राम से प्रार्थना कैसे करें | राम चरित मानस के चमत्कार || नवधा भक्ति कैसे करें || राम की पुजा कैसे करें | ram navmi festival|

Tittle-  राम नाम की स्तुति कैसे करें-
भगवान श्री रामचंद्र जी का प्रेरणादायक चरित्र और उनकी विशेष बातें आज मैं इस टॉपिक में आपको भगवान श्री रामचंद्र के बारे में कुछ ऐसी चरित्रवान बातें बताने जा रहे हैं जिसके कारण उन्हें श्री राम कहा गया है।

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राम के चरित्र का महत्व-
युगो युगांतरो से धर्म की स्थापना व संतों को सुख देने के लिए परम पिता परमात्मा अवतार लेते रहे हैं। इसी श्रृंखला में देशद्रोही अभिमानी रावण को मारने के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम रघु कल शिरोमणि भगवान श्री रामचंद्र जी का रूप में भगवान आए थे ,और श्री रामचंद्र जी सत, चेतन, व्यापक आनंद रूप व परब्रह्मा है। भगवान राम जी का जीवन जात-पात ,ऊंच-नीच के बंधनों को तोड़ने वाले हैं। शबरी भीलनी के पास जाकर झूठे बेर खाए और अभिमान में फंसे ऋषियों को सबक सिखाया भगवान राम जी ने भक्ति के लक्षण बताते हुए कहा है कि प्रथम भगति संतन कर संगा, दूसरी रति मम कथा प्रसंगा।
भगवान राम जी एक आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श शखा ,आदर्श  पति,  आदर्श शत्रु, और आदर्श राष्ट्र भक्त थे । राष्ट्र को राक्षसी  ताकक्तो से मुक्त कराने के लिए वह किसी भी प्रलोभन का शिकार ना हुए। उनके सानिध्य में आने वाले हनुमान जी ,जामवंत, जटायु विभीषण आदि विधिवत श्रेणी प्राप्त कर गए।
रावण ने अपने सगे मामा मारीच को जानवर बना दिया था। श्री राम जी के संग रहने वालों को श्राप भी वरदान बने, जबकि रावण के पास रहने वाले मेघनाथ, कुंभकरण आदि को मिले वरदान भी श्राप बन गए थे ।

श्री राम जी ने कभी  अपनी प्रशंसा को दिल में स्थान नहीं दिया।  राक्षस तत्वों को मार कर भी वह यही कहते थे कि गुरु वशिष्ठ कुल पूज्य हमारे जिनके कृपा दनुज रण मारे,
ऐस भगवान श्री राम जी का व्यक्तित्व प्रेरणादायक है।
प्रभु राम बेसहारों के सहारा है। दीनबंधु है, कृपा करने वाले हैं। जिनका कोई नहीं उनके राम तुम हो दुनिया में सबसे बड़ा विश्राम तुम हो । राम जी की स्तुति में 100 करोड़ रामायणे लिखी जा चुकी हैं।
श्री गुरु गुरु ग्रंथ साहिब जी में 2533 बार श्री राम नाम का वर्णन है। श्री गुरु नानक देव जी दी फरमाते हैं असुर सुधारण राम हमारा घट घट रमैया राम प्यारा।

गोस्वामी तुलसीदास जी भी हमें इस बात के लिए प्रेरित करते हैं भलो भली-भांति है जो मेरे कहे लागी हैं मन राम ना सो सुबह अनुरागी है, कहने का भाव है यह मन यदि मेरे कहे पर चलकर स्वभाव से ही राम नाम से प्रेम करेगा तो तेरा सफर करते भला होगा।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में लिखा है कि राम की भक्ति से मंगल ही मंगल होता है भगवान राम के भक्ति संजीवनी बूटी के समान है। राम के सुंदर स्वरूप का प्रेम स्वरूप स्मरण परम मंगल कारक तथा कल्याणकारक है ।
राम धर्म हमारी  संस्कृति का मेरुदंड है।

