धन और ज्ञान के लिए चाणक्य नीति | चाणक्य नीति कैसे अपनाये | चाणक्य श्लोक अर्थ सहित |

Tittle- धन और ज्ञान के लिए चाणक्य नीति का प्रयोग कैसे करें- चाणक्य नीति के अनुसार प्रत्येक इन्सान  अपने जीवन में सफलता प्राप्त करना चाहता है। हर इंसान की इच्छा होती है कि उसके घर में सुख, शांति, समृद्धि, धन की कभी कमी ना हो और लक्ष्मी माता हमेशा निवास करें। चाणक्य की भारत के सर्वश्रेष्ठ विद्वानों में की जाती है आचार्य चाणक्य ने बहुत सारे श्लोक लिखे हुए  हैं। आज मै आपके साथ धन और ज्ञान के कुछ श्लोक शेयर कर रहे है।  धन के साथ साथ इनसान के पास ज्ञान का होना भी बहुत जरूरी है। 


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* ज्ञान और धन के लिए चाणक्य नीति-

* चाणक्य नीति श्लोक अर्थ सहित -

श्लोक-

साधुम्यस्ते निवर्तन्ते पुत्रामित्राणि बान्धवा ये चतैः सहः गन्ता रस्तद्ध मति सुकृतं कुल्मा ॥

 यह माया रूपी संसार इस माया के जाल में बुरी तरह फंसा हुआ है । इस माया जाल के बन्धनों में जकड़ा हुआ यदि कोई प्राणी दुखी हो कर भगवान से मोह करता हुआ जंगलों में जाता है । सब कुछ छोड़कर साधु बन जाता है । इस माया के मोह को त्याग कर ऐसे व्यक्तियों की उसके भाई बन्धु मित्र तथा अन्य लोग देखते हैं , लग गया है । समझते हैं यह भी जानते हैं कि उसका मोह माया से भंग होकर प्रभु से परन्तु वे बस लोग यह जानते हुए कि वह कल्याण मार्ग की ओर चला गया है। उसे इस संसार से दुःखों के सिवा कुछ भी तो नहीं मिला । वे फिर भी उसी मायाजाल में फंसे रहते हैं ऐसा क्यों होता है । इसलिये कि वे लोग ज्ञान से दूर रहते हैं यदि वे ऐसे किसी त्यागी पुरुष से प्रेरणा लें तो दुःख - सुख के बन्धनों से मुक्त हो सकते हैं । 


* कामधेनु विद्या हृयकाले फलदायिनी । प्रवासे मात्र सुदृशी विद्या गुप्त धन समृतमा ॥ 

अर्थयह विद्या ज्ञान तो कामधेनु गाय के समान है जैसे महर्षि वशिष्ठ जी की उनकी सारी कामनाएं , उनकी कामधेनु गाय पूरी कर देती थी । ठीक उसी प्रकार से यह विद्या उस प्राणी को सब सुख देती है जो इसे सच्चे मन से से बुद्धि से गृहण कर लेता है । आप लोगों को यह बात याद रखनी चाहिए कि विद्या तो एक धन का गुप्त खजाना है । जिसे आप देख नहीं सकते जिसे न तो कोई चोर चोरी कर सकता है । न ही इसको कोई बांट सकता वह तो हर तरह से सुरक्षित है इसे तो आप कभी भी खो नहीं सकते । यह विद्या संकट के समय कामधेनु गाय के समान है और परदेश में यह मां का काम देती है । आपका सोने का भंडार तो चोरी हो जाएगा परन्तु यह जाते हैं तो विद्या का ही सहारा रह जाता है । 


* आयु कर्म च वितं च विद्या निधन मेवचा पंचतानि हि सुज्यंते गर्भस्थ स्यैव देहिन ॥ 

अर्थ- हर जीवधारी ( मानव ) के लिये पांच बातें उसकी मां के पेट में हो भाग्य में लिख देता है । निर्धारित कर जी जाती है । अर्थात् जन्म से पूर्व ही विधाता उन्हें  उसका इस संसार में कितने वर्ष तक जीना है । 

2. उसकी मृत्यु कहां पर होगी । 

3. मृत्यु का समय क्या होगा । 

4. उसे क्या - क्या सुख मिलेंगे ।

 5. और कौन - कौन से दुःख प्राप्त होंगे । चाणक्य जी इस श्लोक द्वारा सारे इन्सानों को यह कहना चाहते हैं कि उन सबका भाग्य पहले से ही लिख दिया जाता है । लेकिन मैं आपसे यह नहीं कहता कि आप भाग्य के सहारे ही बैठें । सही काम करना तो पुरुष का धर्म है कर्म करो कर्म के लिये ही तो यह जीवन है । 

