ऊँ शब्द का रहस्य || ऊँ शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई || ऊँ और बाह्ममन्ड का रहस्य || शिव और ऊँ का समबन्ध |


Tittle- ऊ शब्द और बाह्ममन्ड का रहस्य और ऊँ शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई-  क्या आप भी जानना चाहते हैं ?
हम सब यह तो जानते है कि रह एक विशेष मन्त्र है। ओम मंत्र का उच्चारण से मन को शांति मिलती है और सकारात्मकता बढ़ती है। परंतु क्या इसके अतिरिक्त भी ओम मंत्र का कोई गूढ़ रहस्य है उनका रहस्य जानने से तुम्हें ब्राह्मण के सीक्रेट कोड 369 में से तीन नंबर वाली पहली चाबी मिल जाएगी। जिससे आप सबसे बड़े खजाने के सभी ताले खोल सकते हैं और संसार में सबसे अमीर व्यक्ति भी बन सकते हो और साथ में यह भी जान सकते हो कि आत्मा क्या है, मोक्ष क्या है ब्राह्ममन्ड क्या है, तुम संसार में क्यों आए हो और तुम्हारा उद्देश्य क्या है।
अगर तुमने औम के रहस्य को नहीं जाना तो तुम्हारे पास अरबों खरबों रुपए होने के बावजूद भी तुम संसार के सबसे गरीब और दीन व्यक्ति ही रहोगे।
ओम मंत्र का यह रहस्य तुम वेदों और उपनिषदों से प्राप्त कर सकते हो, लेकिन हो सकता है  तुम्हारे पास इतना समय नहीं है कि तुम बड़े बड़े वेद पुराणों का अध्ययन कर सको।
तो आपको हमारी इस लेख को अंत तक एकाग्र चित्त होकर पढना ताकी आप समझ सको।