भगवान् राम से प्रार्थना कैसे करें -
हे नाथ मुझ पर दया करो मैं आपके शरण में हूं। हे प्रभु हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो अंधेरे से निकालकर प्रकाश की ओर ले चलो। संसारी कष्टों से हटाकर परम शांति और अनंत देने वाले अमृत की ओर ले चलो तुम ही एकमात्र आश्रय स्थल हो। सच्ची शरण तो आप ही हैं जहां जाकर हमें शांति मिलती हैं। हमारे दिल में जो बेचैनी और व्याकुलता है वह आपकी ही चरणो में आने पर मिलती हैं। हे सच्चे स्वरूप,  अजन्मा, अनंत, निर्विकार सर्वव्यापक, आप ही ब्रह्मा, विष्णु महेश हैं। आप ही आदि शक्ति मां जगदंबा जग जननी हैं।
हे प्रभु आप अनंत नामों से विभूषित हैं। आपके भक्त आपको अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। हे दिनानाथ यह निश्चित है जो भी आप की शरण में आता है ,अपने आप को आपके निकट तो ले ही आता है ।अनेक अनेक दुख, कष्ट, कलेस वह सब दूर हो जाते हैं ,और आपके लगातार निरंतर बहते हुए अमृत को प्राप्त करते हुए  आनंदित होते हैं।  मनुष्य जितना माया से संसार के बुरे कर्मों से जुड़ता है उतना ही आशांत, दुखी होता है।
शांति धाम तो केवल आप हैं प्रभु, ऐसी शक्ति दो कि हम संसार में रहे लेकिन कमल की तरह खिले हुए संसार से ऊपर उठे हुए और हमारा जैसे कमल का मुख सदैव सूर्य की तरफ रहता है, ऐसी ही हमारा ध्यान भी प्रभु सदा आपके तरफ ही बना रहे।
शुभ कर्म करें और बुरे कर्मों से बचें अपनी आत्मा के अंतरण को पवित्र बनाए अपने घर परिवार को पाप की कमाई से बचा कर रखें । ऐसा कोई कर्म हमारे द्वारा ना हो हे प्रभु । हे प्रभु  ऐसा आशीर्वाद हम आपसे चाहते हैं यही मेरी विनती है कृपया करके आप स्वीकार कीजिए कठिन से कठिन बीमारी मे मिलकर अंत:करण से यह पुकारो, हे संसार के चिकित्सक मैं और मेरा परिवार आपके सेवा में अर्पित हो। जैसा चाहो वैसा करो आंसुओं की धारा के साथ कई बार यह संकल्प दोहराये।
  इस प्रकार संकल्प से बड़ा सुकून मिलता है। आप भी इस  संसार के पिता हैं, आप ही पूजनीय हैं आप ही गुरु है।
हे अनन्त  प्रभावशाली भगवन इस त्रिलोकी मैं आप के समान कोई दूसरा कोई नहीं है, फिर अधिक तो कैसे हो सकता है। इसलिए शरीर से आप के चरणो में  पडकर स्तुति करने योग्य आप ईशवर दंडवत प्रणाम करके प्रसन्न रहना चाहता हूं ,जैसे पिता पुत्र के, मित्र मित्र के,  पति पत्नी के अपमान को सह लेते हैं ऐसे ही  हे देव मेरे द्वारा किए गए अपमान को सहने में  आप समर्थ हैं।
हे प्रभु आप ही माता और आप ही पीता हैं, आप ही बंधु, सखा है। आप ही विधा आप ही धन है। हे देवों के देव आप ही मेरे सब कुछ है ।प्रभु ब्रह्मा के रूप में तुम ही सब को जन्म देते हो ।
हे परमात्मा, हे जगदीश्वर, है यीशु के रूप में तुम ही सब का पालन करते हो ।हे भगवान ,हे महेश्वर के रूप में तुम ही सब को लय करते हो ।मैं तुम्हारी सत्ता को ,तुम्हारी शक्ति को, तुम्हारी सब शक्तियों को सर्व  व्यापकता को स्वीकार करता हूँ। 
हे प्रभु  , मुझे यह चेतन, प्रकाश मान विकार रहित निरोग स्वस्थ अद्भुत और दुर्लभ मनुष्य योनि  मानव शरीर प्रदान किया है।
मैं तुम्हें कोटि-कोटि धन्यवाद करता हूं। हे प्रभु तुमने मुझे वायु, दी जल दिया, भोजन दिया, वस्त्र दिए रहने के लिए घर दिया मैं तुम्हारा कोटि-कोटि प्रतिदिन धन्यवाद करता हूं। सुबह से रात तक सोने से उठने से तक हर पल हर क्षण बिना मांगे ही सब कुछ आप दे रहे हो,  तुमने मुझे दिल दिया, देखने के लिए आंखें दी जगदीश्वर तूने मुझे सुनने के लिए दो कान दिए हैं । हे भगवान तुमने मुझे सांस दिये है । हे अंतर्यामी तूने मुझे सब कुछ सिखा दिया है। भोजन करने के लिए जीभ और मुंह दिया है, बोलने और स्वाद चखने के लिए हे भगवान  तुमने मुझे जिह्वा और होठ दिए हैं। भक्ति और प्यार करने के लिए हे स्वामी तुमने मुझे दिल दिया है। कर्म करने के लिए परमात्मा तुमने मुझे दो हाथ दिए हैं, चलने फिरने के लिए हे जगत् पिता आपने मुझे दो टांगें और पैर दिए हैं। तुमने सब कुछ इतना अमूल्य धन भरपूर मुझे दिया है,  मैं तुम्हें बार-बार प्रणाम करता हूं और तुम्हारा गुणगान करता हूं। मैं तुम्हारे श्री चरणो में नतमस्तक होता हूं। हे प्रभु सब का कल्याण करो, मंगल करो। हे रघु मेरा भी कल्याण करो हे अंतर्यामी आप सब कुछ जानते आपसे कुछ भी नहीं छुपा हुआ है। मेरे ऊपर अपना आशीर्वाद बनाए रखो मेरे घर धन, सुख शांति समृद्धि परिवार सब कुछ आप दे रहे हो। हे प्रभु भक्ति में निरंतर लगा रहा हूं इस प्रकार का आशीर्वाद आप मुझे दो। मैं सब कुछ भूल कर भूल जाऊं पर आपको कभी नहीं भुलू, हे प्रभु मुझे इस प्रकार का आशीर्वाद आप ही दे सकते और किसी में यह क्षमता नही है देने की।