* दर्शन ध्यान संस्पशौर्मत्सी च पक्षिणी । शिशुं पालयते नित्य तथा सज्जन संगति ॥

अर्थ - जिस प्रकार मछली देख - देख कर अपनी संतान का पालन करती है । उसकी सबसे बड़ी इच्छा यही होती है कि उसके अंडे हर समय या तो उसके पास रहें या फिर उसकी नजरों के सामने रहें । मछली केवल ध्यान से ही अपनी संतान का पालन करती है और कुछ ऐसे भी पक्षी हैं जिनकी माहापक्षी अंडों को से कर अथवा छूकर अपनी संतान को पालते हैं । ठीक इसी प्रकार से विद्वानों तथा ज्ञानियों का संग ही भगवान् के दर्शन ध्यान के लिये काफी है प्रयास तो आपकी श्रद्धा है । यदि आपके मन में श्रद्धा है विश्वास है तो कमी किसी चीज की नहीं ।

 * थावत्स्वस्यो ध्यय देहो यावन्मृदयुंश्चदूरत । तावदात्महिते , कुर्यात , प्रणान्ते कि मरिष्यति ॥

 अर्थ - जिस प्राणी का स्वास्थ्य ठीक है जिसे कोई रोग नहीं उसे मृत्यु के आने तक उसे मोक्ष प्राप्ति के प्रयत्न करते ही रहना चाहिए । मानव के लिए यह जरूरी है कि वह दान पुण्य लोक कल्याण तथा दीन दुःखियों की सहायता के कार्य करता रहे । बुरे कर्मों से बचे रहने वाले हर इन्सान से प्रभु खुश रहते हैं अच्छा कर्म ही सबसे बड़ा मानव धर्म है , यही ज्ञान कल्याण मार्ग है । आप तो यह जानते ही हैं कि यह शरीर अमर नहीं है। इसे एक दिन  तो मृत्यु का ग्रास बनना ही है , तो फिर इस शरीर से क्यों शुभ काम क्यों नहीं लेते ?


* मूर्ख श्चिरायुर्जातीऽवि तस्माजतामृतो वदः । मृत स चालपदुःखाय यावजजीव जड़ो दहेत ॥ 

अर्थ - हर माँ बाप के लिये यह जरूरी है कि वे अज्ञानी और मूर्ख संतान की चिर आयु की दुआ न मांगे क्योंकि ऐसी संतान के मरने का दुःख तो थोड़े समय के लिए ही होगा । परन्तु यदि वह अधिक समय तक जीवित रहेगा तो दुःख उतना ही लम्बा होता जाएगा । ज्ञानी संतान मां बाप का नाम रौशन करती है और अज्ञानी मूर्ख तथा बुद्धिहीन संतान वंश के माथे पर कलंक का टीका लगाती है ।


 * कुग्रमवासः कुलहीन सेवा कुभोजनं क्रोधमुखीय आर्या । पुत्रश्च मूर्खो चकन्या बिनाहिनना प्रदहीन्तो कायम् ॥

अर्थ - जिस स्थान पर खाने - पीने तथा यहां के लोगों में आपसी भाईचारा तथा प्रेम नहीं ऐसे स्थान पर नौकरी करना तथा वहां रहना उचित नहीं । किसी नीच आदमी की नौकरी गन्दा तथा बासी भोजन , लड़की , नारी , मूर्ख संतान , विधवा लड़की , ये सबके सब इन्सान के शरीर को बिना आग के ही अंदर - अंदर जलते रहते हैं । इसलिए मैं आने वाली पीढ़ियों को भी यही सलाह देता हूं कि वे इन सब चीजों से बचकर रहें । 

* किं तथा क्रियते धेया या न दीग्फी न गर्भणी कीऽर्थ पुत्रेण जतिन यो न भक्तिमान् ॥ 

अर्थ -जैसे दूध न देने वाली गाय से कुछ भी लाभ नहीं । ठीक ऐसे ही ऐसे पुत्र से भी कोई लाभ नहीं जो मां बाप की सेवा न करे , जो अज्ञानी हो जो भले काम न करता हो ।

जिस प्रकार लोग उसे गाय ( जो बोझ हो ) को घर रखना बोझ समझते हैं । ठीक ऐसे ही निकम्मे निखटू चरित्रहीन संतान को भी घर में रखना बोझ बन जाता है । 

