सुर्य चिकित्सा के लाभ | सुर्य चिकित्सा कैसे करें | सुर्य चिकित्सा से रोगों को कैसे ठीक करें |

Tittle- सूर्य से प्राकृतिक चिकित्सा कैसे करें सूर्य चिकित्सा यानी सूर्य स्नान बहुत पुरानी पद्ति है। इसे हमारे धर्म ग्रंथो और आयुर्वेद दोनों में ही माना जाता है आज हम इस लेख के माध्यम से आपको सूर्य चिकित्सा के बारे में कुछ बातें ऐसी शेयर करेंगे जिनको आप भी अपना कर अपने आप को स्वस्थ रख सकते हो

आयुर्वेदिक  की दृष्टि से सूर्य चिकित्सा का प्रचलन सृष्टि की उत्पति जितना ही प्राचीन है । हमारे आदि ग्रंथ वेदों मैं सूर्य किरणों की उपयोगिता को दर्शाते हुए कई उदाहरण प्रमाण रूप में मिलते हैं जिन से यह मालूम होता है कि यह पद्धति भारत में प्रचलित  हुई और बाद में इस का विस्तार संसार के अन्य देशों में हुआ । अथर्ववेद में सूर्य को पालनकर्ता , राजयक्ष्मा और कुष्ठ रोगों को दूर करने वाला देवता कहा गया है।  गण्डमाला , जानु , श्रोणि , कन्धा , मस्तक , कपाल , हृदय , आदि रोगों को सूर्य किरणों द्वारा ठीक करने का विधान है ।

 वेदों के अतिरिक्त भगवत् गीता , महाभारत और रामायण आदि में सूर्य की महिमा के अनेक उदाहरण हैं ।

 भारतीय संस्कृति में अनेक सूर्य मन्दिर दिखाई देते हैं । उड़ीसा का कोणार्क मन्दिर जिसे काला पैगोडा भी कहा जाता है , सूर्य मन्दिर है । सूर्य को देवता और रथ को सात घोड़ों द्वारा खींचा गया दिखाया गया है । इससे समय , दिन , सप्ताह , महीने आदि का ज्ञान होता है । सात घोड़ों द्वारा खींचा जाना सूर्य किरण में सात रंगो का द्योतक हो सकता है । सूर्य को देवता मानने की प्रथा केवल भारतवासियों तक ही सीमित नही है बल्कि रोम , मिस्र आदि जगहों में इसे देवता माना गया है । जापान युनान , जैसे देश में भी सूर्य देव के कई मन्दिर हैं । जहाँ नियम पूर्वक पूजा की जाती है । सूर्य शक्ति का पुंज माना गया है ।


सुर्य की उर्जा का महत्व-

समस्त ऊर्जाओं का स्रोत सूर्य ही है । इसलिए पृथ्वी पर हर प्राणी का जीवन तथा शारीरिक विकास मुख्यतः सूर्य की शक्ति , किरणों , रोशनी , रंगो तथा ताप पर निर्भर होता है । इसीलिए हम सूर्य को देवता मानते हैं । और उस की उपासना करते हैं । सूर्य पूजा के लिए ' सूर्य नमस्कार ' एवं ' जल तर्पन ' किया जाता है । इस से व्यायाम भी हो जाता है । जिससे शरीरिक एवं मानसिक रोग ठीक होते हैं ।

 यह चिकित्सा सिर्फ धर्म के नाम से अनुभवी लोगों द्वारा करवाई गई । धार्मिक अनुष्ठान मान कर ही लोगों नें इसे अपनाया । 

आज वैज्ञानिक युग है । वर्तमान समय में लोग हर बात को तर्क की कसोटी पर कसते हैं और वैज्ञानिक आधार खोजते हैं । अतः आज किसी भी कार्य को करने हेतू प्रमाण  की आवश्यकता होती है । आधुनिक वैज्ञानिक सूर्य की ताकात का पता लगाने में काफी परिश्रम कर रहें हैं । सोलर लाईटस , कुकर , मशीन आदि का निर्माण हो रहा है जो कि सौर उर्जा से चालित है । 

विज्ञान के  तथयो के अनुसार  से यह प्रमाणित हो चुका है कि हर प्राणी जीवन का आधार सूर्य है । सूर्य किरण में सात रंग होते हैं । ये क्रम से बैंगनी , आसमानी , नीला , हरा , पीला , नारंगी और होते हैं । वर्षा ऋतु में प्रकट होने वाले इन्द्रधनुष सूर्य किरणों से ही बनते हैं । इन रंगों के अतिरिक्त बैंगनी सिरे से ऊपर अदृश्य किरणें अल्ट्रावायलेट और लाल किरणों से आगे अदृश्य किरणें इन्फरारैड होती हैं ।


अल्ट्रावायलेट किरणों की सहायता से ही हमारा शरीर विटामिन - डी का निर्माण करता है । विटामिन डी से कैल्शियम और फास्फोरस की मात्रा का नियन्त्रण होता है । इस से दाँत , अस्थियां मजबूत होती हैं । इस की कमी से शरीर में अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं । सूर्य किरणों में कीटाणु नाशक शक्ति प्रचुर मात्रा में होती है । जहाँ सूर्य किरणों को अभाव होता है , वहाँ हैं । कीटाणु फलते फूलते हैं और अपना दुःखदायी प्रभाव डालते है।