ऊँ धर्म का प्रतिक है -
ओम सनातन धर्म का प्रतीक है। और यह शिव का भी प्रतीक है। यह एक ऐसी ध्वनि या मंत्र है जो अनगिनत रहस्य को अपने अंदर समेटे हुए हैं, और अमेरिका की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में डायरेक्टर रह चुके पीटर रसेल इस मंत्र पर गहन अध्ययन कर रहे हैं और उन्होंने इसे इक्वल टू एमसी स्क्वायर इक्वल टू एमसी स्क्वेयर के समकक्ष बताया है और वो कहते हैं कि यह सूत्र चेतना की अभिव्यक्ति को दर्शाता है।
औम ब्रह्मांड की एक ऐसी ऊर्जा है ,जिससे यह ब्रह्मामन्ड बना है। बहुत सारे देशों में अलग-अलग जगह पर रिसर्च चल रहा है कि औम की ध्वनि का हमारे शरीर पर क्या असर पड़ता है। इस रिसर्च में जब अलग-अलग ध्वनि को ऊंची आवाज में बजाया जाता है तो हर ध्वनि का असर शांत पड़े पानी पर अलग-अलग पड़ता नजर आता है। लेकिन ओम की ध्वनि का असर पानी पर सबसे अलग पड़ता है। research करने वाले खुद हैरान थे कि ओम की ध्वनि के बजने पर पानी पर ऐसी आकृति बनती है।, जैसे कि सनातन धर्म में बताए गए श्री यंत्र की आकृति होती है । औम के सिवा कोई ध्वनि ऐसी आकृति नहीं बनाती थी। researches  ने बताया कि औम की ध्वनि बहुमूल्य ज्ञान का खजाना है और जब प्राचीन काल में एक सन्यासी को लगा कि गुप्त मंत्र से बड़े बड़े खजाने के ताले तोड़े जा सकते हैं तो यह सन्यासी गुप्त मंत्र की तलाश में एक बड़े आश्रम में जाता है। 
वहां के आचार्य से कहता है आप मुझे मूल्यवान गुप्त मंत्र दीजिए ,तो आचार्य ने कहा कि मैं तुम्हें गुप्त मंत्र तो दूंगा लेकिन तुम्हें सालों तक यहां रहकर सेवा करनी होगी।
सन्यासी ने सेवा करते करते सालो बिता दिये। एक दिन सन्यासी आचार्य के पास गया और बोला अब तो वह गुप्त मंत्र मुझे दे दीजिए तो आचार्य ने कहा कि ठीक है।
 तुम मेरे नजदीक आओ मैं तुम्हारे कान में गुप्त मंत्र कहूंगा। सन्यासी नजदीक गया तो आचार्य ने औम का मंतर दिया वह खुश हो गया और वहां से चला गया।
ओम का जाप करने लगा लेकिन कोई धन की प्राप्ति नहीं हुई तो उसे संदेह हुआ कि आचार्य ने उसके साथ धोखा किया है। वह जब वह बाहर निकला तो देखा की एक माँ अपन औम नाम के  बेटे को बुला रही थी।  औम बेटे यहां आऔ तो सन्यासी चौंक गया क्योंकि यहां तो किसी के बेटे का नाम ही औम था। जब वह और आगे गया तो कुछ ब्राह्मणों को देखा जो हरि ओम, हरि ओम बोल रहे थे। उसने अनुमान लगाया कि  यहां हर जगह औम  बोला जा रहा है। सन्यासी और आगे रास्ते मे बढ़ा तो कुछ विद्यार्थियों को ओम शांति ही, शांति ही बोलते हुए सुना तो सन्यासी कहने लगा कहीं आगे औम बोला जा रहा है तो कहीं वाक्य के पीछे कौन बोला जा रहा है इसको मंत्र को तो सभी जानते हैं ,तो फिर  यह  मंत्र कैसे गुप्त मंत्र हो सकता है। निश्चित ही मेरे साथ धोखा हुआ है।
वह अपने आचार्य के पास गया और कहने लगा आचार्य आपने मुझे यह कैसा मंत्र दिया है। इसे तो हर कोई जानता है तो फिर यह कैसे गुप्त मंत्र हो सकता है।
आप मुझे कोई दूसरा गुप्त मंत्र दीजिए जिससे मुझे खजाने की प्राप्ति हो। आचार्य बोले ठीक है मैं तुम्हें दूसरा  मंत्र दूंगा, लेकिन तुम्हें पहले  मेरा एक काम करना होगा।
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आचार्य भीतर जाकर एक पत्थर लेकर आए और सन्यासी से बोले यह लो सन्यासी इसे बाजार में ले जाओ और इसका मूल्य जानकार आऔ और याद रहे इस पत्थर को बेचना नहीं है। सन्यासी पत्थर को लेकर बाजार में गया और सब्जी वाले को दिखाया। सब्जी वाला बोला यह तो मेरे बाट के बराबर है मैं उसके बदले में तुम्हें फिर सब्जी  के सिवा कुछ नहीं दे सकता ।उसके बाद  फिर कपड़े वाले के पास गया तो कपड़े वाला बोला क्या हम पागल है जो पत्थर बेचकर हमें ठगना चाहते हो। चलो चलो यहां से। सन्यासी पत्थर को लेकर पूरे बाजार में फिरता रहा लेकिन किसी ने उसका मूल्य नहीं बताया और किसी ने उसको मुफ्त में भी नहीं लेना चाहा। फिर सन्यासी उस पत्थर को लेकर एक जौहरी की दुकान पर गया। जौहरी ने उस पत्थर को देखा और बोला कहां से मिला तुम्हें इतना कीमती पत्थर। यह तो बहुत ही मूल्यवान रत्न है। मेरे पास तो इतना धन ही नहीं है कि मैं यह रत्न खरीद सकूं और पूरे राज्य में शायद ही कोई ऐसा होगा जो इसे खरीद सकेगा। सन्यासी उस पत्थर को लेकर अपने आचार्य के पास वापस आया और आचार्य ने सन्यासी को बताया कि सिर्फ  जौहरी ही इसे मूल्यवान बता रहा था और दूसरों के लिए यह एक पत्थर मात्र था। आपको पता था कि यह पत्थर नहीं लेकिन कीमती रत्न है तो फिर मुझे इसका मूल्य जानने के लिए बाजार में क्यों भेजा, तो आचार्य कहने लगे कि ताकि  तुम औम का मूल्य जान सको। जैसे इस पत्थर का मूल्य हर कोई नहीं जान सका, यानी इसका मूल्य गुप्त है। हर कोई नहीं बता सकता केवल पारखी आंखें ही पहचान सकती है।  यह पत्थर नहीं एक रतन है इस तरह जो लोग  औम  मूल्य जानते है वह वह समृद्ध हो जाते हैं।