* सकृज्जाल्पन्ति राजान सकूज्यलपन्ति पंडिता सकृत् कन्या प्रादीयन्ते त्रोण्येतानि , सकृत् सकृत् ॥ 

अर्थ कोई भी राजा अपने आदेशों को बार - बार नहीं कहता । उसका जो कि बदला नहीं जा सकता । ठीक ऐसे ही पंडित लोग भी किसी कार्य की पूर्ति के लिए एक बार ही कहते हैं अथवा यदि पंडित किसी कार्य को करने की बात को मुंह से निकाल देता है तो प्राण जाएं पर वचन न जाएं यही बात उन पर लागू होती है । 


* एकाकिना तपोद्वाभ्यां पठन गायनं त्रिभिः । चतुर्भिगर्मन क्षेत्र पंचभिवंहुभी रजः ॥

अर्थ- यदि आप किसी चीज का तप तथा साधना करना चाहते हैं तो यह काम आपको अकेले में ही करना होगा । एकांत ही शांत मन का साक्षी हो सबसे बड़ी शक्ति है । आत्मा और परमात्मा का मेल तो केवल एकांत में ही होता है । ध्यान ही सबसे बड़ी शक्ति है।


* साभार्या चा खुचिर्दक्षा सा भार्या या पतिव्रता । सा भार्या या पतिव्रता साभार्या सत्यवादिनी ॥ 

अर्थ - पति की नजरों में गुणवान और योग्य पत्नी वही है जो उसका कहना माने और उसकी सेवा करे । जिसके विचार अच्छे हों और जो अपने घर को स्वच्छता से चलाने की योग्यता रखती हो । जिस घर में ऐसी पत्नी जिसे आदर्श नारी कहा जा सकता है रहती होगी उस घर में किसी चीज की कमी नहीं रहती । उस घर में सुख शांति तथा धन की भी कोई कमी नहीं होती । ऐसे घर ही स्वर्ग होते हैं । 


* अपुत्रस्य गृहं शून्यदिशाः शून्यास्तवबांधवः । मूर्खस्य हृदय शून्य सर्वशून्या दरिदरता ॥ 

अर्थ- जिस घर में बेटा नहीं वह तो सूने मंदिर की भांति है जिसमें कोई मूर्ति नहीं होती । ये मां बाप भी अकेले पड़ जाते हैं उनके मन टूट जाते हैं । ऐसे लोगों का जीवन भी व्यर्थ होता है जिनका कोई सगा सम्बंधी अथवा मित्र नहीं होता , कोई दुःख बांटने वाला नहीं होता , कोई खुशी बांटने वाला नहीं होता । जीवन का यह अकेलापन उन्हें अंदर ही अंदर खा केवल अपनी ही दुनिया में मस्त रहते हैं । जाता है । जो लोग अज्ञानी हैं उन्हें किसी दुःख से क्या लेना होता है ये तो निर्धन लोग अपनी गरीबी से ही इतने दुःखी हो जाते हैं कि उन्हें कुछ भी तो अच्छा नहीं लगता । वैसे भी गरीब तथा दुःखी आदमी को देखकर उसके निकटतम लोग भी आंख बचा कर इसलिये निकल जाते हैं ताकि कहीं यह उनसे कोई सहायता न मांग ले मैं आपको यह बात स्पष्ट रूप से कहता हूं कि दरिद्रता से बढ़कर और कोई चीज़ इस दुनिया में नहीं है इसे अभिशाप कहें या शस्त्र परन्तु जो गरीब है वह इस दुःख को समझ सकता है । 


* अनभ्यासे , विषं शास्त्र मजीर्णे भोजन विषय | दरिदरता विषं गोष्ठी वृद्धस्यतरूणी विषम ॥ 

अर्थ -यदि मनुष्य का शरीर स्वस्थ नहीं तो बढ़िया से बढ़िया अति स्वादिष्ट भोजन उसे नुक्सान पहुंचाते हैं । कभी - कभी तो यही भोजन खाने वाले की जान भी ले लेता है । ठीक इसी प्रकार जो लोग ज्ञानी जन शास्त्रों का निरंतर अध्ययन नहीं करते वे नाम के तो पंडित जरूर होते हैं, परन्तु जब कभी पंडितों की सभा में जाकर ज्ञान की बातें करने लगते हैं तो लोग उनका मजाक उड़ाते हैं । अच्छी सभाओं में उनका अपमान होता है । इसलिये उनका यह जीवन उन पर बोझ बन जाता है । यह बातें याद रखें कि सम्मानित व्यक्ति को अपना अपमान मृत्यु से भी बढ़कर लगता है । निर्धन तथा गरीब व्यक्ति के लिये हर प्रकार की सभाएं बेकार हैं । वह यदि किसी अच्छी सभा सोसाइटी में चला भी जाए तो वहां पर उसका अपमान ही होता है । इसलिये सब पुरुषों को मैं यही सलाह देता हूं कि वे उन बड़ी - बड़ी बाधाओं में नहीं जाएं जहां उनका अपमान होता हो । निर्धनता से संघर्ष करने के लिये भी बुद्धि की जरूरत है । बुद्धि की शक्ति से आप गरीबी से मुक्ति पा सकते हैं ।