श्री राम चरित मानस के चमत्कार- 

महाराजा दशरथ को बहुत ही पीड़ा थी कि उनके यहां कोई संतान नहीं थी वह अपनी पीड़ा को व्यक्त करने अपने गुरु वशिष्ठ जी के पास गए और अपनी वेदना उन्हें बताई गुरु वशिष्ट ने शिष्य की  पिडा को समझा और पुत्रष्टी यज्ञ करने की सलाह दी। महाराज दशरथ ने यह किया और यज्ञ प्रसाद से एक नहीं चार चार पुत्र हुए राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न की उत्पत्ति  यज्ञ करने के बाद प्राप्त हुई है।
श्री राम खुद  नारायण के अवतार हैं,लक्ष्मण शेषनाग के अवतार हैं ।
राम जन्म के जहां अनेक कारण हैं वहां एक कारण भगवान द्वारा मनु और शतरूपा को दिए वचन भी हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि त्रेता युग में अपने वचन के पालन हेतु महाराज दशरथ और कौशल्या की कोख से मैं जन्म लूंगा। महाराज मनु ने ही त्रेता में महाराज दशरथ और शतरूपा कौशल्या के रूप में जन्म लेकर अपने मनोरथ को सिद्ध किया। कलयुग के प्राणियों के लिए मानस चरित जैसा कोई  और कोई ग्रंथ नहीं है, जो हर तरह से परिपूर्ण है।
भगवान् राम ने कहा कि लंकेश रावण की मृत्यु हो गई तब  राम ने विभीषण से कहा तुम जाकर अपने बड़े भाई की अंतिम विधि  कर दो , इस पर उसने कहा प्रभु ऐसा नहीं हो सकता जिसने मेरा अपमान किया , मुझे देश निकाला दिया और मां जानकी कौ अशोक  वाटीका में बंदी बनाकर रखा हो  उस इंसान की मै अन्तयेष्टी कैसे कर सकता हूं, मैं नहीं करूंगा ।तब भगवान श्रीराम ने कहा विभीषण ऐसा मत सोचो अपने बड़े भाई के लिए इस प्रकार का अपमान की भाषा का प्रयोग करना तुम्हारे लिए उचित नहीं है। शत्रुता तभी तक तक रहती है जब तक जीवन रहता है, शरीर ना रहने पर ना कोई मित्र रहता है और ना ही कोई शत्रु,  सब कुछ शुन्य  में विलीन हो जाता है।   जब भगवान का पुष्पक विमान  ऊपर से चककर लगा रहा था। भगवान राम ने अपने सभी सहयोग से अपनी जन्मभूमि को सबसे श्रेष्ठ बताते हुए कहा जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। प्रत्येक मानव को जन्म भूमि, मातृभाषा और सर्व धर्म का पालन करना चाहिए ।

