Hindu festival | हिन्दू धर्म के त्योहारों का महत्व |

" हमारे व्रत और त्यौहार - भारत देश और हिंदू धर्म में बहुत सारे त्यौहार पूरे साल मनाया जाते हैं एक के बाद एक त्योहार का जैसे मेला ही लगा रहता है। इस आर्टिकल के माध्यम से आज हम आपको सभी त्योहारों के बारे में बताने की भरपूर कोशिश करेंगे कि किस दिन कौन सा त्यौहार मनाया जाता है अगर आप भी इन त्योहारों को मनाने की इच्छुक हैं तो प्लीज इस आर्टिकल को अंत जरूर पढ़ें।

हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहार किस दिन और कब मनाया जाते हैं- भारत में हिंदू धर्म का त्यौहार  नये संवत मार्च  से शुरू होकर दिसंबर तक बनाए जाते हैं कोई भी महीना ऐसा नहीं है हिंदू धर्म में जिसमें कोई त्यौहार नाम मनाया जाता है। 


 हिंदू धर्म के त्योहार और उनकी तिथियां-

भारतीय ज्योतिष विज्ञान एवम आर्युवेद एवं धार्मिक शास्त्रों का सभी का एक मत है कि विभिन्न व्रत में विशेष तिथियों एवम बार - सूर्य - चन्द्रमा अनेक नका प्रभाव मनुष्य शरीर एवम मन पर पड़ता है । अत:  तिथि पूर्वक व्रत करके उपवास करके मनुष्य मानसिक एवम शारीरिक लाभ प्राप्त कर सकता है । नवरात्रा आरम्भ प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ( एकम् ) को नवरात्रा आरम्भ हो जाता है । ये दिन अत्यंत शुभ होते हैं ।  भगवान श्रीराम , भगवान शिव , महाशक्ति मा दुर्गा देवी की पूजा आराधना से विशेष और जल्दी फल प्राप्त होता है । श्री राम चरित मानस ( श्री रामायण ) की विधिवत पूजा करके 9 दिनों में समाप्ति करे अपने आप नहीं कर सके तो योग्य ब्राह्मण द्वारा करवायें ।

 एक समय भोजन करे प्रभु नारायण का हर समय ध्यान रखे। 

सयंम से रहे या दुर्गा जी का पाठ या भगवान भोले शंकर बाबा का पाठ करे मन्दिरों में जाकर दर्शन करे । मां दुर्गा जी की ज्योति करें  और अष्टमी या नवमी को 9 कुवारी कन्याओं का पूजन करके भोजन करवाये , वस्त्र और दक्षिणा देवें । 

नये साल का पंचाग खरीद करके कम से कम 13 ब्रह्मणों को दक्षिणा सहित देवें  नव संत्सरः चैत्रे मास, ब्रह्मपुराण  ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को किया था । सम्राट विक्रमादित्य ने भी अपने संवत्सर का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही किया था । इसमें संवत्सर का पूजन , नवरात्र घट स्थापन , ध्वजारोहण आदि अनेक शुभ कार्य होते है । संवत्सर पूजन : चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातः कृत्य समाप्त कर पूजन का संकल्प करे और ब्रह्मा आदि देवताओं का तथा पंचाग का पूजन करें और प्रार्थना करे हे भगवन् , आपकी कृपा से मेरा यह वर्ष कलाणकारी हो और इस संवत्सर के मध्य में आने वाले सम्पूर्ण अनिष्ट विलीन हो जाएं ।

 संवत्सर के दिन नीम के पत्ते का चूर्ण , काली मिर्च , नमक , हींग , जीरा और गुड़ मिलाकर भक्षण करें । ऐसा करने से शरीर निरोग रहता है ।


 गौरी तृतीया - चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को गणगौर पूजन  रामनवमी चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान श्री राम जी का पूजन विधि पूर्वक करें व्रत रखें ।  



