सुख की परिभाषा कया है || सुख प्राप्ति के लिए कया करें || असली सुखी कौन || दुखों का अंत कैसे करें || how to be happy |

Tittle-सुख की प्राप्ति के लिए लिये कया करें- 
अब सबसे पहले बात असली सुखी कौन है, क्योंकि इस संसार में संपूर्ण रुप से सुखी कोई नहीं हो सकता, पर सुख प्राप्ति के लिए क्या करें और क्या ना करें यह जानना भी बहुत जरूरी है।
 अगर हम इस बात को लेकर अज्ञानी हैं कि सुख की खोज  किस चीज में है ।आज मैं आपके साथ कुछ ऐसी बातें शेयर करने जा रही हूं जिनको पढ़कर हो सकता है आपको सुख शांति  मिले। 
 किन बातों को अपनाकर हम हमने जिंदगी में सुख की प्राप्ति पा सकते हैं।
 
* खुशीयो का खज़ाना----- 

युवकों को गुरु की पूजा करनी चाहिए लेकिन स्त्रियों को गौरी माता की पूजा करनी चाहिए। गुरु पूजा नहीं।
 चरित्र और नैतिक विकास के लिए धार्मिक पुस्तकों और महापुरुषों की जीवनी नित्य अवश्य करनी चाहिए। एकांत और शुद्ध स्थान में प्रभु के सामने प्रभु से बात करने का सच्चे मन से प्रयास करते रहने से एक दिन अवश्य ही सफलता मिलेगी, और जो शांति हमें प्रभु से बात करने में मिल सकती हैं और किसी से नहीं मिल सकती।
 सारी बौद्धिक सुविधाएं तथा सांसारिक सुख सुविधाएं प्राप्त हो जाने से भी मन को शांति नहीं मिलती वह तो एकमात्र प्रभु की शरण से ही मिलेगी।
 मैंने अनेकोअनेक बड़े बड़े धनवान ऐसे लोग दुखी देखे हैं जिनके पास किसी भी तरह की धन की कमी नहीं है पर वह दुखी , बीमारी,  नशा, परिवार का संकट,  अशांति आदि  असाध्य रोगो के कारण बहुत दुखी रहते हैं। सब कुछ होते हुए भी वह गरीब हैं। 
 अपने मन को तन को अपने आपको प्रभु के सामने समर्पित कर दो अगर सच्चे मन से प्रभु को समर्पण कर दिया तो मानो सारे संकट दूर हो जाएंगे इसमें किसी भी प्रकार की शंका नहीं। 100% शांति, सुख, आनंद मिल जाएगा और यह अवश्य ही होगा बस जरूरत है प्रभु के सामने खुद को 100% परसेंट सरेंडर करने की ।

*असली सुखी कौन ------

 जिंदगी में अगर इस बात की पहचान करनी है कि असली सुखी कौन है वह लोग सुखी हैं जो गुजरे हुए कल की बात नहीं करते।  वह सुखी हैं जो कभी भी क्रोध नहीं करते और हमेशा शांत रहते हैं। वह सुखी हैं जिन्होंने दूसरों से कभी जलन देवेश इन तीनों पर अपने ऊपर नियंत्रण कर लिया है।
 वह लोग भी सुखी हैं जो अपनी आमदनी से कम खर्चा करते हैं।

 वह लोग भी सुखी हैं जो समय की कीमत जानते हैं और अपना कार्य समय से पहले पूरा कर लेते हैं और अलास नहीं करते।
 
वह भी सुखी हैं जो अपने पड़ोसियों को कभी सुख देते हैं और पड़ोसियों से प्यार मिलता है और जो अपनी पूरी क्षमता लगाकर ईमानदारी से धन इकट्ठा करके अपने लिए और दान धर्म करने के लिए तैयार रहते हैं।

 वह लोग भी सुखी हैं जिनमें क्षमा का सद्गुण,  सेवा का भाव,  दूसरों के लिए सहयोग की भावना अपने विचारों में रखते हैं और साथ में करते भी हैं ।

वह लोग भी सुखी रहेंगे जो माता पिता और गुरु की सेवा करते हैं, उनको पूजनीय मानते हैं।

 अपने से नीचे वालों को देखो संसार में सबसे ज्यादा मनुष्य ऐसे मिलेंगे जिन की कठिनाइयां और कष्ट तुम्हारी कल्पना से भी कहीं अधिक है। 

अब तुम इस बात को समझ लो और किसी के साथ द्वेष से व्यवहार ना करके विशेष प्रेम का व्यवहार करो। दूसरों से आशा दूसरों पर भरोसा दूसरों को विश्वास यही जीव की नासमझी है।
 यह सब प्रभु के प्रति हो जाए तो जीव का कल्याण हो ही जाता है और इंसान को सुख ही सुख और शांति ही शांति मिलती है। 
अगर आपके मान लो रहने के लिए अच्छा घर नहीं है तो थोड़ी देर शांत होकर यह सोचना कि कुछ लोग ऐसे भी हैं  जिनके  पास सोने के लिए झोपड़ी भी ना हो और कुछ लोग सड़कों पर ही सो जाते हैं।
 जैसा भी है भगवान ने जो भी दे रखा है बहुत अच्छा दे रखा है। अगर आपके पास रहने के लिए छत है तो आपसे ज्यादा कोई धनवान नहीं है। 

