women quotes | औरतों के लिए अनमोल विचार | inspirational quotes for women|

Tittle-  औरत  घर को सवर्ग बना देती है ( women's power )घर में एक औरत की क्या पावर होती है आज हम इस लेख के माध्यम से आपको इस बात को समझने की कोशिश करेंगे कि एक औरत के अंदर कितनी सारी शक्ति समायी होती है, जो अपने अंदर हर तरह के अनुभव  समाये रखती हैं। जो लोग औरत को भला बुरा कहते हैं तो प्लीज इस लेख के माध्यम से औरत को समझने की कोशिश कीजिए कि वह भी एक इन्सान कोई कोल्हू का बैल नहीं। 

जिस प्रकार जीवन में बालों के बिना सिंगार अधूरा है उसी प्रकार औरत के बिना घर अधूरा है। 

अगर आप भी अपने घर की औरतों बेइज्जत  करते हैं तो प्लीज यह करना बंद करें क्योंकि वह अपना घर और मां बाप को छोड़कर सिर्फ आपके घर के लिए समर्पित हो जाती है। यह उसके लिए किसी तपस्या से कम नही कयोंकि एक पुरूष सुसराल के घर एक महिना भी नहीं रह सकता ।


*औरत की महिमा और उसका महत्व-

 एक औरत  घर को स्वर्ग बना देती है। औरत  एक उजड़े हुए , अशान्त , कलेश , दुःखी घर को एक महिला  स्वर्ग बना सकती है । घर में सुख - शान्ति - आनन्द खुशियों , हंसी की आवाज , सबसे प्रेम पूर्ण व्यवहार प्रत्येक दिन बड़ों के चरण स्पर्श छोटों को दुलार यह सारे गुण सिर्फ एक सद् - गृहिणी ही पैदा कर सकती है । 

 सद् - गृहिणी प्रत्येक दिन सुबह और सायंकाल , नारायण प्रभु की पूजा - पाठ धूप - दीप - आरती करती है । जिसका सद् प्रभाव घर के वातावरण पर पड़ता है घर के प्रत्येक सदस्य पर पड़ता है । 

 एक औरत  कभी थकती नहीं , कभी हार नहीं मानती , कठिन से कठिन कष्टों में ,

 मुसीबतों में भी मुस्कुराती रहती है और उसके कारण सारी विपदायें कट जाती है । वहां पर शान्ति , सुख , प्रेम , आनन्द ही आनन्द हो जाता है ।  मनुस्मृति में स्त्री कर्तव्य का वर्णन किया गया है इनमें उल्लेख किया गया है विवाहोपरांत स्त्री को गृह कार्यों में दक्ष होना , घर की साज - सज्जा , बुद्धि आदि में चतुर होना , आय - व्यय की संभाल रखना , गृह स्वामिनी होना , सभी वस्तुओं की समाल , धार्मिक अनुष्ठानों का संयोजन आदि कार्यों में निष्णात चाहिए । 


हर स्त्री को प्रभु नारायण ने सेवा भाव , उसके स्वभाव में दिया है ।  मगर कुछ को छोड़कर  उसके बोलने में मिठास है , नम्रता है , प्यार भरा है । नारी एक सेवा की सुन्दर मूर्ति है । सास - ससुर की सेवा , पति की सेवा , बच्चों की सेवा , ननद - देवर की सेवा , अतिथि सेवा , पीड़ितों की दुखियों की , रोगियों की सेवा एक नारी ही कर सकती है । और हर औरत प्रत्येक घर में कर भी रही है । कुछ  घरों को छोड़कर सेवा एक ऐसा मंत्र है , जिसके द्वारा सभी को वश में किया जा सकता है । सेवा करने के खेल में कुछ पाने की लालसा या अभिमान का भाव नहीं आना चाहिए । सेवा करने वाले को जो " आत्म - संतोष " और परम आनन्द की प्राप्ति होती है , यह एक अमुल्य धन है । यह बात एक औरत   अच्छी तरह जानती है और साथ ही साथ पुत्र एवं पुत्रियों को सुसंस्कृत करती है , घर नियमानुसार , शांति से , कुशलता के साथ चुपचाप संचालन करती हुई , वह धर्म - परायण सद् - गृहिणी घर को स्वर्ग बना ली है ।