अब  तुम ध्यान से सुनो मैं तुम्हें औम का विस्तार पूर्वक रहस्य समझाता हूं। देवताओं के सेनापति भगवान कार्तिकेय ने भगवान शिव को औम का जो अर्थ बताया है, वह मैं तुम्हें बताता हूं। औम एक ऐसी प्राकृतिक ध्वनि है जो बिना किसी टकराव से उत्पन्न होती है।
जिसे तुम अक्षर, शब्द, ध्वनि या नाद भी कह सकते हो।औम में   तीन ध्वनियां है।
जिसे मात्रा कहा जाता है । वह है  अ ध्वनि, ऊ ध्वनि और म ध्वनि। जब अ ध्वनि + ऊ ध्वनि  मिलती  हैं तो बनाती है ओ ध्वनि। जब औम तीनों ध्वनियों में मिल जाता है तो औम बन जाता है।  तीनों ध्वनियों से ही समस्त विश्व की सभी भाषाएं और बोलियां बनती है, और गूंगा भीये सब ध्वनि  ध्व बोल सकता है। आपकी भाषा कोई भी हो लेकिन जब आप उच्चारण के लिए मुंह खोलते हैं तो सबसे पहले आकार की ध्वनि ही निकलती है ,और जब तुम उच्चारण के अनंतर मुंह बंद करते हो तो म औमकार की ध्वनि निकलती है और जब तुम होठों को पास लाकर आधा खुला और आधा बंद रखते हो तब भी ओमकार की ध्वनि सुनाई पड़ती है ।इसीलिए सभी भाषाओं की सभी ध्वनिया फिर वह स्वर व व्यंजन औमकार के अंतर्गत ही आती हैं।
इसलिए औम विशिष्ट वैश्विक ध्वनि है औम ईश्वर का प्रतीक भी है। मांडूक्योपनिषद के अनुसार जगत की उत्पत्ति और लय प्रतीक है को दर्शाती है।
 ऊँ की ध्वनि सर्जन  को दर्शाती है। 
ऊँ ध्वनि संसारिक प्रपंच  को दर्शाती है। म लय को दर्शाती है।  आत्मा की तीन अवस्थाओं को भी दर्शाती है। पहली स्थिति है जागृत अवस्था। इस अवस्था में  जीवात्मा अपने स्थूल अंगों  और इंद्रियों से भोगो को भोगता है । दूसरी स्थिति है सव्पन अवस्था इस अवस्था में जागृत होकर में  अपने मन के द्वारा भोगे हुए अनुभव की अनुभूति करता है। तीसरी अवस्था है सुषुप्ति।
इस स्थिति में जीवात्मा आनंदमय ज्ञान स्वरूप हो जाती है और ज्ञान से परमानंद को प्राप्त करती है।और इन तीनों अवस्था के बाद आत्मा ब्रह्म लीन हो जाती है। इस अवस्था में आने के बाद आत्मा अद्वैत शिव ही शिव रह जाती है। अब उसे जीव जगत और भर्म के भेद का प्रपंच नहीं रहता और उसे अनहद नाद गूंज सुनाई देता है। अनहत नाद कोई ध्वनि  नहीं है लेकिन अनाहत एक अनुभूति है जिसने आत्मा कहती है कि अहब्रह्मास्मि शिवोहम मैं ही ब्रह्म् हू ,मै ही औमाकार हूं, मैंने हीं जगत के रूप में अपना विस्तार किया है, मैं ही शेर हूं, जो मेरे ही हिरण रूप को मारने जा रहा हूं मैंने अपने पुत्र के रूप में जन्म लिया है, और मैंने ही मेरे माता पिता के रूप में जन्म ले चुका हूं। इस संसार में केवल मैं ही हूं ,
मेरे सिवा कोई नहीं है, बोलने वाला भी मैं ही हूं, और सुनने वाला भी मैं ही हूं ,सांप बनकर  भी मै ही अपने आप को डसने जा रहा हूं ,और मैं ही उससे बचने के लिए दौड़ रहा हूं।
इस ओंकार के रहस्य को जान लेने के बाद सोना, चांदी ,रुपए पैसे, सब मिट्टी लगने लगता है क्योंकि यह सब भौतिक पदार्थ वास्तव में मेरा ही स्थूल रूप है।
मैं तो इतना अमीर हूं कि यह घर यह जमीन ,यह पृथ्वी, यह तारामंडल ही नहीं पूरा ब्राह्ममन्डं  ही मेरा है, और ऐसे कितने ब्रह्मांड होगे जो मेरे ही अंग है, तो मेरे जितना अमीर कौन हो सकता है।


