चाणक्य नीति के अनुसार संतान कैसी होनी चाहिए | According to Chankya NiNiti how should a child be ?

चाणक्य नीति के अनुसार हमारी संतान  कैसी होनी चाहिए- चाणक्य इतिहास एक धर्म गुरु और बहुत अचछे कूटनीतिज्ञ माने गये  है । आज हम उन्हीं के अनुसार इस लेख के माध्यम से हमारी संतान कि कैसी होनी चाहिए।  कुछ ऐसे श्लोक शेयर करेंगे आपके साथ जो अर्थ  सहित लिखे गए हैं।
आज हम जब भी कभी अपने घर के बारे में सोचते हैं तो सबसे पहले संतान ही ऐसा विषय है जिसके बारे में तरह - तरह की उलझनें लोगों के मन में बसी रहती हैं कुछ लोगों को तो मैंने यह कहते भी सुना है कि संतान है तो उसके भविष्य की चिंता खाए जाती है । यदि नहीं तो सबसे बड़ा दुःख अंदर ही अंदर यह खाए जाता है कि हमारे वंश का क्या होगा , इस प्रकार से संतान हमारे समाज के लिये बहुत बड़ा विषय बन चुका है । आचार्य चाणक्य जी ने युगों पहले से ही इस बात को महसूस किया उन्हें पता था भविष्य में संतान के बारे में अनेक समस्याएं खड़ी होंगी । लोग संतान की चिंता में ही घुट घुट कर मरते रहेंगे चिंता चिता तो एक ही समान है ।
 इन दोनों में अंतर केवल इतना ही होता है कि एक जीवित व्यक्ति को अंदर ही अंदर डस कर मार देती है दूसरी मरने के पश्चात् चिता में जलाती है ।
 चाणक्य नीति के श्लोक  : -

 ● यस्य पुत्रो वशीभूतो भार्य छन्दानुगामिनी । विभषे यश्च संतुष्टस्तस्य स्वर्ग इहैं बहिं ॥
अर्थ-
 जिसका बेटा आज्ञाकारी हो और पत्नी पति की सेवा करे तथा घर का ख्याल रखे और पतिव्रता धर्म का पालन करे और अपने पति की थोड़ी कमाई को भी पूज्य समझे ऐसे व्यक्ति को जीवन में स्वर्ग का आनन्द है ।

लालनाद वहवो दोबास्ताऽनाद बहवो गुणाः ।  तस्माटपुत्र च शिष्य च ताडयेन्न तुलालयेत् ॥ 
अर्थ -
जो माता पिता लाड प्यार में अंधे होकर बच्चे को खुली छूट देते हैं । उनकी भूल पर डांटते नहीं बल्कि हंस देते हैं वे बच्चे बिगड़ जाते हैं । उनमें अनेक बुराइयां जन्म लेने लगती हैं । जो माता - पिता बच्चे की भूल पर उसे डांट कर यह समझाने का प्रयास करते हैं कि यह काम तुमने बुरा किया है । बुरे काम के अच्छे परिणाम नहीं निकलते ,
 अर्थात् : -
बच्चे को भले और  छोटो को से होता है भी करते हैं इसीलिए का तो यह बड़े होकर उन्नति भी करते हैं तथा मां बच्चों को बुरा नहीं समझा जाता है कि जरूरत  पड़ने पर बच्चे को मार कर भी समझाया जा सकता है । इससे उन पर भय बना रहता है जो बच्चे मां बाप के डर को मानकर चलते हैं । वे कोई भी गलत काम करते समय डरेगे भी बच्चे पर डर का बना रहे . प्यार के स्थान पर प्यार देना भी न हो जरूरी है कि गलती करने पर मारना और कुछ मां बाप लाड प्यार के कारण हो अपना और अपनी संतान का जीवन नष्ट कर लेते हैं । ऐसे मां बाप के लिये चाणक्य जो ने स्पष्ट बात कही हैं । भले ही उनकी बात किसी को बुरी लगे परन्तु इसके सत्य से इन्कार नहीं किया जा सकता । इस विषय का और खुलकर चाणक्य जो अपने इस श्लोक में कहते हैं । 

● पुत्राश्च विविधे शीलैर्नयोज्या सतंत भुधैः । अ नीतिज्ञाः शीलसम्पन्ना भवन्ति कुलपूजिता ॥
अर्थ -
 बुद्धिमान माता पिता के लिये यह जरूरी है कि वे अपनी संतान को बचपन से ही अच्छे भलाई के कार्यों में लगाने का प्रयास करें । उनके लिये अच्छी शिक्षा किसी योग्य गुरु द्वारा दिलाने का प्रबंध करें । उनको बुरे लोगों की संगति से दूर रखें ताकि उनके चरित्र पर कोई बुरा प्रभाव न पड़ सके । हर माता पिता को यह बात याद रखनी चाहिए कि बचपन में जो कुछ छोटे बच्चों के मन में बिठायेंगे वही वे बड़े होकर भी करेंगे जैसा कि कई माता पिता बचपन में बच्चों को डराने के लिये कहते रहते हैं सो जाओ नहीं तो काला भूत आ जाएगा । खाना खा लो नहीं तो काला भूत पकड़ लेगा । ऐसे बच्चे बड़े होकर बुजदिल हो जाते हैं जरा जरा से काम के लिये भी डरने लगते हैं । बचपन का भय उनके लिये एक रोग बन जाता है उनका दिल छोटा रहता है और फिर आगे चलकर चाणक्य जी कहते हैं : -


