Inspirational stories in hindi | प्रेरणादायक कहानियाँ | जिन्दगी को बदलने वाली कहानी |

Tittle- MOTIVATIONAL SUCCESS STORY IN HINDI - 
जीवन के लिए कुछ अच्छी और प्रेरणादायक कहानियां आज के इस लेख मैं चारों कहानियां ऐसी हैं , जिनको पढ़कर आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी क्योंकि इनमें दो कहानियां ऐसे व्यक्तित्व की हैं ,जो डॉक्टरों के द्वारा अपाहिज घोषित कर दिए गए थे लेकिन उन्होंने अपने इच्छाशक्ति के बलबूते पर दुनिया में अपना नाम रोशन किया है जो हमारे हम सबके लिए बहुत बड़ी प्रेरणा है ऐसी कहानियां पढ़ने से हमें प्रेरणा और आगे बढ़ने की शक्ति मिलती है
 Tittle- विल्मा रडोलफ के जीवन की प्रेरणादायक कहानी -

 
सन 1960की दुनिया की सबसे तेज धाविका विल्मा रुडोलफ 
 
 First story.....(1) 
विल्मा रुडोलफ की सच्ची कहानी:-
विल्मा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था जब 4 साल की थी तब उसे डबल निमोनिया यानी काला बुखार ने गंभीर रूप से बीमार कर दिया था। इसकी वजह से उसे पोलियो हो गया था। वह पैरों के सहारा देने के लिए बैरस ( brace) पहना करती थी डॉक्टरों ने तो यहां तक कह दिया था कि वह जिंदगी भर चल फिर नहीं सकती। लेकिन विल्मा की मां ने उसकी हिम्मत बढाई और कहा कि ईश्वर की दी हुई क्षमता, मेहनत और लगन से वह जो चाहे कर सकती है, यह सुनकर विल्मा ने कहा कि मां मैं दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। जब वह 9 साल की थी विल्मा ने डॉक्टरों के कहने के बाद भी ब्रेश को उतारकर फैंक दिया था और पहला कदम उठाया जबकि डॉक्टरों ने कि वह कभी चल भी  ये भी पढ़े-भगवान् सब सुन रहा है motivational story



 जब वह 13 साल की होने पर उसने अपनी पहली दौड प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और सबसे पीछे रही। उसके बाद वह दूसरी बार दौडी तो फिर भी  हार गई , पर उसने कभी हार नहीं मानी और वह लगातार कोशिश करती रही।  अब वह दिन आ ही गया जब वह पहले स्थान पर आई।

 15 साल की उम्र में विल्मा टेनसी स्टेट यूनिवर्सिटी गई, जहां वह एक टेंम्पल नाम के कोच से मिली। विल्मा ने उन्हें यह अपनी ख्वाहिश बताई कि वह दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती है । तब टेंपल ने कहा तुम्हारी इस इच्छाशक्ति की वजह से तुम्हें कोई भी नहीं रोक सकता, और साथ में मैं तुम्हारी मदद करूंगा। आखिर वह दिन आया जब विल्मा ने ओलंपिक में हिस्सा लिया।
 ओलंपिक में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में मुकाबला होता है और विल्मा का मुकाबला  रेस की खिलाड़ी जूता हैंन से था जिसे कोई भी हरा नहीं पाया था आज तक । पहली दौड़ 100 मीटर की थी इसमें विल्मा ने जूता  हैन को हराकर अपना पहला गोल्ड मेडल जीता था।
 दूसरी दौड़ 200 मीटर की थी इसमें विल्मा ने जूता हैंन को हराकर दूसरी बार भी गोल्ड मेडल जीत लिया था। और अब तीसरी दौड़ 400 मीटर की रिले रेस हो रही थी । इस दौड़ में आखिरी हिस्सा  विल्मा और जूता हैंन को दोनों दोनों को अपनी के लिए दौड़ के आखिरी हिस्से में दौड़ना था। विल्मा की टीम में 3 लोग रिले के शुरुआती तीन हिस्से और आसानी से बैटन बदलनी होती है, लेकिन विल्मा ने देख लिया था कि दूसरे छोर पर जूता हैन तेजी से दौड चली है। विलमा ने गिरी हुई बैटन उठाई और और मशीन की तरह ऐसी तेजी से दोडी कि जूता हैंन को तीसरी बार भी हराया और अपना तीसरा गोल्ड मेडल भी जीत लिया।
यह बात इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई कि एक लकवा ग्रस्त महिला 1960 के ओलंपिक में दुनिया की सबसे तेज धाविका बन गई।
 इस कहानी से शिक्षा:- 
 विल्मा की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है  की कामयाब होने के लिए जरूरी नहीं है कि हर चीज हमारे पास हो।  कुछ  लोग कठिनाइयों के बाद भी सफलता हासिल करते हैं।  जबकी कुछ लोग  कठिनाइयां नहीं होती तब भी कम कामयाब नहीं  होते हैं।  ऐसी कहानियां  सुनकर और पढ़ने से हमारी कमियों को खूबियों में बदला जा सकता है। और हमारे लिए  ऐसी कहानियां प्रेरणा बनती है।