हनुमान जयंती कब मनाये - 

 चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को वैशाख स्नान प्रारम्भ । सत्यनारायण भगवान का व्रत  करे।

 वैशाखी -  विशेष पुण्यकाल चैत्र शुक्ल पक्ष 13 अप्रैल को मनाई जाती है  । 


 अक्षय तृतीया : विशेष पुण्यकाल बैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया । बदरीनारायण भगवान की पूजा करें ।


  निर्जला एकादशी - ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को विशेष पुण्यकाल को  सुयोग्य ब्राह्मण को घड़ा या बाल्टी शुद्ध जल से भरकर थाली  से ढ़क कर सूखी चीनी का गिलास भरकर , हाथ का पंखा , दक्षिणा सहित दान करें व्रत करे ।


 देव शयनी एकादशी आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान  को शयन करने चले जाते हैं । इस दिन  व्रत करना चाहिये । 


 गुरु पूर्णिमा आषाढ़ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को अपने गुरुदेव की पूजा करें । 


 भगवान शिव की पूजा - श्रावण मास विशेष कर भगवान शिव का है भगवान शिव की विशेष पूजा मन्दिर - दर्शन - व्रत बाबा के तीर्थ स्थान ज्योर्तिलिंगों के दर्शन करें या रूद्राभिषेक करें और यह सुयोग्य ब्राह्मणों से करवाएं । " महामृत्युजंय का पाठ करवायें । 


मंगला गौरी व्रत- श्रावण के प्रत्येक मंगलवार को पार्वती जी की विशेष पूजा व्रत रखें । 16 या 20 व्रत पूरा करने पर उदापन ( उजमन करें ) 16 जोड़ा जोड़ी ब्रह्मणों का ( सुयोग्य ) सम्मान , पूजा , भोजन , दक्षिणा , विधि - विधान से करें 


 तीज कब करें- श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया को बहन बेटी को ससुराल से बुलाकर उनका आदर - मान , सुहाग का सम्मान , कपड़ा , रूपया देवें ।


  रक्षाबंधन-  श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को रक्षाबंधन : श्रावण मास शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को बहनों से रक्षा ( राखी बंधवाऐं उन्हें खुश करे । श्रावणी कर्म यज्ञोपतित- जनेऊ - नया बदली करें । अमर नाथ भगवान के दर्शन करे

 

 नाग पंचमी श्रावण - शुक्ल पंचमी को अमरनाथ यात्रा आरम्भ नागों की पूजा करें व्रत रखें । अग्नि न जलाए । बासी ठण्डा भोजन करें । 


 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भादवा कृष्ण पक्ष अष्टमी को रात्रि 12 बजे श्रीकृष्ण भगवान का जन्म व्रत रखें और रात्रि 12 बजे दर्शन प्रसाद लेकर भोजन सिर्फ फलाहार करें ।


  गुग्गा नवमी- भादवा कृष्ण पक्ष नवमी को को करें। 


  राणी सती दादी अमावस्याः भादवा कृष्ण पक्ष अमावस्या को करें  ।


 अनन्त चर्तुदशी - भादवा शुक्ल पक्ष चतुर्दशी को व्रत को करे।


 श्राद्ध पक्ष-  पितृ पक्ष भादवापूर्णिमा को पितृ पक्ष आरम्भ 16 दिनों तक अपने पितरों को जो जो दिन पड़ता है उसी दिन उनको याद करके श्रद्धा सहित श्राद्ध करें । सुयोग्य ब्राह्मण से तर्पण , ब्राह्मण को भोजन , वस्त्र , दक्षिणा , गाय को भोजन केला खिलायें पितरों का गया जी श्राद्ध नहीं किया है तो कौवा को , कुत्तों को , भिखारी , कीड़ी को अन्न दान अवश्य करें । 


( शरद नवरात्रा आरम्भ :'