*माता लक्ष्मी देवी जी कहती हैं कि --- - जो औरत  घर के बर्तन सुव्यवस्थित न रख इधर - उधर बिखरे रहती है , सोच - समझकर काम नहीं करती , सदा पति के प्रतिकूल बोलती है , दूसरों के घरो में घूमने - फिरने में आसक्त रहती है और लज्जा छोड़ देती है , पापाचार में तत्पर रही हैं , अपवित्र  , धैर्यहीन , कलहप्रिय और नींद में बेसुध होकर सदा खाटपर पड़ी रहनेवाली होती है , ऐसी नारी से मैं सदा  के लिए दूर रहती हूँ ।


 जो स्त्रियाँ सत्यवादिनी और अपनी सौम्य वेश - भूषा के कारण देखने में प्रिय होती है , जो सौभाग्यशालिनी , गुणवती , पतिव्रता एवं कल्याणमय आचार - विचारवाली होती है , तथा जो सदा वस्त्राभूषणों से विभूषित रहती हैं , ऐसी स्त्रियों मैं सदा निवास करती हूँ ।  जिसके स्वभाव , बातचीत और आचरण उत्तम हो , जिसको देखने से पति को सुख मिलता हो , जो अपने पति के सिवा दूसरे किसी पुरूष में मन नहीं लगाती हो । और स्वामी के समक्ष सदा प्रसन्नमुखी रहती हो , वह स्त्री धर्माचरण करनेवाली मानी गयी है । जो साध्वी स्त्री अपने स्वामी को सदा देवतुल्य समझती है , वही धर्मपरायणा और वही धर्म के फल की भागिनी होती हैं । जो पति की देवता के समान सेवा और परिचर्या करती है , पति के सिवा दूसरे किसी से हार्दिक प्रेम नहीं करती , कभी नाराज नहीं होती तथा उत्तम व्रतका पालन करती है जिसका दर्शन पति को सुखद जान पड़ता है जो पुत्र के मुख की भांति स्वामी के मुख को निहारती रहती है तथा जो साध्वी और नियमित आहार का सेवन करने वाली मानी जाती है। 

  और वह स्त्री धर्मचारिणी कही गयी है । पति और पत्नी को एक साथ रहकर धर्म का पालन  करना चाहिये , इस मंगलमय दाम्पत्य धर्म को सुनकर जो स्त्री धर्मपरायण हो जाती है , वह पति के समान धर्म का पालन करनेवाली  पतिव्रता  है ।

साध्वी स्त्री सदा अपने पतिको देवता के समान समझती है । पति और पत्नी का यह सह धर्म परम मंगलमय है । '

सती नारियों में समस्त देवी - देवताओं और ऋषि - मुनियों का तेज व दिव्य गुण विद्यमान रहते हैं । ये मूर्तिमान तीर्थ है । विश्व के समस्त तीर्थ उनमें विद्यमान है । तीर्थयात्रा करने से पापों का नाश होता है । सती नारियों के दर्शन मात्र से पाप जलकर भस्म हो जाते हैं । लज्जा व विशुद्ध शील ही जिसके । आभूषण है , जो धर्म के मार्ग पर ही कदम बढ़ाती है ( कुमार्ग पर नहीं ) , जो मधुर वाणी बोलती हो और नित्य निरंतर पति की सेवा में लीन रहती हो वह नारी सर्वश्रेष्ठ है और वह धरती को अपने पवित्र आचरणों से पवित्र बना देते है ।


सत्कर्मों से स्वर्ग का वातावरण बनता है और दुष्कर्मों से साक्षात् नरक का भारी घर परिवार की घुरी और निर्माता है । जिस घर में सदाचारिणी और पवित्र पतिव्रत्रा नारी होगी , उस घर में पवित्रता की वर्षा होगी । वह घर स्वर्ग है । भगवान भी पवित्रता के साथ दिखलाई देते हैं । 

 सती व पतिव्रता नारी निश्चित रूप से श्रेष्ठ व पवित्र आचरण ही करेगी , पापाचरण नहीं । बच्चों के निर्माण में माँ की भूमिका ही अहम होती है । बच्चे की प्रथम गुरू उसकी माँ होती है । 

एक कहावत है- ' माता ही जब है अज्ञान , बच्चे कैसे बनें महान । " माता के पवित्र सदाचार का बच्चों पर अच्छा प्रभाव अवश्य पड़ेगा और बच्चे सदाचारी बनेंगे । जब अच्छे व सदाचारी बच्चे होंगे तो धरती पर स्वर्ग बनेगा ही । जिस घर के निवासी पवित्र आचरण करते हैं , उस घर पर परमात्मा की कृपा बरसती है । जहाँ बालक अपने माता - पिता के आज्ञाकारी हों , पतिव्रता व आज्ञाकारिणी पत्नी हो वहाँ स्वर्गीय आनन्द की वर्षा अवश्य होगी ।


