के बाएं तरफ रखकर प्रज्वलित करें.

 6.सुगंधित अगरबत्ती  जलाएं, धूप विषम संख्या में परिवर्तित करें. दीपक को अक्षत के या फूलों के ऊपर रखें।

 7. दीपक की मंत्रों से ईश्वर से प्रार्थना करें फिर अपने हाथ धोने और स्वास्थ्य वाचन मंगल पाठ करें. इसके बाद दाहिने हाथ में जल, चावल, चंदन ,फल, फूल पैसा लेकर मंत्र बोलते हुए संकल्प करें.इसके बाद न्यास करें।

8. पुजा की शुरुआत  गणपति जी से करे और गणपति  को प्रसन्न करने के लिए उनकी प्रार्थना श्लोको  के साथ करें। 

9. जिस देवी देवताओं की पूजा विशेष करनी हो तो उस देवी या देवता की प्रार्थना ध्यान करें, मंत्र बोलते हुए ऑहान करें।

 10. आसन, पाद प्रक्षालन , हसतयो: 
हस्तयो अर्ध्यम् , मुखे , आचमनीयम् ( 3 बार )  सर्वागि स्नानम् सर्वअयामी , वस्त्र, उपवस्त्र , आचमनीयम्  पेयः स्नानम् ( कच्चा दूध से स्नान करवायें ) शुद्ध जल  से स्नानम्  दधि स्नानम् , शुद्ध जल स्नानम् , घृत स्नान , शुद्ध जल स्नानम् , मधू - स्नानम् , शुद्ध जल स्नानम , शर्करा  स्नानम्,
 शुद्ध जल स्नानम्, गन्धोदक जल स्नानम् , जल में चन्दन इत्र मिलाकर  , वस्त्र - उपवस्त्र , आचमनीय जल , यज्ञोपवित , आचमन , चन्दन , गाढा चन्दन जिसमें केशर भी हो , अक्षत ( साबूत चावल ) 
 पुष्प ( सुगन्धित कई प्रकार के ) , पुष्पमाला सुंदर,  दुर्वा अंकूर ( कच्ची दुर्वा की 3 पंखुड़ियां वाली और धयान रखे   देवीजी का न दूर्वा न चढाऐं , शमी पत्र  शंकर जी को , विजया - भांग शंकर जी को  धतुरा का पुष्प - फल  शंकर जी को , 
 वेलपत्र , सिंदूर , ईत्र  ,धूप  दीप दिखायें  5 हस्त  धोलें , नैवेद्य ( मिष्ठान - भोजन , आचमन 3 बार , अखण्ड ऋतुफल , आचमन कराये , पूंगीफल - ताम्बूल पान, नारियल चढ़ायें , दक्षिणा , आचमन , विशेष अर्ध्य ( सुपारी - जल , आरती , पुष्पांजली   प्रदिक्षणा , प्रार्थना,, पूजा फल की प्राप्ति प्रभु को सर्मपण कर दें।
Note - 
सारी पुजा  करने के बाद ,पूजा करके उठने से पहले अपने आसन के नीचे 1 बूंद जल गिराकर उस जल को माथे पर लगा लेवे जिससे कि पूजा का फल इन्द्र भगवान न खिचनें पायें । ऐसा करने से पूरी पूजा का फल आपको ही प्राप्त होगा।   इंदर देव और  धरती माता को नहीं।
इस प्रकार जितना आप से संभव हो सके अगर यह सभी वस्तुएं नहीं भी उपलब्ध हो तो अपनी श्रद्धा के अनुसार भी इस प्रकार आप सभी देवी देवताओं की पूजा कर सकते हैं बस पूजा कारण गणपति देवता से शुरू करें।
मानसपूजा कैसे करें- 
अगर आपके पास धन दौलत के अभाव के कारण कुछ भी नहीं है तो हमारे शास्त्रों में मानस पूजा का महत्व बताया गया है।
शास्त्रों में पूजा को हजारगुना अधिक महत्वपूर्ण बनाने के लिये एक उपाय बतलाया गया है । यह उपाय है , मानसपूजा जिसे पूजा  करके फिर बाह्य वस्तुओं से पूजन न करें । पुष्प - प्रकरण में ( शास्त्र ) बतलाया गया है कि मन के द्वारा कल्पित यदि एक फूल भी चढ़ा दिया जाय तो करोड़ों बाहरी फूल पढ़ाने के बराबर होता है । इसी प्रकार मानस पुजा में  चन्दन , धूप , दीप , नैवेद्य भी भगवान् को करोड़गुना अधिक संतोष देने वाले है । अतः मानसपूजा बहुत अपेक्षित है । वस्तुतः भगवान् को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं , ये तो भाव के भूखे है । संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं है , जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके , इसलिये पुराणों में मानसपूजा का विशेष महत्व माना गया है । मानसपूज में भक्त अपने इष्टदेव को मुक्तामणियों से मन्दाकिनी मण्डितकर स्वर्णसिंहासन पर विराजमान कराता है । स्वर्गलोक की मन्दाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान कराता है । कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करता है । वस्त्रभूषण भी दिव्य अलौकिक होते है । पृथ्वीरूपी गन्ध का अनुलेपन करता है । अपने आराध्य के लिये कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्णकमल पुष्पों का चयन करता है । भावना से वायुरूपी धूप , अग्निरूपी दीपक तथा अमृतरूपी नैवेद्य भगवान् को अर्पण करने की विधि है । इसके साथ ही त्रिलोक की सम्पूर्ण वस्तु सभी उपचार सच्चिदानन्दधन परमात्मा प्रभु के चरणों में भावना से भक्त अर्पण करता है । यह है मानसपूजा का स्वरूप पूर्ण विधी। इस प्रकार अपने आराध्य देव को आप अपने मन के भावों द्वारा और कल्पना से भगवान को हर चीज अर्पित कर सकते हैं। क्योंकि भगवान को भी पता है कि मेरे भक्त के पास अगर धन नहीं है तो उसके पास भाव की कोई कमी नहीं है, और भगवान हमारी धन दौलत के नहीं भाव के भूखे हैं। हमारे शास्त्रों में इसके बहुत सारे उल्लेख मिलते हैं। अगर आपके पास भी बाजार की वस्तुओं लेकर आना संभव नहीं है तो आप हर चीज अपने भाव और मानस पूजा के साथ भक्ति कर सकते हैं क्योंकि धर्म शास्त्रों के अनुसार मानस पूजा से बड़ी कोई पूजा नहीं है।