 आसोज शुक्ल पक्ष प्रतिपदा को महाशक्ति दुर्गामाताजी का घटस्थापन , विशेष पूजा , 9 दिनों तक चैत्र शुक्ल को नवरात्रा की तरह अत्यंत शुभ माना जाता है। 


 भगवान श्री राम , महाशक्ति श्री दुर्गा माता जी की पूजा आराधना विशेष और शीघ्र फलदायी है । 


 विजया दशमी आसोज शुक्लपक्ष दशमी को " दशहरा " मनाया जाता है जो  भगवान श्री राम जी का विजय का प्रतीक है। 


  शरद पूर्णिमाः-  आसोज शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को खीर बनाकर पतले कपड़े से ढ़क कर छत पर रखें रात्री को एक टपका अमृत का पड़ता है सुबह प्रसाद समझ कर परिवार में बाँट दे।


 

करवा चौथः- कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूरे संसार में " करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जिस दिन प्रायः करके सारी भारतीय सुहागिन महिलाएँ अपने पति  सुहाग की रक्षा , दीर्घायु , उसकी खुशियां , उसकी जीवन में हर क्षेत्र में पूर्ण सफलताओं की प्राप्ति हो कि कामना से करवा चौथ का उपवास व्रत करती है । पूरे दिन निराहार रहकर रात्री में चन्द्रमा के उदय होते ही चन्द्रमा का दर्शन , शुद्ध जल , रोली , चन्दन , चावल फुल से अर्घ्य देकर प्रणाम करके अन्न जल ग्रहण करती है । आजकल अविवाहित युवतियां भी अपने लिए मन पंसद का सुशील , सुन्दर , योग्य वर की प्राप्ति की कामना से यह व्रत करने लग गई है ।


 अहोई अष्टमी :- कार्तिक कृष्ण पक्ष अष्टमी को का व्रत अपने बच्चों की लंबी आयु के लिए करें।


  घन - तेरस : - कार्तिक कृष्ण पक्ष की द्वादश या त्रयोदशी को नया सामान चांदी का खरीद करे । चार मुखी मिट्टी के दीपक में तिल का तेल और रुई की बती और एक कौड़ी डाल कर जलाकर पूजा करें और घर के दरवाजे के पास बाहर रख दें । लक्ष्मी जी पधारेंगी , स्वच्छ घर को देखकर ।


 

दिवाली- कार्तिक कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को रात्रि को दीपावली श्री महालक्ष्मी जी पूजाः गोपाल सहस्त्रनाम श्री शुक्त आदी का पाठ खुद करें । 

 अन्नकूट श्री गोर्वधन पूजाः-  कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या के बाद दुसरे दिन गोवर्धन पूजा का त्यौहार मनाया जाता है जिसमें भगवान श्री कृष्णा और जो जिसका व्यापार है उसकी पूजा की जाती है।



 भाई दूज : - कार्तिक मास शुक्ल पक्ष द्वितीया को भाई बहन के घर जाकर भोजन करें। बहन अपने हाथ से भाई को खिलाऐं बाद में तिलक करें नारियल देवें उसकी खुशियां  और दीर्घायू की नारायण प्रभु से प्रार्थना करें । भाई बहन को धन रूपया देवें और अपनी बहन से आशीर्वाद प्राप्त करें।


सूर्य षष्टीः कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को सन्धया समय छिपते सूर्य को अर्घ्य देकर निराहार व्रत करके दूसरे दिन उदय होते हुये सूर्य को अर्घ्य पूजा नमस्कार करके व्रत खोले ।। 


 गोपाष्टमी :- कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को प्रेम से गाय की पूजा , गो - सेवा , दान गोशाला में अपनी दान दें ।


 अक्षयनवमी : कार्तिक शुक्ल पक्ष नवमी आंवलों वृक्ष के नीचे विष्णु पूजा दान - धर्म करें ( गुप्तदान ) कुम्हड़े के भीतर पंचरत्न रखकर लाल कपड़े से बांधकर दान करें ।