 अंत में मैं इस आर्टिकल के माध्यम से यही कहना चाहूंगी जिस घर में औरतों की इज्जत होती है वहां पर भगवान और माता लक्ष्मी और विष्णु भगवान  आकर निवास करते हैं।  जिस घर की औरतें रोती हैं उसे घर में आई हुई दौलत भी वापस चली जाती है ,इसमें किसी भी प्रकार का शक नहीं है क्योंकि औरत अगर दुआ दे सकती है तो फिर वह बद्दुआ भी दे सकती है ।इसलिए कभी भी भूल कर अपनी मां, बहन और औरत को ना सताए और न ही उनकी आखों में आँसू आने दे। उनकी जितने भी हो सके इज्जत करें और त्योहारो पर उनका मान सम्मान करें फिर देखना आप दिन दोगुनी रात चौगुनी तरक्की करेंगे क्योंकि यह मेरा निजी अनुभव है।

अगर घर की औरतें खुश हैं तो आपको स्वर्ग ढूंढने की जरूरत नहीं है फिर  आपका घर ही स्वर्ग बन जाता है। 

जो लोग औरत से सेवा करवाकर उनका निरादर करते हैं उनको भगवान भी माफ नहीं करते अंत में उनका पतन ही होता है


हमारे धर्म शास्त्रों में भी महिलाओं को मां पार्वती का स्वरूप माना गया है। वो लोग धन्य हैं जो औरतों को मा लक्ष्मी  का स्वरूप देखकर उनकी भावनाओं की कद्र   करते हैं। कभी भी भूलकर औरत की भावनाओं को ठेस ना पहुचाये क्योंकि एक औरत अपनी भावनाओं को दबा लेती है पर एक पुरूष  का प्रथम कर्तव्य उसकी भावनाओं को समझना है।  जो पुरुष अपने औरत की भावनाओं को समझता है उसको भगवान हर तरह से खुश रखता है। 


जिंदगी में जिनका कोई सहायक ना हो उनकी पत्नी जीवन यात्रा में उम्र भर साथ देती है। स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूर्वक हैं एक की अनुपस्थिति में दूसरे का अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पति और पत्नी जीवन रूपी रथ को मंजिल तक पहुंचाने के लिए एक दूसरे का जीवन भर साथ देते हैं। यदि कोई पति सफल होता है तो निश्चय ही उसकी पत्नी का पूर्ण योगदान होता है। इसी तरह यदि कोई पत्नी सफलता के शिखर पर पहुंचती है तो उसके पति के योगदान को नकारा नहीं जा सकता।


भगवान ने जब स्त्री की रचना करते समय उसके अंदर अंनगणित भावो से भरा है प्रेम, करुणा, दया की वह जीती जागती मूर्ति है। स्त्री से अपने भीतर कई तरह के रूप को समेट कर परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित होती है। वह बचपन से ही आज्ञाकारी बेटी, युवावस्था में अपने छोटे भाई बहनों के लिए मार्गदर्शन और मां-बाप के लिए सहारा बनती हैं और शादी के बाद अपने नए जीवन की शुरुआत ससुराल से करती हैं।

इन सब किरदारों के बीच हर स्त्री की जीवन में फिर वही मोड़  भी आता है जब उसका  बचपन फिर से लौटकर वापस उसकी शक्ल के रूप में बेटा या बेटी के रूप में जन्म लेता है।  एक औरत कभी  बहन और कभी पत्नी और कभी अपने बच्चों की मां बनकर हर तरह के पक्ष के लिए भावनाओं का सेतु बनाकर समान रूप से परिवार को तवज्जो देती है।


 Lastalfaz-----इसलिए औरत के इज्जत करें और उसके ऊपर किसी प्रकार का शक न करें और न ही छोटी-छोटी बातों को लेकर उसके साथ कभी भी झगड़ा ना करें क्योंकि उसके आंसुओं के अंदर बहुत ज्यादा दर्द छुपा होता है।। औरत उसे पौधे की तरह है जो एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह पनपने के लिए लगा दिया जाता है।



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