मन को शांत कैसे रखे || मन की शांति के लिए कया करे || तनाव से कैसे बचें ||

मन को  शांति कैसे और कहां मिले?  सुख का आधार क्या है? जीवन का लक्ष्य क्या है? कभी-कभी हम सभी तरह की सुख सुविधा होने पर भी अशांत क्यों रहते हैं-

* मन की शांति के लिए कया करें -

आज धन कमाने की अंधी दौड़ में मनुष्य कार, कोठी , बंगला , सभी प्रकार के सुख देने वाले साधन , अपार धन , सोफा , टी वी , फ्रिज , माईक्रो ओवन , सुन्दर वस्त्र , चमचमाते बूट , नाना प्रकार के पकवान , फल मिठाइयाँ आदि पर्याप्त मात्रा में प्राप्त कर रहा है। परन्तु मन की शान्ति और जीवन का आनन्द खो चुका है । 

हर प्रकार के भोग के साधन होने पर भी व्यक्ति मानसिक शान्ति से दूर है और मन अशान्त , कलान्त , निराश , दुखी और तनाव ग्रस्त है । काम में इतना व्यस्त कि जिस की प्राप्ति के लिये कमाता है अर्थात दाल रोटी , उसे खाने की भी फुर्सत नही है ।

 सेठ जी दुकान पर बैठे सायँ चार बजे खाना खा रहे हैं , पूछा कि दोपहर का भोजन कर रहे हो या रात का उत्तर मिलता है जब समय मिल जाए खा लेते हैं ।

 यह व्यस्त जीवन , पारिवारिक समस्याएं , असुरक्षा , लोभ , ईर्ष्या , अहंकार , अमर्यादित जीवन शैली अर्थात आधी रात को निशाचर की भांति खाना , सुबह 11 बजे उठना , AC का प्रयोग , फ्रिज का बासी भोजन , fast food , food नाना प्रकार की जहरीली cold drinks , कैमीकल और preservative युक्त भोज्य पदार्थ आदि स्वास्थ्य के शत्रु , मनुष्य को अशांत और अवसाद ग्रस्त बना रहे हैं । जितने साधन अधिक , उतनी चिन्ता अधिक और परिणाम  सिर्फ बिमारी मिलती है तनाव , शूगर , BP , हृदय रोग , कैन्सर , T.B. आदि ।


यहां तक कि आत्म हत्याएं जिस का प्रमुख कारण तनाव ( tension ) है - मनुष्य सोचता है कि धन सम्पत्ति पाकर सुखी हो जाएगा , जीवन में खुशियां और आनन्द प्राप्त कर लेगा परन्तु परिणाम इस के उलट मिल रहा है । जिस के पास जितना अधिक धन है वह उतना अशान्त है। क्योंकि इस का समाधान धन दौलत नहीं है ।

वृहदारण्यक उपनिषद-   में ऋषि अपनी पत्नी  मैत्री को उपदेश देते है " धन ऐश्वयं से जीवन में सुविधा तो मिल  जाएगी . निवास हेतु सुन्दर भवन , सुन्दर वस्त्र ऐश आराम के सब साधन तो मिल जाएंगे परन्तु मन , आत्मा की शान्ति नहीं मिलेगी । 

ऐसे ही कठोपनिषद का ऋषि जी कह रहा है । बालक नचिकेता जब पिता से निराश हो कर यम नाम के ऋषि के पास जा कर मृत्यु का रहस्य पूछता है तो ऋषि बालक को मृत्यु का रहस्य नहीं बताते और कहते हैं इसे मत पूछो , इस के बदले संसार का राज्य भोग ऐश्वर्य , लम्बी आयु मांग ले परन्तु मृत्यु का भेद मत पूछ इस पर बालक कहता है " संसार के भोग आज है कल नहीं, कल शरीर शिथिल पड़ जाएगा । इच्छायें कभी समाप्त नहीं होती । कितना ही धन हो पर मन नहीं भरता।


तृष्णा कया है- 

महाराज भर्तृहरि वैराग्य पा कर वाणप्रस्थ हो वा चले गये और यह कहा कि " तृष्णा सदा जवान बनी रहती है समाप्त नही होती , " भोगा न मुक्ता व्यमेव मुक्ता , तृष्णा जीर्णा वयमेव जीर्णा " कहने का भाव यह है कि आँख कर के घोर परिश्रम कर के , छल , कपट , झूल अवचार कर के जो धन के स्वामी न बन कर सेवक बने हुए है। इससे जीवन का आनन्द और मन की शन्ति कभी नहीं मिलती ।


