हस्त मुद्रा कैसे करें | हस्त मुद्रा विज्ञान के फायदे | हस्त मुद्रा चिकित्सा से खुद को कैसे ठीक करें | yog mudra therapy in hindi |

Tittle- हस्त मुद्रा चिकित्सा से बिमारी कैसे ठीक करें-
मुद्रा चिकित्सा एक ऐसा  योग विज्ञान है जिसकी मदद से आप घर बैठे अपनी बिमारीयो को ठीक कर सकते हो। जयादातर लोग यह जानते हैं कि आसन और प्राणायाम के नियमित अभ्यास से वह स्वस्थ रह सकते हैं, लेकिन जो लोग किसी बीमारी के कारण व्यायाम या आसन नहीं कर सकते, वह मुद्रा चिकित्सा करके लाभ उठा सकते हैं। मुद्रा चिकित्सा का इस्तेमाल करते हुए यह जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि जो मुद्रा जिस निश्चित समय-अवधि के लिए सुझाई गयी है, उसे उतने ही समय के लिए करें। उससे अधिक समय के लिए न करें, अन्यथा फायदे की जगह नुकसान हो सकता है।
आज हम आपको मुद्रा चिकित्सा के तहत कुछ ऐसे रोगों का निवारण बता रहे हैं, जो आज शहरों की तेज रफ्तार जीवनशैली के बीच आम हो गए हैं।

सूर्य मुद्रा  कैसे करें -----

यह हमें सूर्य की गर्मी और ऊर्जा प्रदान करती है तथा शरीर को चुस्त बनाए रखती है। सर्दियों में सुबह उठने पर और रात सोने से पहले 15-15 मिनट यह मुद्रा करने से बहुत लाभ मिलता है। 

रोग निवारण और लाभ ------
जो लोग सर्दी में ज्यादा परेशान रहते हैं और जिनके हाथ-पैर ज्यादा ठंडे रहते हैं, उन्हें यह मुद्रा करने से लाभ होता है। मोटापा और डायबिटीज से छुटकारा पाने के लिए भोजन करने से पांच मिनट पहले और 15 मिनट बाद इस मुद्रा को करने से बहुत फायदा होता है। इस मुद्रा से शरीर में गर्मी पैदा होती है। इसलिए कफ, निमोनिया जैसे रोगों में यह लाभकारी है।  

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मुद्रा विधि------
यह मुद्रा अनामिका (अंगूठे से तीसरी उंगली) को अंगूठे के आधार पर लगाने से और उस पर हल्का दबाव बनाने से बनती है। इस मुद्रा को करते समय बाकी तीन उंगलियों को सीधा रखना चाहिए। रोजाना दिन में दो-तीन बार 15-15 मिनट इस मुद्रा को करना चाहिए।

व्यान मुद्रा------
यह मुद्रा उच्च और निम्न, दोनों तरह के रक्तचापों में आश्चर्यजनक रूप से लाभ पहुंचाती है। इस मुद्रा में अग्नि, वायु तथा आकाश तत्वों में संतुलन बनता है। इस मुद्रा को दोनों हाथों से करें। 

रोग निवारण और लाभ
रक्तचाप को सामान्य बनाए रखने के लिए इस मुद्रा को सुबह और शाम 30-30 मिनट के लिए करें। इससे न केवल उच्च रक्तचाप जल्दी ठीक होता है, बल्कि बाद में सामान्य भी रहने लगता है। यह मुद्रा हृदय से संबंधित रोगों में भी बहुत लाभकारी है। हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बनाने के लिए यह काफी प्रभावशाली मुद्रा है। 

मुद्रा विधि-----
अंगूठा, तर्जनी (अंगूठे के बगल वाली उंगली) और मध्यमा (अंगूठे से दूसरी उंगली) उंगलियों के आगे के हिस्सों को मिला कर बाकी दोनों उंगलियों को सीधा रखें। दोनों हाथों से एक समान मुद्रा बनाकर कम से कम 30 मिनट तक ऐसे ही रहें।

अस्थमा मुद्रा----
जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह मुद्रा सांस और अस्थमा के रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी है। जब अस्थमा का दौरा पड़े तो यह मुद्रा विशेष रूप से फायदा पहुंचाती है और अस्थमा के रोगी यदि इस मुद्रा का नियमित रूप से पालन करें तो उन्हें आशातीत लाभ मिलता है। 

रोग निवारण और लाभ------
इस मुद्रा के साथ-साथ अस्थमा के रोगी यदि प्रतिदिन सुबह-शाम 15-15 मिनट खुली हवा में लंबी गहरी सांसों के साथ अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें तो उन्हें बहुत लाभ मिलता है।