 अगर आपके शरीर के सारे अंग सही से काम करते हैं फिर आप से बड़ा कोई सवस्थ नहीं है।

 दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जिनके पास हाथ पैर नहीं है, एक बार जरा गौर से देखना जिन लोगों के पास हाथ पैर या शरीर का कोई अंग नहीं होता तो वह कितनी मुश्किल दौर से गुजरता है।

 अगर आप को भगवान ने सारे अंग सही दे रखे हैं तो फिर आप दुखी किस बात को लेकर हैं। अगर जीवन में आप कभी भी किसी बात को उदास होते हैं तो हमेशा अपने से छोटे लोगों के बारे में सोचें ना कि अपने से बड़ों के बारे में क्योंकि बड़ा तो पेड़ का खजूर भी होता है पर फिर भी वह किसी को ना तो छाया देता और ना ही उसके फल किसी के काम आते।

*हमारी इच्छा ही हमारी दुखों का कारण होती है-

इंसान की जरूरत है तो पूरी हो जाती हैं जरूरी जरूरी चीजें वह बटोर लेता ही है मगर उसकी चाह कभी भी पूरी नहीं हो सकती।  चाह की गति लाखों में प्रति सेकंड है और यह इच्छा  मनुष्य  का सर्वनाश कर देती है।  चाह बर्बादी का रास्ता है।
अगर इंसान अपनी इच्छा को बस में कर ले तो फिर किसी भी प्रकार का संकट दुख विफलता ठहर ही नहीं सकती।
 बहुत कुछ प्राप्त करने की इच्छा को लेकर एक मनुष्य भागदौड़ उलट पलट    ठगी, झूठ, चलाकी,  क्या-क्या नहीं करता।
 लेकिन इच्छाएं रखने से सब कुछ किसी को भी नहीं मिलता। प्रभु का विधान ही ऐसा बनाया हुआ है,  खेल बनाया हुआ है और वही हमें खिला रहा है, दौडा रहा है। एकमात्र तरीका है यह भी सब कुछ प्रभु की मर्जी पर छोड़ दो, वह जो करता है, वह कुछ भी जो देता है उसे ही पूर्ण मान लो इच्छा को छोड़ दो बस खेल खत्म जीत भी हमारी हो गई और शांति भी मिल जायेगी। 

*संयम कया है- 
संयम  एक छोटा सा नाम है मगर इसके अंदर एक अद्भुत शक्ति सुख और शांति भरा पड़ा है। अगर इंसान के पास संयम है तो इच्छाएं ऊपर उठ ही नहीं सकती और संयम के साथ-साथ शांति सुख सुयश हमेशा रहेंगे ही, तो शांति को क्यों छोड़े संयम के बिना संतुलन नहीं रह सकता और संतुलन के अभाव में जीवन सुनियोजित नहीं रखा जा सकता और बिना सुनियोजिता आगे प्रगति संभव नहीं है। जिस जीवन में प्रगति नहीं है वह जीवन तो एक मृतक के समान है।
 संयमी, सतकर्मी और मितभाषी एक सदस्य को भी पूजनीय बना देते हैं।
 आप बनने की अवश्य कोशिश करें भगवान नारायण प्रभु ने आपका भाग्य आपके जन्म के साथ साथ ही लिख दिया था उससे कम या ज्यादा जल्दी या देर हो ही नहीं सकती तो फिर  चाहना करने से क्या फायदा क्यों अशांति को न्योता दे रहे हो।  जब हम किसी वस्तु की चाह ना करते हैं यदि वह ना मिले तो मन में चिंता पैदा होती है।
 मन खिन्नता आती  है और मन चिडचड़ा हो जाता है जिसके कारण हम अन्यथा ही दुख का कारण बनता है। इच्छाओं को कम कर देने से जीवन सुखमय  बन जाएगा और जीवन में खुशियां ही खुशियां होगी और फिर किसी प्रकार का कोई दुख नहीं होगा।
 जरूरत से जयादा हमारी चाहना भी हमारे लिए दुखों का कारण  है इसलिए अपनी इच्छाओं को कम करके अपने ऊपर नियंत्रण करें और अपने घर में और अपने परिवार के लिए खुशियां लाए। 

 * सिकन्दर भी दुनिया से आखिर में ख़ाली हाथ ही गया था ।

* दुनिया में सारे दुख जीते जी ही हैं ,मरने के बाद कोई दुख नहीं है इसलिए इतना कमाए कि आप सुख की रोटी खा  सको ना कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जोड़कर जाएं।
 
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Posted by-kiran

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