*खूब कमायें- 

 वेद , उपनिषद गीता , ब्रहमण ग्रन्थ सब संसार को मिथ्या नहीं मानते वरन सत्य मानते है । ईश्वर सत्य है उस की रचना झूठी नहीं हो सकती , ईश्वर सत्य , उस की रचना संसार भी सत्य । वेद धन कमाने की मनाही नहीं करता " व्यम स्याम पत्यो रयीणाम " हम धन ऐश्वर्य के स्वामी बने ।

ऋग्वेद वके अनूसार खूब कमायें , परन्तु ईमानदारी की कमाई करें ।

नेक कमाई करें और खूब बाटे । सांप बन कर कुण्डली मार कर धन पर न बैठे ।  अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम दास मलूका कह गए सब के दाता राम।

 यह दासों , आलसी व्यक्तियों की परिभाषा हो सकती है । बुद्धिमान , परिश्रमी पुरुषार्थी की नहीं ।

 हम अजगर और पक्षी नहीं हैं । इन की भोग योनि है हमारी कर्म योनि है " । 

परोपकार-  साई इतना दीजिये जा में कुटम्ब समाये मैं भी भूखा न रहूं साधू भूखा न जाए " 

यह बुद्धिहीन निकम्मे व्यक्ति का कथन है । यदि परिवार और साधु के खिलाने तक ही हम कमाई करेंगे तो परोपकार के कार्य जैसे विद्यालय , चिकित्सालय , अनाथालय , विधवा आश्रम गऊशाला , गुरुकुल कहा से चलायेंगें ?

 इसलिए  वेद खूब कमाने की बात कहता है परन्तु अर्थ धर्म के साथ जुड़ा हो , ईमानदारी की कमाई हो , छल कपट , लूट मिलावट से नहीं । याद रहे मनुष्य जीवन का अन्तिम लक्ष्य मौज मस्ती और रोग ग्रस्त रहना नहीं है वरन् सुख शान्ति है ।


 जीवन का लक्ष्य -

हम सब मोक्ष चाहते हैं परन्तु , मोक्ष किसलिये ? 

उत्तर है सुख , आनन्द के लिये । तो सुख ही हमारा जीवन का लक्ष्य है न कि धन कमाना और ऐश करना ।

 डा ., इंजीनियर , वकील , CA , अध्यापक , IAS , IPS , एम.बी.ए. बनना अन्तिम उद्देश्य नहीं है परंतु मन की शांति ही हमारा लक्ष्य है तो क्या करें ऐसा की जिससे सुख मिलेगा।


सुख शांति के लिए उपाय-

 इस भौतिक चकाचौंध में न उलझ कर परम सत्य , परम पिता ईश्वर की शुद्ध भक्ति , संध्या उपासना , औम का जाप करें ।समय रहते प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में और सायं हम रचने वाले रचयिता ईश्वर की आराधना में  यदि इस कर्म योनि अर्थात मनुष्य शरीर में ईश्वर को नहीं ध्याया तो अन्त में हाथ मसलते रहोगे । पछताते रहोगे । सब कुछ यहीं रह जाएगा सुई तक साथ नहीं जाएगी । खाली हाथ जाना होगा । इस संसार की वस्तुएं साथ छोड़ देंगी । केवल धर्म - धन , शुभ कार्य ही साथ जाएँगे । ईश्वर (औम )का स्मरण करें । यह ईश्वर का निज नाम है अन्य नाम जैसे राम , कृष्ण , जगन्नाथ , दीनानाथ , शंकर आदि सब गौणिक नाम है निज नाम नहीं । ईश्वर का स्वरूप परन्तु शर्त यह है कि ईश्वर के शुद्ध स्वरूप का ज्ञान होना चाहिये । ईश्वर निराकार है साकार नहीं है।

निराकार का आकार नहीं होता उस का अनुभव किया जाता है । 

इन्द्रियों से साक्षात्कार नहीं होता।

 जैसे- चन्दन में , गुलाब में सुगन्ध । जैसे बुखार , सर दर्द आदि जो चर्म चक्षु नहीं दिखते अनुभव किये जाते हैं । समाधि द्वारा , अष्टांग योग द्वारा ज्ञान , बल , आनन्द की प्राप्ति ही ईश्वर का साक्षात्कार है । मन्दिर में सायें प्रातः आस करते हैं और बोलते हैं " तुम हो एक , अगोचर , सब के प्राण पति । " मन्दिर एक नहीं कई हैं । मन्दिर वाला अगोचर भी नहीं है वो तो दिखते हैं और सब के प्राण पति अर्थात रक्षक भी नहीं हैं वह तो स्वयं चोरी हो जाते हैं अपनी रक्षा भी नहीं कर सकते हमारी रक्षा कैसे करेंगें । अतः जो बोल रहे हैं । उसे समझें और उस पर अमल करें । ईश्वर निराकार , सर्वव्यापक , कण कण में बसा है । परमात्मा हमें बनाता है , हम उसे  नहीं बनाते हैं ? वह हमे खिलाता है , हम उसे खिला रहे हैं ? वह तो खाता नहीं है " अकामो है " उस की कोई कामना नही है " ।