MOTIVATIONAL 
SECOND TRUE STORY IN HINDI 

स्टीफन हॉकिंग की जीवनी  कहानी
स्टीफन हॉकिंग दुनिया में एक ऐसा विज्ञानिक और अध्यापक के रूप में फेमस हुए है, जो ना चल सकता था ना बोल पाता था लेकिन फिर भी अपने दिमाग की कम्पयुटर के द्वारा सब कुछ समझा देते थे। वह किसी करिश्मे से कम नहीं थे। जब हम इसकी कहानी और बीमारी के बारे में पढ़ते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे भगवान ने हम सब को शिक्षा देने के लिए ही इस इंसान का जन्म किया हो ।वरना इन्सान के पास सब कुछ होते हुए भी बुरा समय आते ही हार मान जाते हैं ।

स्टीफन हॉकिंग :- का जन्म इंग्लैंड देश में सन् 1942 में हुआ था। जिस वक्त हॉकिंग का जन्म हुआ था उस वक्त दुनिया में second विश्व युद्ध चल रहा था. स्टीफन हॉकिंग के माता और पिता का घर लंदन में हुआ करता था. लेकिन इस युद्ध के कारण उन्हें अपना घर बदलना पड़ा और वो लंदन की एक सुरक्षित जगह पर आकर रहने लगे।

स्टीफन के पिता एक चिकित्सा के रूप में कार्य करते थे, जिनका नाम फ्रेंक था. वहीं इनकी माता का नाम इसोबेल था और जो चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में बतौर एक सचिव के रूप में काम करती थी. हॉकिंग के माता-पिता की मुलाकात चिकित्सा अनुसंधान मे काम करने के दौरान ही हुई थी. जिसके बाद इन्होंने शादी कर ली थी और इनके कुल चार बच्चे थे. जिनका नाम स्टीफन, फिलिपा, मैरी और एडवर्ड था.
स्टीफन हॉकिंग की शिक्षा :-

स्टीफन जब आठ साल के थे तब उनके परिवार वाले सेंट अल्बान में आकर रहने लगे और यहां के ही एक स्कूल में स्टीफन का दाखिला करवा दिया गया. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद स्टीफन ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया और यहां पर इन्होंने भौतिकी विषय पर अध्ययन किया. जिस वक्त इन्होंने इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया था, उस वक्त इनकी आयु महज 17 वर्ष की थी.
कहा जाता है कि स्टीफन को गणित विषय में रुचि थी और वो इसी विषय में अपनी पढ़ाई करना चाहते थे. लेकिन उस वक्त ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में ये विषय नहीं हुआ करता था. जिसके कारण उन्हें भौतिकी विषय को चुनना पड़ा.

भौतिकी में प्रथम श्रेणी में डिग्री हासिल करने बाद इन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी आगे की पढ़ाई की. साल 1962 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ एप्लाइड मैथेमैटिक्स एंड थ्योरिटिकल फिजिकल में इन्होंने ब्रह्माण्ड विज्ञान पर अनुसंधान किया.
सन 1963 में खराब हुई तबीयत
स्टीफन हाकिंग आम लोगों के जैसे ही अपना जीवन जी रहे थे लेकिन साल 1963 में इनकी सेहत खराब होने लगी. 21 वर्ष स्टीफन की बिगड़ती हालत देख उनके पिता उन्हें अस्पताल ले गए जहां पर उनकी जांच की गई और जांच में पाया गया कि स्टीफन को एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस नामक ऐसी बीमारी है. इस बीमारी के कारण शरीर के कुछ भाग धीरे-धीरे काम करना बंद कर देते हैं और इस बीमारी का कोई भी इलाज नहीं है. जिस वक्त स्टीफन को इस बीमारी का पता चला था उस वक्त वो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई कर रहे थे. लेकिन उन्होंने अपनी इस बीमारी को अपने सपनों के बीच नहीं आने दिया. बीमार होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई को पूरा किया और साल 1965 में उन्होंने अपनी पीएचडी की डिग्री हासिल की. पीएचडी में इनके थीसिस का शीर्षक ‘प्रॉपर्टीज ऑफ एक्सपांडिंग यूनिवर्स‘ था ।