  सुर्य चिकित्सा से बुद्धि का  विकास-

 सूर्य से बौद्धिक विकास होता है । सूर्य की किरणों के अभाव वाले बन्द कमरे में अच्छा खासा इन्सान पागल जैसा हो जाता है । यह वैज्ञानिक सत्य है कि सूर्य का प्रचुर सेवन करने वाला व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ होता है । 

वनस्पति जगत भी सूर्य ऊर्जा पर निर्भर करता है । पौधे सूर्य की सहायता से अपना भोजन बनाते है । जिसे प्रकाश संप्लेषन क्रिया कहते हैं । बाकी प्राणी जगत पौधों पर निर्भर करता हैं । आज विज्ञान ने चाहे कितनी भी तरक्की कर ली हो , कितनी ही मशीने बना ली हों , लेकिन सत्य यह है कि जो ताकत प्राकृतिक सूर्य किरणों में पाई जाती है वह किसी भी कृत्रिम माध्यम द्वारा नहीं पाई जा सकती है ।

* आयुर्वेद के अनुसार सुर्य चिकित्सा कैसे काम करती है-

 आयुर्वेद में वात , पित और कफ तीनों को शरीर का आधार माना गया है । इन तीनों से ही विभिन्न रोगों की उत्पत्ति होती है । ये विकृत होने पर ही शरीर को हानि पहुँचाते हैं और अविकृत होने पर शरीर को स्थिर रखते हैं । जिस प्रकार आयुर्वेद में रोगों को वात , पित , कफ तीनों में बांटा गया है । उसी प्रकार सूर्य किरण के सात रंगों के तीन विभाग किए गए हैं ।

 मुख्यत नीला , हरा और लाल । वात रोगों में हरा रंग , पित में नीला और कफ में लाल रंग औषधि की भान्ति कार्य करते हैं । 

रगों का  महत्व-

प्रत्येक रंग की Frequency & Wavelength अलग- अलग होती है । इसलिए इन का प्रभाव भी अलग- अलग होता है ।

 V- Violet - बैंगनी

 I - Indigo गहरा नीला

 B - Blue- नीला 

यह रंग ठण्डे माने जाते हैं ।

 G - Green- हरा हरा रंग ठण्डे और गर्म रंगों के बीच समन्वय करता है । रंगों के सम्बन्ध में कई मान्यताएं प्रचलित हैं । जैसे लाल रंग का प्रयोग खतरे को द्योतक है । यह रंग उत्तेजना उत्पन्न करता है । अतः खून खराबा , बहादुरी एवं सौभाग्य आदि के लिए इसका प्रयोग किया जाता है । रक्ताल्पता , उदासीनता आदि रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है । 

* नीला रंग ठण्डा होने से गर्मियों में प्रयोग किया जाता है । एकाग्रता तथा निद्रा में नीला रंग हितकारी है ।

* काला रंग शोक , मृत्यु , निराश , रोष तथा दुःख आदि का द्योतक है ।

* सफेद रंग सादगी , सरलता तथा सात्विकता का परिचय देता है । चिकित्सक सफेद रंग के कोट पहनते हैं । पीला रंग बुद्धिवर्धक माना जाता है ।

* वात का रंगपीला है । पीला रंग संयम , आदर्श , पुण्य तथा परोपकार का माना जाता है ।

* हरा रंग प्रकृति का रंग माना जाता है । यह रंग प्रसन्नता प्रदान करता है ।

 हमारे शरीर में सप्त चक्र मूलाधार , स्वाधिष्ठान , मणिपूरक , अनाहत , विशुद्ध , आज्ञाचक्र एवं सहखाधार , चक्र माने गए हैं । प्रत्येक चक्र का प्रतिनिधित्व एक विशेष रंग करता है । उस रंग का प्रयोग उस चक्र से सम्बन्धी रोगों का नाश करता है ।

सूर्य किरणों के सातरंग सात औषधियों के रूप में कार्य करते हैं । इनको प्रयोग में लाने के लिए निम्न विधियां है । सूर्योपासन , सूर्य दर्शन एवं सूर्य नमस्कार , सूर्य स्नान , सूर्य किरण भक्षण , चक्रों पर ध्यान , सूर्यतप्त दवाई , पानी , तेल , खाड़ , मिश्री , दूध , ग्लिसरीन , रंगीन शीशों से चिकित्सा , रंगीन किरण तप्त जल से सनी मिट्टी की पट्टी का प्रयोग । उपरोक्त सभी विधियां सस्ती , सरल और सुलभ है । का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है । अपने रोग एवं प्रकृति को ध्यान में रखकर कोई भी साधारण व्यक्ति इनसे अपने स्वास्थ्य की पूर्ण रक्षा कर सकता है ।

* इन सभी कर्म के कारण भगवान शिव सूर्य की पूजा में जल देने का महत्व है क्योंकि जल देते समय हम भगवान की करने के सीधे संपर्क में आते हैं और जिसे हम हमें विटामिन डी और कैल्सियम प्राप्त होता है और इस तरह हमारे शरीर की बीमारियां ठीक होती हैं सूर्य चिकित्सा बहुत ही प्राणी चिकित्सा है इसलिए प्रतिदिन कुछ देर धुप में  जरूर बैठे। 

Disclaimer- इसमें हमारा कोई खुद का योगदान नहीं है।  यह सब हमनें आयुर्वेद और धर्म शाश्त्रो  के अनुसार लिखा गया है।

 

 




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