मुद्रा विधि
दोनों हाथों की मध्यमा उंगलियों को मोड़ कर उनके नाखूनों को आपस में मिला दें और बाकी सभी उंगलियों और अंगूठे को सीधा रखें। ऐसा दिन में पांच बार पांच-पांच मिनट के लिए करना चाहिए।  

संधी मुद्रा ------
संधी का अर्थ जोड़ होता है। इस मुद्रा के योग से शरीर के जिस भी जोड़ में दर्द हो, उससे छुटकारा पाया जा सकता है। आजकल समय के अभाव के कारण लोग व्यायाम नहीं कर पाते। साथ ही गलत ढंग से उठने-बैठने की वजह से हमारी मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और कभी-कभी जरा सा झटका भी बहुत तकलीफ देता है। ऐसी चीजों से बचने के लिए नियमित रूप से यह मुद्रा करनी चाहिए।

रोग निवारण और लाभ-----
घुटनों, कलाइयों, टखनों, कोहनियों के दर्द से पीड़ित लोगों के अलावा जो लोग पूरे दिन एक ही स्थिति में बैठे रहते हैं या पूरे दिन खड़े रहते हैं, उन्हें इस मुद्रा से बहुत लाभ होता है। जोड़ के दर्द के लिए दिन में तीन से चार बार यह मुद्रा 15-15 मिनट के लिए करें।

मुद्रा विधि
दाएं हाथ के अंगूठे के आगे के हिस्से को अनामिका उंगली के आगे के हिस्से से मिलाएं और बाएं हाथ के अंगूठे के आगे के हिस्से को मध्यमा उंगली के आगे के हिस्से से मिलाएं। दोनों हाथों को इसी मुद्रा में 15 मिनट तक रखें। घुटनों में दर्द होने

पर इस मुद्रा के साथ-साथ घुटने के चारों ओर सरसों के तेल से मालिश करें, लेकिन ध्यान रखें कि मालिश घुटने के ऊपर नहीं करनी है।

ज्ञान मुद्रा:--------

बड़े-बड़े ज्ञानी पुरुष जब जगत को ज्ञान  बोध देते हैं, तब वह ज्ञान मुद्रा करते हैं। भगवान श्री शंकराचार्य ने ज्ञान मुद्रा का वर्णन दक्षिण नीति स्तोत्र में किया है। इस विधि में अंगूठे को तर्जनी उंगली के सिरे पर लगा दो शेष तीनों अंगुलियों चित्र के अनुसार सीधी रहेंगे ।
लाभ------
ऐसा करने से स्मरण शक्ति का विकास होता है, और ज्ञान की वृद्धि होती है,पढ़ने में मन लगता है, मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होते हैं, इससे सिर दर्द दूर होता है, और अनिद्रा का नाश, अध्ययन शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है।
सावधानी :----
खानपान हमेशा सात्विक रखना चाहिए किसी भी प्रकार के नशे से का सेवन ना करें।

वायु मुद्रा :-----

तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के मूड में लगाकर हल्का दबाए।
शेष अंगुलिया सीधी रखें।
लाभ :----- वायु शांत होती है, लकवा, साइटिका, गठिया, संधिवात, घुटने के दर्द ठीक होते हैं, गर्दन का दर्द ,रीढ के दर्द तथा पार्किंसन रोग में भी फायदा होता है।

आकाश मुद्रा:-----


मध्यमा उंगली को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाए शेष तीनों उंगलियों को सीधी रखें इस विधि को हम अकाश मुद्रा के नाम से जानते हैं।
लाभ :----
कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि ठीक हो जाते है। हड्डियों की कमजोरी व ह्रदय रोग ठीक हो जाते हैं।
भोजन करते समय चलते फिरते समय यह मुद्रा ना करें अपने हाथों को सीधा रखें।

पृथ्वी मुद्रा:----
अनामिका उंगली को अंगूठे से लगाकर रखें इस विधि को हम पृथ्वी मुद्रा कहते हैं। इसके करने से शरीर में स्फूर्ति कांति, तेज, दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है। इसे करने से वजन बढ़ता है ।
जीवन शक्ति का विकास होता है। यह मुद्रा पाचन क्रिया ठीक करती हैं। सातवीक गुणों का विकास करती है। दिमाग में शांति लाती है, तथा विटामिन की कमी को भी दुर करती है।
एक अनुभवी योगाचार्य के मत के अनुसार यह सब जानकारी आपको बताई गयी है। अगर आप को किसी भी प्रकार कोई भी संदेह हो तो अपने डाक्टर या योग गुरु से सलाह जरूर करें ।

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