स्टीफन हॉकिंग की शादी
हॉकिंग की पहली शादी 30 सालों तक चली थी और साल 1995 में जेन और हॉकिंग ने तलाक ले लिया था. तलाक लेने के बाद हॉकिंग ने ऐलेन मेसन से विवाह कर लिया था और साल 1995 में हुई ये शादी साल 2016 तक ही चली थी.
स्टीफन हॉकिंग का करियर :-
कैम्ब्रिज से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद भी हॉकिंग इस कॉलेज से जुड़े रहे और इन्होंने एक शोधकर्ता के रूप में यहां कार्य किया. इन्होंने साल 1972 में डीएएमटीपी में बतौर एक सहायक शोधकर्ता अपनी सेवाएं दी और इसी दौरान इन्होंने अपनी पहली अकादमिक पुस्तक, ‘द लाज स्केल स्ट्रक्चर ऑफ स्पेस-टाइम’ लिखी थी. यहां पर कुछ समय तक कार्य करने के बाद कुछ साल इन्हें रॉयल सोसायटी में शामिल किया गया. जिसके बाद इन्होंने साल 1975 में डीएएमटीपी में बतौर गुरुत्वाकर्षण भौतिकी रीडर के तौर पर भी कार्य किया और साल 1977 में गुरुत्वाकर्षण भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में भी यहां पर अपनी सेवाएं दी. वहीं इनके कार्य को देखते हुए साल 1979 में इन्हें कैम्ब्रिज में गणित के लुकासियन प्रोफेसर पद पर नियुक्त किया गया था, जो कि दुनिया में सबसे प्रसिद्ध अकादमी पद है और इस पद पर इन्होंने साल 2006 तक काम किया.
अंतिम समय:-
स्टीफन हॉकिंग का जीवन के लगभग 53 साल व्हील चेयर पर बिताए हैं. वहीं 14 मार्च 2018 को इस महान वैज्ञानिक ने अपनी अंतिम सांस इग्लैंड में ली और इस दुनिया से हमेशा के लिए विदाई ले ली. लेकिन वैज्ञानिक और इतिहास में इनके द्वारा दिए गए योगदानों को कभी भी भुला नहीं जा सकेगा.
जब तक इतिहास रहेगा तब तक स्टीफन हॉकिंग का नाम रहेगा।
वह हम सबके लिए एक ऐसी प्रेरणा है जो ना बोल पाते थे और फिर भी सब कुछ अपने दिमाग और बुद्धि के बलबूते पर सब कुछ कंप्यूटर के द्वारा अपने शब्दों को हमारे सामने पेश कर देते थे। ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम होते हैं। ऐसे लोगों की कहानियां सुनकर और पढ़कर हमें प्रेरणा मिलती है। जिनके पास हाथ, पैर, बुद्धि सब कुछ है। वह कभी भी अपनी असफलता और जिन्दगी से निराश ना हो क्योंकि उन जैसा धनी दुनिया में कोई भी नहीं है। दुनिया में सवास्थय सबसे बड़ा धन है ।

 
Motivational hindi third story ( 3)
TITTLE -
विनम्रता सबसे बड़ा गुण हैं:- 
बहुत साल पहले एक घुडसवार ने कुछ सैनिकों को काम करते हुए देखा जो एक लकड़ियों का गट्ठा उठाने में असफल हो रहे थे और उनका नायक उनकी मदद ना करके सिर्फ आदेश दे रहे थे। लगातार कोशिश करने के बाद भी असफल हो रहे थे । घुड़सवार ने जब पुछा कि वह उनकी मदद् क्यो नही कर रहे है। नायक ने जवाब दिया मै इनका नायक हूँ ।
घुड़सवार अपने घोड़े से उतर कर उन सैनिकों के पास गया और उसने उस गट्ठे को उठाने में मदद् की और वह गट्ठा बहुत आसानी उठ गया है। घुड़सवार चुपचाप अपने घोड़े पर सवार होकर चला गया और जाते हुए उस नायक को बोल गये कि अगली बार जब उसके सैनिकों को मदद की जरूरत पडे तो अपने commander-in-chief को बुला लेना। जब वह घुड़सवार चला गया तो नायक और सैनिकों को पता चला कि वह घुड़सवार कोई और नहीं बल्कि जॉर्ज वाशिंगटन थे।
moral of the story :-
इस कहानी में संदेश बिल्कुल साफ है सफलता और विनम्रता हाथ में हाथ डाले एक साथ चलती है। जब हमारी प्रशंसा करते हैं तो आवाज बहुत दूर तक जाती है। जरा इसके बारे में सोचिए सादगी और विनम्रता इंसान की दो ऐसी महान शक्तिया हैं जो इंसान को सिर्फ सफलता की ओर ही ले जाती हैं। यह सफलता की पहली निशानी है। अगर आप भी अपनी जिंदगी में सफल होना चाहते हैं ,तो जीवन में विनम्रता जरूर रखिए क्योंकि विनम्रता के साथ भगवान का साथ होता है। 

