84 लाख योनियाँ, दुर्लभ मनुष्य योनी और अतृप्त तृष्णा
संपूर्ण सृष्टि प्रभु नारायण के मायाजाल से निर्मित है, जिसमें उन्होंने 84 लाख योनियों की रचना की है। इनमें 1 लाख जलचर, 10 लाख नभचर (आकाश में उड़ने वाले जीव), 11 लाख कीट-पतंगे, 20 लाख वृक्ष, लताएँ और झाड़ियाँ, 30 लाख पशु और मात्र 4 लाख मनुष्य योनी शामिल हैं। मनुष्य योनी को अत्यंत दुर्लभ माना गया है, यहाँ तक कि देवता भी इसे पाने की इच्छा रखते हैं, क्योंकि केवल इसी योनी में मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अन्य किसी योनी में मुक्ति संभव नहीं।

यदि मनुष्य योनी प्राप्त करने के बाद भी कोई व्यक्ति मोक्ष को नहीं पा सका, तो यह उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल होगी। तब उसे दोबारा 84 लाख योनियों के चक्र में भटकना पड़ेगा और जन्म-मरण के कष्टों को सहना होगा। मनुष्य योनी में जन्म लेने के बावजूद यदि कोई अपने असली स्वरूप को नहीं पहचान पाता और यह नहीं समझता कि जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति कैसे मिलेगी, तो यह उसका दुर्भाग्य है। मृत्यु अवश्यंभावी है, परंतु कब आएगी, यह कोई नहीं जानता। इसलिए जब तक जीवन है, शुभ कर्मों को करने में कोई विलंब नहीं करना चाहिए।
संसार: सुख की नहीं, दुख की भूमि
यह संसार स्वभाव से ही दुखमय है, यहाँ सच्चा सुख मिलना असंभव है। जो भी व्यक्ति, वस्तु या स्थिति हमें सुख देती प्रतीत होती है, वह क्षणिक होती है। असली आनंद हमारे ही भीतर है—हमारा आत्मिक स्वरूप ही आनंदमय है। जितना अधिक हम आत्मज्ञान प्राप्त करेंगे, उतनी ही अधिक शांति, सुख और संतोष का अनुभव करेंगे।
यह संपूर्ण सृष्टि एक दिव्य योजना के अनुसार संचालित होती है, और इसकी प्रत्येक घटना प्रभु की इच्छा से ही घटित होती है। इसलिए हमें हर परिस्थिति में अपने हित और कल्याण को देखना चाहिए।
कलियुग और मुक्ति का सरल मार्ग
कलियुग में जन्म लेना सौभाग्य की बात है क्योंकि इस युग में मुक्ति की प्राप्ति अन्य युगों की तुलना में बहुत आसान है। सत्ययुग में वर्षों तक ध्यान करने, त्रेतायुग में हजारों यज्ञ करने, और द्वापरयुग में सैकड़ों वर्षों तक पूजा-अर्चना करने के बाद ही मोक्ष संभव था। लेकिन कलियुग में केवल प्रभु के नाम-संकीर्तन से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है, बशर्ते वह सच्चे हृदय और भावनाओं से किया जाए।
भगवान पर संपूर्ण विश्वास और उनसे मिलने की तीव्र इच्छा रखने पर वे स्वयं अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। सांसारिक सुखों—जैसे धन, स्त्री, मान, प्रतिष्ठा और सत्ता—की तृष्णा छोड़कर यदि कोई स्वयं को प्रभु को समर्पित कर देता है, तो मोक्ष की प्राप्ति अत्यंत सहज हो जाती है।
तृष्णा: अंतहीन इच्छा और अधोगति का कारण
मनुष्य की इच्छाएँ कभी समाप्त नहीं होतीं। गरीब व्यक्ति धन चाहता है, धनवान अधिक संपत्ति की लालसा करता है, लक्षाधिपति राज्य चाहता है, राजा संपूर्ण पृथ्वी पर शासन की इच्छा करता है, चक्रवर्ती सम्राट देवत्व प्राप्त करना चाहता है, और देवत्व प्राप्त करने के बाद भी तृष्णा समाप्त नहीं होती। अंततः तृष्णा से ग्रस्त व्यक्ति अधोगति को प्राप्त होता है, जबकि जो व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त होता है, उसे श्रेष्ठ लोकों की प्राप्ति होती है।
अतः, मनुष्य योनी का उद्देश्य केवल सांसारिक सुखों की प्राप्ति नहीं, बल्कि मोक्ष की ओर बढ़ना है। इस जीवन का सही उपयोग वही है जो आत्मज्ञान प्राप्त कर प्रभु की शरण में समर्पित हो जाए। धरती पर एक मात्र प्राणी इन्सान ही ऐसा है जिसकी कभी इच्छाएँ पूरी नहीं होती इसलिए जितनी जल्दी हो सके यह बात समझ में आ जाएं ये हैं केवल संसार दुखों के लिए बना है और असली सुख सिर्फ़ मोक्ष में है जितना हो सके अपने आप को भक्त और भगवान के लिए समर्पित कर दे
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