कलयुग में राम का नाम मानव के लिए सबसे बड़ा संम्बल है।  रामचरितमानस पारस मणि हैं। यदि यह रामचरितमानस का कथा अमृत पीने को मिले तो दूसरा कोई  और रस मत पिऔ।  रामचरितमानस की कथा मानव को निर्दोष बनाती है। रामचरितमानस में त्याग, बलिदान ,सहनशक्ति और ममता सभी कुछ है ।रामकथा का एक दर्पण है जिस प्रकार दर्पण में मानव को अपना स्वरूप स्पष्ट रूप से दिखाई देता है उसी प्रकार यदि हम मानस कथा को ठीक से पढ़ें सुने और उस का गायन करें तो निश्चित रूप से पतित पावन परम आत्मा के स्वभाव का अपने जीवन की कमियों का ज्ञान हो सकता है।

श्रीराम के समय पाप और पुण्य का युद्ध था । श्री कृष्ण के समय धर्म अधर्म का युद्ध था। सम्राट अशोक के समय सत्ता विस्तार का युद्ध था ।अब कलयुग में अब युद्ध है झूठ और सच का युद्ध है। और इस युद्ध  जीता जाएगा प्रेम के ब्रह्मास्त्र से।
श्री राम जी सागर के समान दिलवाले हैं उनकी शरण में जाने से सब अपराधों को प्रभु बुलाकर क्षमा कर देते हैं इसलिए तुम भी राम की शरण में जाओ।

राम चरित मानस के चमत्कार- 
महाराज दशरथ द्वारा राम को युवराज बनाने का शुभ समाचार सुनाने के लिए महाराज  कैकयी  के भवन गए थे  जब उनहोंने यह समाचार सुना तो वह आनंदित हो गई लेकिन देवताओं को यह समाचार अच्छा ना लगा, उनकी आशाओं पर तुषारापत हो गया। देवताऔ की वाणी की देवी सरस्वती के पास पहुंचे और सारा रहस्य बताया फिर  सरस्वती अयोध्या पहुंची और लेकिन एक भी व्यक्ति उसे ऐसा ना मिला जो इस समाचार को प्रति खिलाफ हो
फिर अंत में सरस्वती को मंथरा मिल गई उसने अपनी रानी कैकयी को उल्टा सीधा पढाकर कर राम को वनवास और भरत को राजगद्दी का वर मांगने के लिए के विवश कर दिया था।
यह थी सतयुग की बात अगर हम कलयुग में रामचरितमानस का पाठ दिल से करें और सुने तो यह हमारे हर मनोकामना को पूर्ण करने के लिए सबसे पवित्र और पारसमणी ग्रंथ है।


नवधा भक्ति के रूप और कैसे करें- 

राम ने श्री राम ने अपने मुख से 9 प्रकार की भक्ति का वर्णन किया है भगवत भक्ति की महिमा अपरंपार है सरवन भक्ति श्री हरि के नाम रूप गुण लीला चरित्र महिमा तत्व और रहस्य से परिपूर्ण श्री हरि की अमृतवाणी कथाओं का श्रद्धा पूर्वक विश्वास निर्मल मन और प्रेम पूर्वक सुनना अमृत मई कथाओं को दिल से प्रेम मुग्ध हो जाना सरवण भक्ति का स्वरूप है ।

कीर्तन भक्ति -

श्री हरि के नाम रूप गुण प्रभाव लीला चरित्र आदि का सरदा एवं प्रेम पूर्वक उच्चारण करना यानी गायन करते-करते शरीर में रंगमंच हो जाना दिल का खुश होना कीर्तन भक्ति कहलाती हैं।