Motivational hindi 4th story
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Tittle :- सब्र का फल

बात उस समय की है जब स्वामी विवेकानंद विश्व भर में भ्रमण करते हुए धर्म का प्रचार कर रहे थे और लोगों को ज्ञान दे रहे थे
एक बार सवामी जी अपने कुछ शिष्यों के साथ एक कस्बे में भ्रमण कर रहे थे। उन दिनों कोई वाहन नहीं हुआ करते थे तो लोग पैदल ही मीलों की यात्रा करते थे ।ऐसे ही घूमते हुए काफ़ी दुर तक एक कस्बे में पहुंच जाते हैं बहुत देर हो गयी थी।
सवामी जी को बहुत भुख और प्यास लगी थी। उन्होनें अपने एक शिष्य को गाँव से पानी लाने की कहा और जब वह शिष्य गाँव में गया तो उसने देखा वहाँ एक नदी थी जहाँ बहुत सारे लोग कपड़े और बर्तन धो रहे थे कुछ लोग नहा रहे थे। तो नदी का पानी काफ़ी गंदा दिखाइ दे रहा था।
शिष्य को लगा की गुरु जी के लिए ऐसा गंदा पानी ले जाना ठीक नहीं होगा, ये सोचकर वह वापस आ गया। लेकिन सवामी विवेकानंद जी को बहुत प्यास लगी थी इसीलिए उन्होनें फिर से दूसरे शिष्य को पानी लेने के लिए भेजा, कुछ देर बाद वह शिष्य लौटा और पानी ले आया
जब गुरु जी ने शिष्य से पूछा की नदी का पानी तो गंदा था फिर तुम साफ पानी कैसे ले आए, शिष्य बोला की प्रभु वहाँ नदी का पानी वास्तव में गंदा था लेकिन लोगों के जाने के बाद मैने कुछ देर इंतजार किया।और कुछ देर बाद मिट्टी नीचे बैठ गयी और साफ पानी उपर आ गया और फिर मैंने लुटिया को धीरे से डुबोकर भर लिया।

गुरु जी यह बात सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और बाकी शिष्यों को भी सीख दी कि हमारा ये जो जीवन है यह पानी की तरह है, जब तक हमारे कर्म अच्छे हैं तब तक सब कुछ शुद्ध है, लेकिन जीवन में कई बार दुख और समस्या भी आते हैं जिससे जीवन रूपी पानी गंदा लगने लगता है। कुछ लोग पहले वाले शिष्य की तरह बुराई को देख कर घबरा जाते हैं और मुसीबत देखकर वापस लौट जाते हैं, वह जीवन में कभी आगे नहीं बढ़ पाते वहीं दूसरी ओर कुछ लोग जो धैर्यशील होते हैं वो व्याकुल नहीं होते और कुछ समय बाद गंदगी रूपी समस्याएँ और दुख अपने आप ही ख़त्म हो जाते हैं।
शिक्षा- (moral of the story)
इस कहानी की सीख यही है कि समस्या और बुराई केवल कुछ समय के लिए जीवन रूपी पानी को गंदा कर सकती है, लेकिन अगर आप सब्र है तो बुराई खुद ही कुछ समय बाद आपका साथ छोड़ देगी, क्योंकि परिस्थितियां बुरी हो सकती है लेकिन इंसान नहीं। इसलिए हर काम के लिए समय और परिस्थिति को जरूर याद रखोहो सकता है,आज समय बुरा हो पर कल अच्छा भी हो सकता है।
 
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