 देव उठनी एकादशी :- कार्तिक शुक्ल एकादशी को देवता जागते हैं व्रत करें- दान पुण्य करें । तुलसी जी का ब्याह विष्णु भगवान जी के साथ विधि विधान पूर्वक श्रद्धा के साथ करने से दुःखों का नाश हो जाता है ।


  कार्तिक शुक्ल द्वादशी को मंदिर में ध्वजा चढ़ाने का फल ( चढ़ी हुई ध्वजा हवा से जितनी बार हिलती है उतनी बार ध्वजा चढ़ाने वाले के पाप जाल कटते रहते हैं । ) कार्तिक मास में भगवान के सामने नृत्य - भजन जागरण पूजन करने से भी उपरोक्त फल प्राप्त होता है । 


 श्री तुलसी विवाह सामग्रीः- केसर , चंदन , रोली , पान , 11 सुपारी , मोटा 5 की रचा , पुष्प , पुष्पमाला 2 , अगरबती , दीपक , रीतुफल जनेऊ , कपूर , अन्तर मेंदी , सिन्दूर , चावल , चीनी , पंचामृत , दूध , दही , शहद , घी , रूई माचिस , शालग्रामजी का वस्त्र , तुलसी जी के वस्त्र , आभूषण , सुहाग पिटारी , प्रसाद - गुड़ , माला 1 , कपड़ा लाल 1 गज  दे। 

तृतीय खण्ड सफेद कपडा गज रेशमी गज गेहूँ 250 .. आटा, हल्दी , समीधा , बालूरेत होम की बाटी चम्मच , पीतल की ब्राह्मण वरण , साल , आम की डाली . कलश 1 घट,   दीपक 51 दान के रूप में  दे।


 पुश्कर मेला :- कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा को कार्तिक मास तारा भोजन : आसोज सूदी 15 से कार्तिक मास की पूर्णिमा ( 1 महिने तक ) सुबह 4-5 बजे उठकर नारायण प्रभु की पूजा ( पथवारी पूजा मंदिर दर्शन व्रत रात्री को तारा देखकर हल्का भोजन और करती है ।


 लोहड़ी माह कृष्ण पक्ष चतुर्थी , मकर संक्राति माह कृष्ण पक्ष पंचमी को करे।


 मोनी अमावस्याः- माह कृष्ण पक्ष अमावस्या को कुम्भ मुख्य शाही स्नान करे।


  बसन्त पंचमी सरस्वती पूजा कुम्भ स्नान माह शुक्ल पक्ष पंचमी को करे।


 महा शिव रात्री फाल्गुन कृष्ण पक्षकी त्रयोदशी को करे।


  श्री खाटू श्यामः फाल्गुन ' शुक्ल पक्ष द्वादशी को  होलिका दहन करे।


फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को ( भद्रा काल शास्त्रों में वर्जित किया है ) 

धुलेंडी- ( छारन्टी ) चैत्र - कृष्ण पक्ष प्रतिपदा को करे।


 शीतला सप्तमी ( वासा ) चैत्र कृष्ण पक्ष सप्तमी को अग्नि न जलाए । बासी भोजन ठण्डा खाएँ ( शीतलेत्वं जगत माता शीत लत्वं जगत पित्ता शतत्वं जगत धातृ शीललाये नमो नमः ) चंदन रोली - मोली पान सुपारी फूल- अगरबत्ती दीपक रीतुफल - चावल - क्षरसाद ठंडी चीजा ( मीठा भात ) राबड़ी दही से पूजा करके मंत्र से प्रणाम परिक्रमा करें । सब घर वाले प्रथम बासी ( सीतला ) प्रसाद ग्रहण करें । जिससे घर में शीतला का रोग नहीं होता माता की पूजा आशीर्वाद से बस घर वाले प्रसन्न रहेंगे । 


 इस प्रकार पूरे साल हिंदू धर्म में यह सब त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाते हैं।






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