● माता शत्रु पिता वैरी येन वालों न पाठितः । न शोभते सभामध्ये हंस मध्ये बको यथा
अर्थ-
 ऐसे मां बाप को मैं संतान का शत्रु ही मानता हूं , जो अपने बच्चों को
शिक्षा नहीं दिलवाते  अनपढ़ वयक्ति बुद्धिमान की सभा में इसी प्रकार अच्छा नहीं लगता जैसे हंस में एक बैठा लगता है । विद्या को दूर रखने वाले माता पिता अपनी ही संतान के सबसे बड़े शत्रु होते हैं । इस संसार के हर माता पिता से यह बात कहना चाहता हूँ कि अपने बच्चों को धन देने की चिंता न करें उन के लिये धन इकट्ठा करके छोड़ने की बजाए उन्हें इस योग्य बना दें कि वे अपने लिये धन कमा सकें । शिक्षा तथा ज्ञान ही एक ऐसा द्वार है जो आपके बच्चों को संसार में बात को कभी भी नहीं भूलना चाहिए । समाज में सभा , सोसाइटी में सिर उठा कर चलने योग्य बना सकते हैं । इस ज्ञान  से ही आदमी महान बनता है । 


ते पुत्रा ये पितुभर्कताः सः पिता यस्तु पोषक
अर्थ -
 , यदि संतान में बेटा है तो उसका यह कर्तव्य है कि वह मां बाप की सेवा करें माता पिता के दुःखों को समझे । मां बाप का भी यह फर्ज है कि जब तक बच्चा कमाने योग्य नहीं होता तब तक बच्चे की शिक्षा खाना पीना तथा रहन सहन का पूरा पूरा ख्याल रखें सुख देने से ही सुख की आशा की जा सकती है जब पिता अपने कर्त्तव्य को पूरे उत्साह और लगन से निभाएगा तो संतान पर भी उसका अच्छा प्रभाव पड़ेगा । मां बाप की इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि छोटे बच्चों के सामने अपने घरेलू दुःखों का कभी रोना मत रोएं वरना उनके मस्तिष्क पर बचपन से ही दुःखों की परछाइयां पड़नी शुरू हो जाएगीं । उनका मन पढ़ाई की ओर न लग कर घर के दुःखों की ओर लगने लग जाएगा । उनकी उन्नति के रास्ते में ऐसी बातें सबसे बड़ी बाधा बन जाती हैं । बच्चों को छोटी आयु से अच्छी बातें सिखाएं । जैसी फसल आप बोओगे वैसा ही काटोगे अच्छा सिखाओ तो अच्छा ही पाओगे । 

 ● शैले शैले मणिकनं मौकितकं गजे गजे । साधवो न हि सर्वत्र चन्दन वन बने ॥
अर्थ-
 चाणक्य जी इस श्लोक द्वारा कहते हैं कि यह बात तो सत्य नहीं कि  हर पर्वत के सीने से हीरे निकलते हों इसी प्रकार से हर हाथ के इस संसार में मानव को तो कोई कमी नहीं है लेकिन सारे मानव तो अच्छे गुणकारी तथा विद्वान तो नहीं होते । ठीक इसी प्रकार संसार में होती । वनों की तो कमी नहीं है परन्तु हर जंगल में तो चंदन की लकड़ी नहीं चाणक्य जी ने साधु ( साधवी ) शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया है जो लोग दूसरों की भलाई के लिये काम करते हैं । जन सेवा की अपना धर्म समझते हैं । ज्ञान देते हैं लेते भी हैं । ऐसे लोगों के अपने चरित्र का भी प्रभाव संतान पर पड़ता है चरित्र निर्माता लोगों की संतान भी चरित्रवाण होती है । भाग्यशाली हैं वे लोग जो वैसा भरोगे । स्वयं को स्वच्छ रख कर संसार की हर बुराई से दूर रहते हैं ।
जैसा करोगे वैसा मरोगे
  
● अनृतं साहस , माया मूर्खत्वमति लोभिता । अशौचत्व निर्दयत्व स्त्रीणा दोषा स्वभावजा ॥