जब मुझे इतना बड़ा खजाना मिल रहा है मैं क्यों धन दौलत और जमीन, सोना, चांदी और रुपए पैसे के पीछे भागू और इस खजाने को खोलने के लिए मैंने तीन नंबर की चाबी दी है।
औमकार
जो अब मैं तुम्हें बताता हूं मुल तीन ध्वनियां है,  और तीन ही रगं है  लाल पीला और नीला।  प्रकृति के मूल लक्षण तीन है नाम,रूप और गुण ।शरीर की तासीर तीन है कफ पित और वायु। ब्राह्ममन्डं  की स्थितियाँ तीन है उत्पत्ति, पालन और प्रलय और उनके देवता भी तीन है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश। पदार्थ के मूल तत्व तीन है न्यूट्रॉन प्रोटोन और इलेक्ट्रॉन आयाम तीन है। पहले आयाम तीन है लंबाई ,चौड़ाई और गहराई।
इन तीन नंबर की चाबी को जितना गहराई से अध्ययन करोगे और उसकी गहराई में जाओगे तुम मुझे ही पाओगे। नहीं अपने आप को ही पाओगे क्योंकि इस संसार में और तुम्हारे सिवा दूसरा कोई है ही नहीं।

निष्कर्ष-
उम्मीद करती हूं आपको यह 369 की चाबी और औम का महत्व समझ में आ गया होगा। मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की आप सबको पूरी जानकारी पहुंचाने की। अगर कोई कमी कहीं रह गई हो तो इसके लिए मैं माफी चाहती हू। आखिर में यही कहना चाहूंगी शिव ही सत्य है और सत्य ही शिव है, इसके सिवा और दुनिया में कुछ नहीं है। जो कुछ भी है वह शिव ही है। तभी यह संसार चल रहा है वही पूरी दुनिया का कर्ताधर्ता है और कोई नहीं हो सकता। अगर आप और हम नहीं रहेंगे संसार फिर भी शिव  चलाता रहेगा । 
Posted by kiran


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1 टिप्पणियाँ

  1. Om, apne sahi kaha, par jab Tak iska abhash nahi hoga tab tak koi yakeen nahi karega, jise ho gya us par b koi yakeen nahi karega, chalo vo khushkismat hai jise ye anmulye ratan prapat huwa, om satye hai shiv satye hai.om

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