मानस  पूजा का महत्व-
 इस पुजा में आराधक का जितना समय लगता है , उतना भगवान के समपर्क  में बीतता है और तब तक संसार उससे दूर हटा रहता है ।  वह अपने आराध्य देव के लिये बढ़िया से बढ़िया रत्नजड़ित आसन , दिव्य फूल की वह कल्पना करता है और उसका मन वहाँ दौड़कर उनहे जुटाता है  । इस तरह मन को दौड़ने की और कल्पनाओं की उड़ान भरने की इस पद्धति में पूरी छूट मिल जाती है । इसके दौड़ने के लिये क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है । इस दायरे में अनन्त ब्राह्माण्ड ही नहीं , अपितु इसकी पहुँच के परे गोलोक , साकेतलोक , सदाशिवलोक मी आ जाते हैं । अपने आराध्यदेव को इसे आसन देना है , वस्त्र और आभूषण पहनाना है , चन्दन लगाना है , मालाएँ पहनानी है . धूप - दीप दिखलाना है और नैवेद्य निवेदित करना है । इन्हें जुटाने के लिये उसे इन्द्रलोक से ब्रह्मलोक तक दौड़ लगाना है । पहुँचे या न पहुँचे , किंतु अप्राकृतिक लोकों के चक्कर लगाने से भी वह नहीं चूकता , ताकि उत्तम से उत्तम साधन मी जुटा पायें और भगवान् की अद्भुत सेवा हो जाये। इतनी दौड़ - धूप से लायी गयी वस्तुओं को आराधक जब अपने भगवान के सामने रखता है , तब उसे कितना संतोष मिलता होगा ? उसका मन तो निहाल ही हो जाता होगा । इस  तरह पूजा सामग्रियों के जुटाने में और भगवान् के लिये उनका उपयोग करने में साधक जितना भी समय लगा पाता है , उतना समय वह अन्तर्जगत् में बिताता है। ।
इस तरह मानस - पूजा साधक को समाधि की ओर अग्रसर करती रहती है और उसके रसा स्वाद का आभास भी कराती रहती है । जैसे कोई प्रेमी साधक कान्ताभाव से अपने इष्टदेव की मानसी सेवा कर रहा है । चाह रहा है  कि अपने पूज्य प्रियतम को जूही , चमेली , चम्पा - गुलाब और बेला की फुलो की गुथी , जगमगाती हुई बढ़ियां से बढ़ियां माला पहनायें ।
बाहरी पूजा में इसके लिये बहुत ही भाग - दौड़ करनी पड़ेगी । आर्थिक कठिनाई मुँह बाकर अलग खड़ी हो जाती है । तबतक भगवान् से बना यह मधुर सम्बन्ध भी टूट जाता है । पर मानसपूजा में यह अड़चन नहीं आती । इसलिये बना हुआ वह सम्पर्क और गहरा  होता जाता है । मन की कोमल भावनाओं से उत्पन्न की गयी है । वनमालाएँ तुरंत तैयार मिलती है । पहनाते समय पूज्य प्रियतम की सुरभित साँसो से जब इसकी सुगन्ध टकराती है , तब नस - नस में मादकता व्याप्त हो जाती है । पूज्य प्रियतम का स्पर्श पाकर वह उद्वेलित हो उठती है और साधक को समरस कर देती है । 
जिनकी पूजा धन के कारण अधूरी रह जाती है तो वह  मानसपूजा से इस स्थिति शीघ्र पा सकते है और अन्त में भगवान् की स्तुति करके पुजा सम्पन्न करे।

*भगवान् की स्तुति कैसे करें -
त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव सर्व मम देव देव। यं ब्रह्म वरूणेन्द्ररूद्रमस्त स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवैवेदे सांगपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति य सामगाः ।ध्यानावस्तिवतद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदुः सुरासुरगणा देवाय तस्मै नमः ।।

Last alfaaz- 
इस प्रकार आप अपनी एक देवकी प्रार्थना मन और धन दोनों प्रकार से कर सकते हो इस प्रकार आपकी इच्छा हो क्योंकि पूजा करने के लिए किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होता यह मन के भाव से होती है अगर आपको यह जानकारी अच्छी लगी हो तो उसे अपने चाहने वाले और दोस्तों में जरूर शेयर करें।
Posted by-kiran

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