* त्यजेद् धर्म दया हीन विद्याहीनं गुरूतवजेत् । व्यजेत क्रोधमुखी भार्या निऽस्नेहान बांधवासत्युषे जेत् ॥

 अर्थ - धर्म केवल दया का ही नाम है । उस धर्म को कभी भी धर्म नहीं माना बनने से क्या लाभ है ? जो नारी अपने पति से हर रोज झगड़ा करें । उसका भी घर में रहने से क्या लाभ है ? जो लोग संकट के समय आपका साथ नहीं देते उनसे सम्बन्ध बनाए रखने का क्या लाभ है ? अच्छे और ज्ञानी लोग इन सब चीजों से सदा दूर रहते हैं । 


* अध्वा जरा मनुष्याणां वाजिना बन्धन जरां अभैथुनंह जरा स्त्रीणां वस्त्राषामा तपो जरो ॥ 

अर्थ - जो लोग निरंतर पद यात्रा करते हैं । उन्हें खाने पीने की कोई चिंता नहीं रहती क्योंकि उन्हें पता रहता है कि हमारे लिये इसका कोई भी समय निर्धारित नहीं है जो मिलेगा यहां भी मिलेगा उसे खा लेंगे । इन सब बातों से उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है । उन पर समय से पूर्व ही बुढ़ापा आ जाता है । जैसा कि यदि किसी घोड़े को आप सदा खूंटे से बांध रखें और उसे भागने दौड़ने का मौका न मिले तो उस पर भी बुढ़ापा आ ही जाता है । मेरी शिक्षा आपको यही कहती है । निरंतर पैदल चलने वाले पुरुषों के लिये , निरंतर खूंटों से बंधे रहने वाले घोड़ों के लिये , अमैथुन स्त्रियों के लिये और कड़ी धूप में कपड़ों के लिये , नुकसान ही नुकसान देती है ।


* कः कालः मानि मित्राणि को देश को व्यथागमौ । कश्चाहे , का च में शक्तिंरित चिन्त्यं मुहुर्भुहु ॥ 

अर्थ -बुद्धिमान मनुष्य वहीं हैं जो हर समय यही सोचता रहे कि मेरा मित्र कौन - सा है । हमारा समय अच्छा है या बुरा अच्छे मित्र कैसे बनें ? अच्छा समय कैसे आएगा । इन सब बातों को सोचने वाला प्राणी उन्नतशील हो सकता है । यदि आप जीवन के सच्चे सुख पाना चाहते हैं तो इन सब बातों को ध्यान में रखकर ही फैसला करना होगा कि हमारे लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या है सुख दुख के आंतों को पहचानो सुख को प्राप्त करने के लिए दुख से मुक्ति पाना जरूरी है।


*अग्नि दैवोद्विजतीनां गुनी नांहृदि दैवतम् । प्रतिभा स्वलपबुद्धीनां सर्वत्र राम दर्शिनाम् ॥ 

अर्थ - ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों को द्विजाति कहा गया है इसलिये कि इनका जन्म बार - बार होता है । एक बार माता के गर्भ से दूसरा जन्म गुरु द्वारा शिष्य बनाए जाने पर होता है । यह उनकी अग्नि तपस्या होती है । मुनियों की यह तपस्या उनके हृदयों में विराजमान रहती है । अल्प बुद्धि वाले मुनियों को ही ईश्वर मान लेते हैं जो ज्ञानी है विद्वान है उनके लिये तो ईश्वर सर्व व्यापक है वे तो कण कण में ईश्वर की शक्ति को देखते हैं । लेकिन ऐसे ज्ञानी कितने हैं ? 

निष्कर्ष- यह थे कुछ ज्ञान और धन के लिए आचार्य  चाणक्य जी श्लोक। हर किसी को  जिंदगी को सुचारू रूप से चलाने के लिए ज्ञान और धन दोनों की जरूरत है ।



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