अर्थ  :-
 इस श्लोक के द्वारा चाणक्य जी ने कहा है कि नारी जाति स्वभाव से ही झूठ बोलने की आदि होती है । उसके मन में लोभ को भावना अधिक होती है जो उसे दया से दूर ले जाती है , उनके लिये किसकी भी अनहोनी घटना को लेकर दुष्ट भावना पैदा होना कोई बड़ी बात नहीं । प्रेम की भी इनके पास कोई सीमा नहीं । परन्तु जब यह प्रेम घृणा का रूप धारण कर लेता है तो उनकी भटकती ज्वाला को रोकना भी कठिन है । 
चाणक्य जी के इस श्लोक का भावार्थ यह है कि कुछ आदतें ऐसी भी होती है जो उसकी स्वभाव से ही प्राकृतिक रूप से मिलती हैं । उसे हम लाख प्रयत्न करने पर भी बदल नहीं सकते । स्वभाव से प्राप्त होने वाले गुण अथवा दोषों को बदलने की शक्ति शायद ही किसी मानव में हो , जैसा कि पक्षी स्वभाव से ही उड़ते हैं ।
 मछलियां तथा अन्य पानी वाले जन्तु केवल पानी में ही जीवित रह सकते हैं जबकि अन्य सब प्राणी पानी में डूब कर मर जाते हैं । मछलियां उड़ नहीं सकती । जबकि छोटे - छोटे पक्षी हवा में बड़े मजे से उड़ते नजर आते हैं । इन सब बातों से यह बात तो स्पष्ट हो जाती है ।स्वभाव से पैदा होने वाली हर चीज हर आदत को हमारे मानव जीवन में पूरा - पूरा ख्याल है । 

भोज्यं , भोजनशक्तिश्च रति शक्तिर्वरांगना । विभवो वानशक्तिश्च नाऽलवस्थ तपस फल्म ॥ 
अर्थ-
चाणक्य जी ने इस श्लोक में यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जो लोग खाने पीने के बारे में सम्पन्न हैं और भोग विलास की शक्ति के साथ - साथ उन भावनाओं की पूर्ति के लिये सुन्दर नारी का मिलन और धन प्राप्ति के होने पर उसके उपयोग के साथ - साथ दान की प्रवृति का होना इन सब बातों का सम्बन्ध पूर्व जन्म के संयोग से ही होता है । या फिर मनुष्य के तप की शक्ति से ही ऐसा फल मिलता है । यही नहीं चाणक्य जी ने उन लोगों के बारे में भी कहा है । जिनके पास धन है खाने पीने के बारे में वे सब से अधिक सम्पन्न माने जाते हैं । परन्तु यह तो उनका दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उन्हें यह खाना हजम ही नहीं होता । सब कुछ होते हुए भी वे खाने से वंचित रह जाते हैं । परन्तु इसके विपरीत बहुत से ऐसे भी लोग हैं जिन्हें खाने में हर चीज हजम हो जाती है। परन्तु उन्हें मनभाता स्वादिष्ट भोजन खाने को ही नहीं मिलता । इस संसार में ऐसे बहुत से लोग हैं जो धनवान हैं उनके पास धन की कोई कमी नहीं परन्तु उनके दिल इतने छोटे हैं कि वे दान देना तो दूर की बात अपनी संतान पर भी खर्च नहीं कर सकते । सब कुछ होते हुए भी ऐसे लोग फकीर माने जाते हैं ।
 चाणक्य जी उन लोगों को ही भाग्यशाली मानते हैं जो संसार में आकर हर प्रकार का आनन्द लेते हैं । मानव जन्म तो बार - बार नहीं मिलता इसका लाभ न उठाने वाले तो मूर्ख कहे जा सकते हैं । यह धन साथ न तो आया है और न ही साथ जाएगा । जरा सोचो आपके मरने के पश्चात् यह किस काम का अपने आप आनन्द लो अपनी संतान को योग्य बनाओ । समय बदलते देर नहीं लगती ।इस बात को तो सब लोग जानते हैं कि बरसात के दिनों में हर नदियों में पानी उसकी क्षमता से अधिक आता है और उन दिनों बाढ़ भी आती है । जिससे आस पास की बस्तियों के लिये भयंकर खतरा पैदा हो जाता है । वृक्ष तो जड़ों से उखड़ कर पानी में बहने लगते हैं और पराये घर में रहने वाली नारी कब तक अपनी इज्जत की मान मर्यादा की रक्षा करने में सफल हो सकती है , और वह राजा जिसके पास मंत्री ही नहीं अपने राज्य को कैसे चला सकता है , हर राज्य को चलाने में कोई न कोई संकट तो आता ही रहता है । आपके हर गुण तथा दोष का प्रभाव आपकी संतान पर पड़ता है इसलिये आपके लिये यह जरूरी है कि संतान के सुखों के लिये अपनी कुछ भावनाओं की आहुति देने में संकोच न करें । कुछ लोग बच्चों के सामने पत्नी से प्रेम प्रसंग की बातें करने लगते हैं । ऐसे लोग अपनी संतान को पथ भ्रष्ट करने वाले होते हैं । बच्चों की शिक्षा उनकी आवश्यकताओं का ख्याल रखना या हर माता पिता का फर्ज है , तभी तो संतान आपका ख्याल रखेगी । 



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