मन को शांत कैसे रखे-

विचारों को रोक नहीं हमारा मन बुद्धि और शरीर विचारों को आने से रोक नहीं सकता विचार अच्छे और बुरे दोनों हो सकते हैं इसलिए अपने मन को शांत रखने का यह मतलब नहीं कि इसे भाग जाओ यह विचार कभी मन में आ ही नहीं सकते बल्कि मन को शांत करने का मतलब है कि हम अपने मां के विचारों से परेशान ना हो और इसे एक मानसिक प्रक्रिया समझकर इस पर ज्यादा ध्यान न देकर अपने काम में व्यस्त रहें। अपने विचारों को लिखने की कोशिश करें- अगर आप अपने विचारों से मुक्ति पाना चाहते हैं और मन को शांत करना चाहते हैं सबसे अच्छा तरीका है जो भी विचार चाहे अच्छे हो  बुरे तो उनको लिखकर भगवान के सामने रख  दें यानी अपने विचारों को लिखकर एक नई दिशा मिलती है और आप हल्का महसूस करते हैं।  ऐसा लगता है कि जो भी अच्छे हो या बुरे विचार मेरे अंदर आए तो वह मैं भगवान को समर्पित कर दिया है ।इससे बहुत ज्यादा हल्का पन महसूस होता है। इस प्रकार एक डायरी बना ले और आपके मन में जो भी विचार  आए उसको लिखते जाएं और भगवान को समर्पित करते जाएं । जब वह चिटठी  बहुत सारे इकट्ठे हो जाएं उनको पानी में परवाह कर दें ऐसा करने से आपके मन को बहुत ज्यादा शांति मिलेगी। 

ध्यान लगाने की कोशिश करें-

 जब भी मन अशान्त  हो तो किसी भी साथ शांत वातावरण में बैठे और एक लंबी सांस ले ऐसे ही अपनी हर सांस पर आंखें बंद करके ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करें। यह एक बहुत ही आसान प्रक्रिया है

 मगर आपको इसके परिणाम सिर्फ नियमित रूप से करने से मिलेंगे। इसलिए पहली बार में आपको सफलता हासिल नहीं होगी ।अपने लिए प्रतिदिन 10 से 20 मिनट निकाले  और ध्यान लगाने की जो भी समय आपको उचित लगे उसे टाइम ध्यान लगाये।  यह आपके मन को शांत करने के लिए एक बहुत ही सरल  तरीका है। 

अपने आप को बिजी रखें-

 किसी ने सही कहा है खाली दिमाग शैतान का घर होता है और यह बात पूरी तरह से सही है आप खुद को महसूस किया होगा जब भी आपके पास कोई काम करने का नहीं होता तो मन में उलटे सीधे विचार आने लगते हैं जो आपको परेशान कर सकते हैं इसलिए खुद को मेंटल हेल्थ के लिए रूटिंन बनाएं और उसे फॉलो करें और जो भी चीज आपको अच्छी लगती है या आपकी हॉबी है उसमें अपना टाइम स्पेंड जरूर करें और शाम के लिए टहलने जरूर जाएं और थोड़ा टाइम अपने दोस्तों में भी जरूर बिताएं  क्योंकि दोस्तों को  ऐसी दवाई माना जाता हैं जो किसी भी मेडिकल स्टोर में नहीं मिलती इसलिए  अपने दोस्तों अपनी रूचि के लिए समय  निकाले।

निष्कर्ष-

इंसान को जिंदगी एक बार मिलती है इसलिए अपनी जिंदगी को तनावग्रस्त करके नहीं बल्कि खुशी-खुशी बिताएं सुख और दुख हमारे जीवन के लिए पेड़ के पत्तों की तरह हैं। जिस प्रकार पेड़ कभी पत्तों के साथ और कभी पतझड़ के साथ जीना सिखाता है, इसलिए किसी भी परिस्थिति से घबराएं नहीं। जीवन में सुख और दुख तो आते रहते हैं। अगर जीवन में कोई दुख आया है तो हमें भगवान के और करीब कर देता है ,इसलिए कभी भी दुखों से घबराएं नहीं।


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