समरण भक्ति कैसे करें  -
समरण भक्ति  प्रभु के नाम रूप गुण प्रभाव लीला चरित्र एवं श्री हरि के तत्व और रहस्य के प्रेम में मुक्त होकर मनन करते रहना, निरंतर प्रत्येक अवस्था में श्रीहरि को ही याद रखना,  श्री हरि शरण का भाव सोते जागते खाते-पीते उठते बैठते चलते फिरते काम करते समय रखना भगवान के स्वरुप में लीन हो जाना ।
समरण  भक्ति का स्वरूप कहलाया जाता है।

सेवा भक्ति कैसे करें -
सेवा भक्ति श्री भगवान के दिव्या मंगलमय श्री विग्रह स्वरूप, धातु आदी की मूर्ति चित्रपट अथवा मानसिक मूर्ति के मनोहर श्री चरण कमलों का तथा श्री गोविंद जी के चरण रज और चरण पादुका ओं का श्रद्धा प्रेम पूर्वक दर्शन करना, चिंतन पूजन , चंदन धूप इत्यादि से पूजन और सेवन करते करते श्री हरि के प्रेम में मुक्त हो जाना प सेवा भक्ति का स्वरूप है।

अर्चन भक्ति  कैसे करें -
श्री हरि की धातुएं पत्र आदि की मूर्ति वह तस्वीर के रूप में देखते हुए अथवा भक्तों के द्वारा वर्णित श्री हरि के चार भुजाओं वाला रूप तथा श्री राम कृष्ण आदि अवतारों की झांकी, मानसिक ध्यान करके भगवान के मानसिक मूर्ति का मानसिक सामग्रियों ,श्री विग्रह धातु अधिक की मूर्ति के चरणों का अनेक विधिपूर्वक उपचारों से श्रद्धा प्रेम पूर्वक सेवन पूजन करना श्री हरि के रहस्य तत्वों को मन में ही मन समझ कर प्रेम में मगन होना अर्चन भक्ति का स्वरूप कहलाता है।

वंदन भक्ति कैसे करें -
भगवान विष्णु के सहस्त्र पुराणों में वर्णित स्वरुप भगवान के अनंत नाम भगवान की धातु आदि की मूर्ति तथा चित्रपट अथवा मानसिक मूर्ति को अपने श्री चरणों को श्री को शरीर तथा श्रद्धा प्रेम पूर्वक साष्टांग दंडवत प्रणाम करना ऐसा करते हुए भगवान प्रेम में मुक्त होना तथा भगवान की मूर्ति के सामने मंदिर या घर में भगवान की स्तुति स्तोत्र द्वारा प्रेम श्रद्धा विश्वास के साथ विभिन्न प्रकार से करना भगवान प्रेम में लीन होना वंदन भक्ति का रूप कहलाता है ।

आत्म निवेदन भक्ति-
श्रीहरि के तत्व, रहस्य, गुण, लिला, चरित्र  की महिमा को जानकर ममता अहंकार से रहित होकर झुठे भाव को त्याग करके सब कुछ भगवान को समझते हुए तन ,मन, धन जन सहित श्रीहरि को समझते हुए अपने आपको तथा  संपूर्ण कर्मों को श्रदा प्रेम पूर्वक भगवान राम में अर्पण कर देना आतम निवेदन भक्ति कहलाती है।

सेवा भक्ति कैसे करें - 
जिस भक्ति में भगवान के साथ-साथ लोगों के लिए भी कुछ सेवा भाव किया जाए, जैसे खाना बनाना या फिर कहीं भी धार्मिक स्थानों पर सेवा करने का प्रभाव रखते हो तो उसे हम सेवा भक्ति करते हैं यह भक्ति सबसे उत्तम मानी गयी है। कयोंकि सेवा भक्ति में आपका धन खर्च नहीं होता सिर्फ मन से सेवा करनी होती हैं और जिसमें मन से सेवा की उसने सिर्फ भगवान को पा ही नहीं लिया हमेशा के लिए और भगवान उसका हो गया है।
Posted by-kiran
Thankyou


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